महंगाई ,बेरोजगारी ,भ्रष्टाचार से कब तक भागोगे सरकार

Update: 2022-08-24 08:58 GMT


बृजेश कुमार वरिष्ठ पत्रकार

देश में अमृत-महोत्सव मनाया जा रहा है । घर घर तिरंगा, सरकार की महत्वाकाक्षी योजना को विपक्ष का समर्थन भी मिला।2022 में देश को आजादी मिले हुये लगभग 75 साल हो गये । देश निरंतर सतत गति से अपनी विकास की गाथा गढ़ रहा है ।

मुश्किल तब आती है जब देश में अराजकता का माहौल पैदा किया जाता है। आत्मा चीख उठती है -जब हम सुबह अखबार का पन्ना पलटते ही देखते हैं कि बच्ची का बलात्कार हुआ , महिलाओं के साथ रेप छेड़छाड़ की घटनायें हो रही हैं ,देखकर आत्मा चीख जाती है ,दिल द्रवित होता है ,रोता है ,जैसे कोई हमारी आत्मा का रेप कर रहा हो।लेकिन किसी से कुछ कह नहीं सकते है । बस अंदर ही अंदरअपने आंसू को समेट लेते है।दूसरी तरफ देश में चमचमाती सड़के हाई फाई बिल्डिंग इंफ्रास्ट्रकचर देश न्यू इंडिया की कहानी गढ़ते है।ऐसे में अब उड़ीसा,असम, बिहार या अन्य पिछड़े इलाकों में रहने वाला व्यक्ति भारत का प्रतिनीधित्व करता हुआ नजर आता है । जहां तमाम अभावो को बाद भी लोगों के चेहरे पर जो मुस्कराहट है। सुकुन की है ,संतुष्टी की है आनन्द की है। लेकिन लखनउ मुंबई या अन्य शहरों में रहने वाला न्यू इंडिया का हिस्सा जरूर है लेकिन उसके लिये हवा पानी तक दूषित है। या यों कह सकते है देश में हो रहे अपराध का अधिकतर भाग इसी न्यू इंडिया में होते हैं ,या इसी से प्रेरित होते है।

देश की पृष्ठभूमि लिखना इसलिये भी जरूरी था क्योंकि देश में सत्ता परिवर्तन के साथ तमाम परिवर्तन देखने को मिलते हैं। हम बिल्कुल बात दो करोड़ रोजगार या 15 लाख की नहीं करेंगें ।बात करनी होगी मूलभूत सुविधाओं की जो आम व्यक्ति को मुहैया कराया जाना चाहिये । जो जीवन जीने के लिये जरूरी है।या व्यक्ति को इस योग्य बनाया जाना चाहिये जिससे व्यक्ति जीविकोपार्जन कर सके । हम बिल्कुल सुविधा भोगी लोगों की बात नहीं कर रहे हैं। हमारी बात उनके लिये है जिन्हे सरकार द्वारा चुनाव के समय राशन बांटा गया । या उनसे वादा किया गया कि 2022 का अमृतमहोत्सव वाकई अमृतकाल हो सकता था ।जब हर व्यक्ति के पास तिरंगा लगाने के लिये घर होता । बात साफ सुधरी सी है देश में रोजगार के अवसर उपलब्ध कराये जाने चाहिये। प्रत्येक व्यक्ति का अधिकार है कि सम्मान पूर्वक जीवन यापन करे।

खैर सत्ता में बैठे हुक्मरानों को यह बात तभी तक समझ में आती है, जब चुनाव आ जाते हैं। तभी सरकार पूरे लावलश्कर के साथ दलित या झुग्गी झोपड़ी में रह रहे लोगों के घर भोज में सम्मिलित होती है ।हर घर तिरगां कहां से होगा भाई जब लोगों के पास घर ही नहीं है। 2022 में बुलेट ट्रेन भी रफ्तार पकड़ने वाली थी खैर वह भी मामला अभी ठंडे बस्ते में है। अब सिर्फ महंगाई है जिस पर विपक्ष ध्यान दे रहा है। हालांकि महंगाई को भी सरकार बरदान बताने में लगी है।पेट्रोल डीजल हो या अन्य वस्तुओं के दाम आसमान पर तो सरकार ने जीएसटी अन्य प्रकार के टैक्स बढ़ाकर धन वसूलने का काम किया है। रोजगार को सरकार नें कभी प्राथमिकता दी ही नही तो दूसरी तरफ विकास की ढपली बजाती रही । जब भी तह में जायेंगे तो पता चलेगा कि उड़ीसा में सड़क के किनारे सब्जी बेचने वाली ताई शांतीदेवी इसलिये मर गयी कि उनके पास इतने पैसे नहीं थे कि बाजार से समान खरीदकर बेच सके । पहले उनकी सब्जी जो घर में पैदा होती थी इसी से खर्च चलाती थी।

नोयड़ा के सेक्टर 62 में जूस की दुकान चलाने वाला नवीन पहले जूस बेचकर कुछ पैसे कमा लेता था जिससे कुछ पैसे घर भेजता था और कुछ से खुद दिल्ली में जिंदगी बीता रहा था । अब महगाई नें जूस की दुकान बंद कर दी तो दूसरी तरफ बिहार दोबारा चला गया । अब शायद ही दोबारा वह अपनी दुकान नोयडा ,दिल्ली में लगा पाये । खैर यह किसी एक नवीन जूशवाला या शांतिदेवी की बात नहीं है । बात है हर घर की है ।और उस युवा की जिसने सरकार से उम्मीद्द लगा रखी थी कि देश में हमें भी प्राथमिकता दी जायेगी। परंतु आज तक का इतिहास कभी कोई झुठला नहीं सका है किसी किसी युवा के हिस्से में कभी कभार ही मोती आये होंगें अन्यथा सरकार लाठी ही देती है । फिर वही निराशा , वही उन्माद , वही कमर तोड़ महंगाई । आम जनता तो बस टीवी में बैठी देखती रहती है । देश बिकसीत हो रहा है। अर्थव्यवस्था आसमान में है । बुलेट ट्रेन आ रही है ,दो करोड़ रोजगार मिल रहे , खैर आते आते जनता के हाथ है । मीठे मीठ लोकलुभावन भाषण । क्या ऐसे ही देश अमृत महोत्सव मनायेगा ।क्या कभी जरूरी मुद्दों पर बहस होगी। या जरूरी मुद्दों को हमेशा की भांति गैर जरूरी ही समझा जायेगा। क्या कोई खुलकर बोलेगा अब बस बहुत हुआ झूठ का कारोबार ,जनता नहीं सहेगी अबकी बार । देश के प्रत्येक नागरिक को सोचना होगा,जिम्मेदारी लेनी होगी ,कि हमारा देश सही दिशा में हो।

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