गज़ल : भंवर से अब निकलना चाहता हूँ, मैं फिर मंज़िल बदलना चाहता हूँ

Update: 2021-09-20 06:34 GMT

#अहसासे मुजाहिद

भंवर से अब निकलना चाहता हूं ।

मैं फिर मंज़िल बदलना चाहता हूं - 

मैं अपने ख्वाब को मिसमार कर के ।

समंदर सा मचलना चाहता हूं ।।

मोहब्बत का नशा अब जा चुका है ।

सहारा दो संभलना चाहता हूं ।।

हैं बादल बिजलियां सब साथ मेरे ।

शफ़क़ जैसा चमकना चाहता हूं ।।

मिटाने ज़ुलमतें इस दो जहां की ।

मैं सूरज सा निकलना चाहता हूं ।।

मुजाहिद नूर सा रोशन हुआ हूं ।

अंधेरों को कुचलना चाहता हूं ।।

- मुजाहिद चौधरी

   एडवोकेट , हसनपुर (अमरोहा )

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