#अहसासे मुजाहिद
भंवर से अब निकलना चाहता हूं ।
मैं फिर मंज़िल बदलना चाहता हूं -
मैं अपने ख्वाब को मिसमार कर के ।
समंदर सा मचलना चाहता हूं ।।
मोहब्बत का नशा अब जा चुका है ।
सहारा दो संभलना चाहता हूं ।।
हैं बादल बिजलियां सब साथ मेरे ।
शफ़क़ जैसा चमकना चाहता हूं ।।
मिटाने ज़ुलमतें इस दो जहां की ।
मैं सूरज सा निकलना चाहता हूं ।।
मुजाहिद नूर सा रोशन हुआ हूं ।
अंधेरों को कुचलना चाहता हूं ।।
- मुजाहिद चौधरी
एडवोकेट , हसनपुर (अमरोहा )