(ज़हरखुरानी के पितामह की जीवनी)
सिडनी गॉटलिएब अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के चीफ केमिस्ट थे जो 1999 में संदिग्ध तरीके से मर गए। उनको 1951 में सीआईए ने एक प्रोजेक्ट का जिम्मा दिया था - मनुष्य के दिमाग को बदलना। इसके लिए उन्हें पहले आदमी के भेजे से दिमाग गायब करने की तकनीक खोजनी थी, फिर उसमें नया दिमाग डालने की दूसरी तरकीब। पहला वाला काम बहुत पहले उन्होंने निपटा लिया था। दूसरा वाला नहीं पूरा हुआ। इस शोध में उन्हें दुनिया के किसी भी मनुष्य को अपना सब्जेक्ट बनाने की खुली छूट दी गई थी। इस प्रोजेक्ट में कई लोगों की जान गई।
प्रोजेक्ट का नाम था MK-Ultra, अमेरिकी इतिहास में मनुष्य पर प्रयोग का सबसे घातक प्रोजेक्ट। दिलचस्प है कि आज से सत्तर साल पहले अमेरिका मनुष्य के दिमाग को नियंत्रित करने पर ठोस काम कर रहा था, लेकिन इससे जुड़े साइंस फिक्शन कई साल बाद छप कर आए। सोचिए, सत्तर साल के इस काम का आज नतीजा कहां पहुंचा होगा? ये पोस्ट जहां मैं लिख रहा हूं, वह जगह उसी प्रोजेक्ट के विस्तार का हिस्सा है। फेसबुक, वाट्सएप, ट्विटर, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, इत्यादि सब कुछ उसी सिडनी गॉटलिएब के बोए बीज की फसल है जिसने फिदेल कैस्त्रो और पैट्रिस लुमुम्बा की हत्या के लिए ज़हर बनाया था।
इतिहास के इस सबसे बड़े ज़हरखुरान की जीवनी अाई है, जिसे ब्राउन यूनिवर्सिटी के स्टीफेन किंजर ने लिखा है। नाम भी सही रखा है - Poisoner in Chief यानी ज़हरखुरानों का उस्ताद! मैंने अपनी प्रति मंगवा ली है। आप भी खरीद लें, अमेज़न पर है। पढ़ कर सोचें कि आपका दिमाग आपके पास है भी या नहीं। अपने यहां तो दिमाग हद से हद घास चरने जाया करता था या दूसरे का दिमाग चाटता था। क्या जाने आजकल घास के बजाय किसी दूसरे दिमागदार को चरने के काम आ रहा हो? और हमें पता भी न चल रहा हो?