आज के दौर में...

विकराल महंगाई और एकल परिवार के अलगाववादी दौर में...

Update: 2021-06-29 06:27 GMT

आज के दौर में

हे अतिथि,

तुम बिन बुलाए मत आना

बुलाएं तभी आना,

और

एकाध दिन ही रुककर

अतिथि धर्म निभा जाना।

हे अतिथि,

विकराल महंगाई

और एकल परिवार के

अलगाववादी दौर में

ज्यादा दिन रुकने वाला

अतिथि 'देव' के समान नहीं

वरन बिन बुलाए

'आफ़त' के समान होता है।

हे अतिथि,

एक कड़वी बात बोलता हूं,

दिल का राज खोलता हूँ,

तुम्हारे आने की खबर,

तुम्हारे नहीं आने की

खुशी पर ग्रहण लगा जाता है,

तुम कब जाओगे ! कब जाओगे !

मन में यही सोच हावी रहता है,

घर में एक अदृश्य सा

तनाव बना रहता है।

@@-शैलेन्द्र पटवा

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