महिला खतना, एक क्रूर प्रथा : शारिक रब्बानी

इस प्रथा मेें मुस्लिम लड़कयों का खतना किशोरावस्था से पहले ही छह-सात साल की छोटी आयु में ही कर दिया जाता है, लेकिन बाद में इसके र्ददनाक परिणाम दिखाई देते हैं।

Update: 2021-09-09 10:09 GMT

 ... मुस्लिम समाज से जुड़ी मिस्र, यमन, इराक आदि अरब देशो कुछ अफ्रीकी देशों तथा भारत में बोहरा समाज में पायी जाने वाली महिला खतना की प्रथा एक क्रूर व अमानवीय प्रथा है।जिसके बारे मे उक्त मुस्लिम समाज के लोग कुछ इस तरह बताते है।

कुछ लोगों का कहना है कि महिला खतना सफाई के लिए है और कुछ का कहना है कि यौन इच्छा को काबू करने के लिए। परन्तु  इस प्रथा का कष्ट सह रहीं अनेको महिलाएं इसके बुरे प्रभाव को बताती हैं।

मिस्र की विश्व प्रसिद्ध लेखिका नवल अल सदावी जो खुद भुकत भोगी थीं तथा पशे से डाक्टर भी, उन्होंने इसका खुलकर विरोध किया तथा विश्व में आज भी इसका विरोध जारी है। सयुंक्त राष्ट्र इसे मानवधिकारों का उललंघन मानता है। परंतु मौलवी लोगों का उक्त प्रथा को संरक्षण प्राप्त है।

इस प्रथा मेें मुस्लिम लड़कयों का खतना किशोरावस्था से पहले ही छह-सात साल की छोटी आयु में ही कर दिया जाता है, लेकिन बाद में इसके र्ददनाक परिणाम दिखाई देते है।

भुकत भोगी अनेक महिलाओं का कहना है कि खतना से महिलाओं को शाररिक तकलीफ़ तो उठानी ही पड़ती है इसके अलावा तरह-तरह की मानसिक परेशानियाँ भी होती है और सेक्स लाइफ पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है।

यही कारण है कि महिला खतना के बारे में जागरूकता बढ़ानेे के लिये और इसे रोकने के लिये सयुंक्त राष्ट्र ने 6 फरवरी का दिन "डे आफ जीरो टालरेंस फार एफ जी एम" घोषित कर रखा है जिसे मुस्लिम समाज को खुद समाप्त करदेना चाहिए। जिससे मुस्लिम महिलाएं इस अमानवीय कष्ट से बच सके।

मैं उन तमाम मानवतावादी भाईयो-बहनो,चाहें वह जिस धर्म के हो सराहना करता हूँ जो इस अमानवीय व क्रूर प्रथा को खत्म कराने तथा महिलाओं के मौलिक अधिकारों की रक्षा तथा उनका शोषण बन्द कराने और समाज मे उन्हें बराबरी का हक दिलाने के लिए प्रयासरत हैं।


- शारिक रब्बानी , वरिष्ठ उर्दू साहित्यकार

   नानपारा, बहराइच (उत्तर प्रदेश)

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