नेताओं की सभाओं में खाली कुर्सियां 'घिनौनी' राजनीति के प्रति जनता का दिनोंदिन बिगड़ता जा रहा जायका और बदल रहा मिजाज

Update: 2019-03-29 11:59 GMT

नेताओं की सभाओं में खाली कुर्सियां 'घिनौनी' राजनीति के प्रति जनता का दिनोंदिन बिगड़ता जा रहा जायका और बदल रहा मिजाज मानिए। भीड़ अब जुटती नहीं, जुटाई जाती हैं। तमाम तिकड़मों के बाद। सभाओं में भीड़ किसी नेता की लोकप्रियता न समझा जाना चाहिए। इसका मतलब बस इतना समझा जाना चाहिए कि थैली का मुँह खोलने में उदारता बरती गई है।


आने वाले दिनों में नेताओं को भीड़ की आक्रामकता भी झेलनी पड़ सकती है। अब पेड़ बबूल का बोया है फिर आम तो फलने से रहा। अभी पटना में राहुल गांधी और पीएम मोदी की सभा में गांधी मैदान की उदासी झलक रही थी। मेरठ में पीएम की सभा में कुर्सियां खाली देख सीएम योगी का चेहरा तमतमा उठा। अब आप फिर कहेंगे कि इतनी भीड़ तो लालू जी के पान खाने के दूकान पर रुकने के दौरान जुट जाती है।


उपमाएं खुशफहमी के लिए तो ठीक है लेकिन यह आपके शब्दों को वोट में तब्दील नहीं करती हैं। दूसरों को जलील करने के लिए अगर ऐसे शब्द गढ़ते हों तो गढ़ते रहिए। याद करते रहिए अपने अच्छे दिन। लेकिन जनता के बदलते मूड को मापने का थर्मामीटर तैयार रखिए। कब तक लोगों को बेवकूफ बनाएंगे। 

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