सुबह की दिनचर्या चल ही रही थी कि फोन घनघनाने लगा!देखा तो पता चला कि उखरा से मुसद्दी भइया याद कर रहे हैं।लपक कर फोन उठाया!हमेशा की तरह पालागन दाग दिया!
लेकिन उधर से लरजती आवाज में शुद्ध अंग्रेजी का वाक्य सुनाई दिया-मे गॉड ब्लेस यू डियर!एक पल को मैं चौंका!मुझे लगा कि हमारे खालिस देसी मुसद्दी भइया अंग्रेजी कैसे बोलने लगे।इतने में आवाज आई-दिस इस शुक्ला फ्रॉम उखरा! मैं अचकचा गया!मैंने कहा -अरे सुकुल दद्दा आप!आज तो सुखद आश्चर्य की बात है। आपने सीधे याद कर लिया।मुसद्दी भइया कहाँ हैं।
इस पर सुकुल दद्दा जोर से हंसे और बोले-मुसद्दी गाय दुह रहे हैं।वाकी सब भी अपने अपने काम में लगे हैं।फोन मेरे सामने पड़ा था।मैंने सोचा जब तक सब काम में लगे हैं तब तक तुमसे ही बात कर ली जाय।
मैंने कहा- अहो भाग्य जो आपने याद किया!
सुकुल दद्दा ने बीच में ही बात काट दी और कहा-अरे तुम्हारा कहाँ,आज तो दिन उन लोगों का बन रहा है जो शाम को अशोक हॉल में लाइन में लगाये जायेंगे!अभी वे आम हैं!शाम को खास हो जाएंगे!
मैंने कहा-दद्दा सो तो है!मंत्री बनना सबकी किस्मत में कहां!
दद्दा जोर से हंसे!अचानक गम्भीर आवाज में बोले-लल्ला अब जमाना बदल गया है।पहले जब मंत्री बनाये जाते थे तब उनकी एक हैसियत होती थी।मुखिया उनकी योग्यता देखता था। और अब.....ध्यान इस बात का रखा जाता है कि किसका बुद्धि से कोई वास्ता नही है। किसको मंत्री तमगा देने से कौन सा कबीला खुस होगा!चुनाव में नाच नाच के वोट देगा!
आज मंत्री चुनने का दायरा उसी तरह का है जिस तरह गांव के लोग पशु मेले में गधा घोड़ा खच्चर या बैल चुनते हैं।सबसे पहला और शायद आखिरी दायरा होता है--जिस राह चलाया जाए उस पर चलता रहे!जिधर घुमाया जाए उधर घूम जाए!जो चारा नाद में डाल दिया जाए वह खाकर पेट भर ले।न सींग हिलाए न लात चलाये!
तुम्हें याद होगा कि कुछ लोग सिर्फ बाड़ा भरने के लिए जानवर लाते हैं! तो कुछ दूसरों को दिखाने के लिए!कुछ तो सिर्फ इसलिए कि वे खूंटे पर लीद करते रहें!उनकी पहचान बाड़े के मालिक से जुड़ी रहती है। काम कितना भी करें नाम मालिक का ही चलता है।
मैंने कहा दद्दा आपकी बात तो सही है!दद्दा बोले सवाल बात का नही है!सवाल है मुखिया की पसंद का।अब देख लो नजर घुमाकर!जो पहले से हैं वे क्या कर रहे हैं!है किसी की अलग पहचान!कर सकता है कोई अपने मन का काम और मन की बात!
आज जो आएंगे उनका भी हाल ऐसा ही होगा।उनके भक्त खुश होंगे कि वे मंत्री बन गए!लेकिन उनकी हालत क्या होगी वह पहले वालों से पूछ लो।
दरअसल उनकी हालत शतरंज के मोहरों और मिस्त्री के टूल बॉक्स के औजारों जैसी होगी।सब एक डिब्बे में रहेंगे। न कोई बड़ा न छोटा!न कोई राजा न कोई प्यादा!सब एक हैसियत पर।जिसकी जरूरत हुई वह इस्तेमाल किया गया और वापस बॉक्स में पटक दिया गया।
इसलिए आज जो आ रहे हैं वे खुद चाहे न समझें लेकिन हम तो समझ रहे हैं कि बाड़े में कुछ नए आएंगे।एकाध दिन उछलेंगे फिर लाइन में लग जाएंगे!सबके मुंह सिल जाएंगे!कोई आईने के सामने भी मन की बात नही करेगा।बस इस बात पर खुश होगा कि वह अकेला नही है।राजा और वजीर भी उसके ही जैसे हैं।
और मुखिया--वह तो हमेशा की तरह बहुत खुस!बाड़ा भर गया।दिखाने को बताने को किसिम किसिम के प्राणी आ गए!उसका नाम और बड़ा हो गया।सब कबीले खुस!और मुखिया!वह तो रँगाखुश!
हां यह जरूर है कि श्वान प्रजाति से मुकाबला कर रहे नारद के अनुयायी कुछ दिन चिल्लाते रहेंगे।कहानियां सुनाते रहेंगे!नफा नुकसान गिनाते रहेंगे!लेकिन उतना ही जितना उनके कागज में लिख दिया गया है। बस!इससे ज्यादा कुछ नही है।वैसे आज तो दिन भर कुकुराहु होगा। सुनो औऱ मौज लो!
गॉड ब्लेस यू माई डियर!यह कह कर दद्दा ने फोन काट दिया।अब आप ही बताओ कि दद्दा सही कह रहे हैं कि नहीं!