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आँखें अपनी मूँद
बनोगे तुम धृतराष्ट्र
देखोगे फिर ह्रास
सकल का सर्वनाश ।
कितने शकुनी
घात लगा कर बैठे हैं ,
अब न किया सत्य -चिंतन
तो होगा नाश ।
दुर्योधन दुर्बुद्धि धारक
कई यहाँ ,
इनके पथ का अंत -
सदा ही सर्वनाश ।
कितने चौसर बिछे
यहाँ षडयंत्रों के ,
संभले न तो होगा
काल का भ्रू विलास ।
सत्य नहीं पहचाना
तो फिर पछताना ,
एक दिन टूटेगा
अवश्य यह मोह पाश ।
- वंदना तिवारी,
लखनऊ, उत्तर प्रदेश