उसूल नियम कायदे सब भूल जाइए, जंगलराज, भीड़तंत्र, गुंडागर्दी सर पर उठाइये!
आने वाले समय में क्या स्थिति बन सकती है इस पर गौर करना अतिआवश्यक है नहीं तो पछताने के अलावा कुछ नहीं मिलेगा...!!
ऑल्ट न्यूज के संपादक मुहम्मद ज़ुबैर की गिरफ्तारी के बाद अब यह महसूस होने लगा है कि जैसे उसूल, नियम, कायदों को भूलकर जंगलराज, भीडतंत्र और गुंडागर्दी को ही जीवनशैली के तौर मान्यता मिलने वाली है और इसके साथ ही जिंदगी व्यतीत करनी पड़ेगी। पिछले एक दशक से देश में जो माहौल बनना शुरू हुआ है उससे देश का संजीदा तबका हैरान व परेशान है कि आखिर एक मजबूत लोकतांत्रिक और कानून व्यवस्था पर चलने वाला देश इन गैर संवैधानिक हरकतों को कैसे झेल पाएगा।
मोदी सरकार की दूसरी पारी के साथ ऐसी घटनाओं में अप्रत्याशित तौर पर इजाफा हुआ है और अल्पसंख्यकों खासतौर पर मुसलमानो के खिलाफ तो माहौल और भी डरावना है। फिलहाल चल रही व्यवस्था में अपील वकील दलील सब बेमानी ठहराई जा चुकी हैं और पुलिस को सरकार ने जुल्म करने का साधन बना दिया है। किसी भी समाज में न्यायपालिका की अपनी अहमियत होती है लेकिन पिछले कुछ समय से अदालतों के फैसलों ने भी मायूस किया है। पिछले दिनों इलाहबाद में चले बुल्डोजर कार्रवाई को लेकर पूरी दुनिया में जिस प्रकार छीछालेदर हुई है उसकी मिसाल नहीं मिलती।
पत्रकार मुहम्मद ज़ुबैर जो फेक न्यूज की पोल खोलने के लिए मशहूर रहे हैं, को धार्मिक भावनाएं भड़काने के लिए मुकदमा दर्ज कर गिरफ्तार किया गया है, सही मायने में भारत सरकार ने अपनी झुंझलाहट उतारी है बल्कि सही मायने में बदला लिया है क्योंकि नुपुर शर्मा का मामला मुहम्मद ज़ुबैर ने ही अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पहुंचाया था ऐसा बताया जाता है और जिसके बाद अरब दुनिया का दबाव भारत सरकार और भाजपा पर काफी दबाव बढ़ गया था और जिसके चलते भाजपा ने अपने दो प्रवक्ताओं नुपुर शर्मा और नवीन जिंदल को भाजपा को बाहर का रास्ता दिखा दिया था। नुपुर शर्मा के खिलाफ भी धार्मिक भावनाएं भड़काने का मुकदमा दर्ज हुआ था।
वरिष्ठ पत्रकार युसुफ किरमानी लिखते हैं "अगर ऑल्ट न्यूज़ के संस्थापक और पत्रकार साथी मोहम्मद ज़ुबैर धार्मिक भावनाएं भड़काने के आरोपी हैं तो नूपुर शर्मा पर क्या आरोप है? संयोग देखिए कि जो धारा नूपुर शर्मा पर लगी है, वही धारा ज़ुबैर पर लगी है। लेकिन नाम में, धर्म में ज़रूर भिन्नता है। एक आज़ाद है, पुलिस सुरक्षा मिली हुई है। दूसरा जेल में है। धाराएँ एक जैसी हैं। लेकिन नूपुर शर्मा नफ़रत बेच रही थी और मोहम्मद ज़ुबैर नफ़रत बेचने वालों का पर्दाफ़ाश कर रहे थे।
दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल जघन्य अपराधों की गुत्थी सुलझाने के लिए स्थापित की गई थी लेकिन अब वो धार्मिक भावनाएँ भड़काने के केस सुलझाने लगी है। देश में पहली वेबसाइट आई जिसका काम सही तथ्य (फैक्ट) बताना था। मोहम्मद ज़ुबैर उसके जन्मदाता बने। जल्द ही उनके साथ प्रतीक सिन्हा जुड़ गए। इस तरह ऑल्ट न्यूज़ का जन्म हुआ। बहुत जल्द ऑल्ट न्यूज़ और मोहम्मद ज़ुबैर ने देश के पहले प्रमाणिक फैक्ट चेकर के रूप में हमारे दिलों में जगह बना ली। ज़ुबैर ने बीजेपी, आरएसएस के लोगों के तमाम झूठ का पर्दाफ़ाश कर दिया। उनके वीडियो जो छेड़छाड़ करके बनाए जाते ज़ुबैर की तकनीक उसे पकड़ लेती है। मोदी के ग़लत तथ्यों वाले बयान तक ज़ुबैर ने पकड़े। गोदी मीडिया को भी दिक़्क़त हुई। हाल ही में जिस टाइम्स नाउ चैनल पर नूपुर शर्मा की कथित टिप्पणी आई थी, उसकी बखिया ज़ुबैर ने उधेड़ दी। चैनल की एंकर नाविका कुमार के ख़िलाफ़ भी एफआईआर हुई।"
सरकार के बारे में यह धारणा फैलनी शुरू हो चुकी है कि भाजपा सरकार इंदिरा गांधी द्वारा लगाई गई एमरजेंसी को कोसते कोसते खुद भी अघोषित एमरजेंसी की ओर बढ़ रहा है। अल्पसंख्यकों को निशाना बनाते बनाते सभी वर्ग जो भी सरकार का विरोध कर सकते हों निशाने पर आ रहे हैं। दुनिया में सबसे बड़े लोकतंत्र का दावा करने वाले देश में बढ़ रही ऐसी घटनाओं से दुनिया में क्या असर पड़ रहा है इसकी चिंता देश के नीति निर्धारकों को नहीं है।आने वाले समय में क्या स्थिति बन सकती है इस पर गौर करना अतिआवश्यक है नहीं तो पछताने के अलावा कुछ नहीं मिलेगा।