तारीख़ 25 मार्च। पन्ना नंबर दो। महासमर 2019। इस पन्ने पर छोटी-बड़ी 14 ख़बरें हैं। 7 ख़बरें भाजपा नेताओं के बयान पर बनाई गईं हैं। मुख्यमंत्री योगी, उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य, जे पी नड्डा, उमा भारती, विनय कटियार, साध्वी प्राची, भाजपा विधायक सुरेंद्र सिंह। बयानों के आधार पर सातों खबरें विस्तार से छपी हैं। कुछ बड़े बॉक्स में छपी हैं। तीन ख़बरें भाजपा से ही संबंधित हैं मगर उनमें चुनाव को लेकर भाजपा की क्या रणनीति होगी, उसकी रिपोर्टिंग है। एक ख़बर है कि मुलायम सिंह के दामाद ने थामा केसरिया दामन। इस तरह 11 ख़बरें भाजपा नेताओं के बयानों पर और भाजपा के बारे में हैं। एक खबर ये है कि भाजपा के किसी प्रवक्ता आई डी सिंह ने अखिलेश यादव को आज़मगढ़ में अपने घर में चुनाव कार्यालय खोलने की पेशकश की है। एक ख़बर जनता की है जो आलू किसानों की है। पहले आलू किसानों की ख़बर की समीक्षा करते हैं।
श्वेतांक रिपोर्टर हैं और रिपोर्ट हापुड़ की है। हेडिंग है "इस बार आलू किसानों को अच्छे दाम मिलने की जगी आस। " इस ख़बर को बड़े बॉक्स में छापा गया है जिससे लगे कि प्रमुखता दी गई है। मगर इसमें ख़बर आधे से भी कम स्पेस में है। आलू की तस्वीर छपी है और दो किसानों की तस्वीर के साथ बयान छापे गए हैं। पिछली बार दाम नहीं मिले, कितने मिले, इसका कोई ज़िक्र नहीं जबकि हेडिंग यह है कि इस बार आलू किसानों को अच्छे दाम मिलने की जगी आस। पिछले बार क्या हुआ था, रिपोर्ट में एक लाइन नहीं है। ख़बर में यह है कि धनौरा के किसान आलू को जल्दी से कोल्ट स्टोरेज पहुंचाना चाहते हैं। श्वेतांक लिखते हैं कि "अब दाम उचित मिल जाए तो मेहनत सफल हो जाए।" क्या दाम चाहते हैं, क्या दाम मिला था, इसका कोई ज़िक्र नहीं है।
रिपोर्टर आगे लिखता है कि आलू के भंडारण से किसान खुश हैं। दाम का पहलू ग़ायब। अब खुशी का कारण भंडारण पर शिफ्ट होती है। ख़ैर लगा कि इलाके में सरकार ने आलू के भंडारण की व्यवस्था की होगी इससे किसान खुश हैं। आगे एक सब-हेडिंग मिलती है। "सिंभावली और गढ़मुक्तेश्वर में बने थे कोल्ड स्टोरेज।" श्वेतांक लिखते हैं कि जनपद में आलू की बुवाई 3500 हेक्टयेर में होती है। "इसमें सिंभावली और गढ़मुक्तेश्वर मेंआलू उत्पादन को बढ़ाने के लिए दो कोल्ड स्टोरेज स्थापित करने के लिए अनुदान की घोषणा की थी। लेकिन तीन सीज़न निकलने के बाद भी कवायद आगे नहीं बढ़ सकी है।" फिर सब- हेडिंग क्यों है कि सिंभावली और गढ़मुक्तेश्वर में बने थे कोल्ड स्टोरेज। जबकि यही रिपोर्टर सब हेडिंग के बाद लिख रहा है कि कोल्ड स्टोरेज तीन सीज़न निकलने के बाद भी नहीं बना। वह नहीं बताता है कि तीन सीज़न का मतलब घोषणा के दो साल बाद या डेढ़ साल बाद। इस सूचना को कितना नरम कर दिया गया है। कायदे से यही हेडलाइन होनी चाहिए थी। रिपोर्टर लिख रहा है कि कोल्ड स्टोरेज बना नहीं है मगर उससे पहले यह लिख रहा है कि आलू के भंडारण से किसान खुश हैं।
अब असली खेल देखिए। इस बाक्स आइटम के भीतर दो छोटे छोटे बयानों के बाक्स हैं। एक महिला किसान बीना की तस्वीर के साथ बयान है। बीना आलू के संदर्भ में नहीं कह रही हैं। वे जनरल बात कर रही हैं कि किसान को फायदा मिलता है तो मज़दूर को फायदा मिलता है। जब किसान खुश रहेगा तो मज़दूर को भी राहत मिलेगी। इस बार किसानों को सरकार ने छह हज़ार रुपये भी दिए हैं। इसके अलावा एक पुरुष किसान लल्लू सिंह के बयान हैं। लल्लू सिंह कह रहे हैं कि आलू के दाम नहीं मिल रहे हैं इसलिए भंडारण कर रहे हैं। मनवीर नाम के किसान का बयान है। उनकी तस्वीर नहीं है। मनवीर कह रहे हैं कि " आलू के अच्छे दाम मिल जाएं तो इस बार की मेहनत सफल हो जाएगी। अभी तो आलू कोल्ड स्टोर में ही रख दिया है। चुनाव के बाद भाव बढ़ने की उम्मीद है। तभी बेचेंगे। सरकारी क्रय केंद्र का कोई फायदा नहीं है। "
महीन अक्षरों में छपे इन दो बयानों को पढ़ने के बाद क्या आपको लगता है कि जागरण के डेस्क वाले ने हेडिंग सही लगाई। किसानों के असली बयान को हाईलाइट किया या फिर ख़बर को मैनेज कर दिया ताकि सब कुछ सरकार के पक्ष में दिखे। क्या आपने कभी इस तरह से ख़बरों का आपरेशन किया है। करना शुरू कर दीजिए वर्ना आपके दिमाग़ में भूसा भरा जा रहा है। वो बाद में आपरेशन से भी ठीक नहीं होगा। मुझे नहीं पता कि श्वेतांक की आत्मा क्या कहती होगी। वैसे ही हिन्दी पत्रकारिता विज्ञप्ति से आगे की पत्रकारिता नहीं है। अब इसमें एक रिपोर्टर आलू के किसानों की सही तस्वीर न लिख पाए तो समझिए कि क्या स्थिति है। नाम जागरण है इसके पत्रकार मदहोश हैं।
अब आइये। उन ख़बरों की हेडिंग देखते हैं तो बयानों पर छपी हैं और सभी की सभी भाजपा नेताओं के बयानों पर छपी हैं।
1. गठबंधन लुटेरो का गिरोह, इससे बचे जनता-योगी
2. विपक्ष का लक्ष्य ग़रीबी हटाओ नहीं बल्कि मोदी हटाओ- केशव प्रसाद
3. कांग्रेस की कोख से पैदा होता है आतंकवाद- कटियार
4. पाक से ज्यादा भारत में मुसलमान सुरक्षित-उमा भारती
5.मोदी के भय से माया नहीं लड़ रहीं चुनाव- साध्वी प्राची
6. सत्ता के लालच में विरोधी हो रहे एकजुट- नड्डा
7. सोनिया व सपना को बताया सास-बहू- सुरेंद्र सिंह
बाकी खबरों की हेडिंग है।
8.पश्चिम उप्र में भाजपा ने लगाई ताकत।
9.भाजपा के दिग्गज कल मथेंगे यूपी।
10. मुलायम सिंह के दामाद ने थामा केसरिया दामन।
11. हारी सीटों पर भाजपा ने बदल दिए समीकरण।
ये जागरण के महासमर 2019 पेज के पन्ने का रिपोर्ट कार्ड है। यूपी में कांग्रेस समाजवादी और बसपा और राष्ट्रीय लोकदल के अलावा न जाने कितने दल चुनावी मैदान में हैं। उनका इस पन्ने पर कोई प्रतिनिधित्व नहीं है। भाजपा के बयानों को हेडिंग बनाई गई है उसे पढ़कर लगता है कि पूरा पन्ना विपक्ष पर हमला कर रहा है। मगर उस पन्ने पर विपक्ष का एक भी जवाब नहीं है। इस तरह से आप पेज नंबर दो पर सिर्फ और सिर्फ भाजपा की खबरों को पढ़ते हुए पन्ना पलटते हैं। अब हम आते हैं पेज नंबर चार पर। इस पर भी महासमर 2019 लिखा है।
इस पन्ने पर छोटी बड़ी 9 ख़बरें हैं। ग्राफिक्स से बड़ी बड़ी तस्वीरें बनाई गई हैं। ऐसा भ्रम होता है कि यह पन्ना जनता के मुद्दे को रखने के लिए बनाया गया है। पहली खबर काफी बड़ी है जिसमें बताया गया है कि चुनाव चिन्ह क्या क्या हैं और इनमें किस तरह से बदलाव आया है। उसके बाद बड़ा मुद्दा का बाक्स है। तीन तलाक को बड़ा मुद्दा बताया गया है। यूपी में आए बाहर के दलों के खराब रिकार्ड पर एक विश्लेषण है। चौपाल पर जाट समुदाय के लोग क्या बात कर रहे हैं। ये पूरा पन्ना स्तरहीन है। सिर्फ पाठक को बताने का झांसा है कि कितना कुछ बताया जा रहा है। इसकी जगह सरकार की नीतियों की समीक्षा हो जाती। ईमानदार रिपोर्टिंग हो जाती तो मतदाता को मज़बूती मिलती। लेकिन जैसा कि आपने पेज नंबर 2 पर आलू की ख़बर देखी। ख़बर ही मैनेज लगती है।
पेज नंबर 13 और पेज नंबर 14 को महासमर 2019 का नाम दिया गया है। आइय़े इसे भी देख लेते हैं। पेजन नंबर 13 पर चुनावी विश्लेषण और कुछ खबरें हैं। पहला विश्लेषण आनंद राय का है। हेडिंग है पिता की विरासत और मोदी की छाया अखिलेश के लिए चुनौती। जयपुर से मनीष गोधा की रिपोर्ट है। हेडिंग है राष्ट्रीय सुरक्षा और मज़बूत सरकार है सबसे बड़ा मुद्दा। जालंधर से विजय गुप्ता की रिपोर्ट है। हेडिंग है फिर होगी किसानों के दर्द और नशे के मर्ज की चर्चा। अनंत विजय का विश्लेषण है जिसका शीर्षक है-" समय के साथ अन्य दलों के लिए अछूत होते वामपंथी दल।"
नितिन प्रधान की एक रिपोर्ट है कि सिर नही चढ़ पा रहा है पारदर्शिता का फंडा। नितिन प्रधान ने अपनी रिपोर्ट में इस बात का ज़िक्र नहीं किया है कि कई बार इस इलेक्टोरल बांड की पारदर्शिता को लेकर जायज़ सवाल उठे हैं। उन सवालों को भी रख सकते थे। एक दो पंक्ति में ही सही। ख़ैर नितिन प्रधान मान कर चलते हैं कि पारदर्शिता का फंडा सिरे नहीं चढ़ पा रहा है क्योंकि 1407 करोड़ रुपये के चुनावी बांड की हुई बिक्री।
इस रिपोर्ट के साथ यह बताया जा सकता था कि जनवरी में एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफार्म ने एक रिपोर्ट जारी की थी। इसमें बताया गया था कि अभी भी छह राष्ट्रीय दलों को 60 फीसदी से अधिक चंदा अज्ञात सूत्रों से आता है। यानी 20,000 से कम चंदा लेने पर नाम नहीं बताना पड़ता है। यह नियम अभी भी है। फिर भी इलेक्ट्रोरल बांड को पारदर्शिता का उदाहरण बताया जा रहा है।
एडीआर ने 20,000 से अधिक के चंदे का विश्लेषण किया है। 93 फीसदी फंड बीजेपी को मिला है। बाकी 7 फीसदी में पांच राष्ट्रीय दल हैं। 2017-18 में बीजेपी को 437 करोड़ मिले हैं और कांग्रेस को 26.66 करोड़। चंदे में इतने का अंतर है। यह आंकड़ा देखकर किसी को समझ आ जाना चाहिए कि कारपोरेट के पैसे से भारत की राजनीति में क्या बदलाव आ रहे हैं।
2017-18 में इलेक्टोरल बान्ड से जो फंड आया है उसका 95 फीसदी हिस्सा भाजपा के खाते में गया है। एडीआर ने लिखा है कि इस बान्ड के कारण स्थिति और बदतर हो गई है। पहले तो आप जान पाते थे कि टाटा ने दिया या अंबानी ने। अब आपको यह भी पता नहीं है कि किसने दिया। फिर भी कहा जा रहा है कि इलेक्टोरल बान्ड से पारदर्शिता आ गई है। आप पाठकों से अनुरोध है कि इस पर छपी अन्य ख़बरों को सर्च करें और पढ़ें। हिन्दी में न के बराबर मिलेंगे मगर अंग्रेज़ी में काफी मिलेंगी।
मुमकिन है कि जागरण ने किसी और मौके पर एडीआर की यह रिपोर्ट छापी होगी मगर जब इलेक्टोरल बान्ड को लेकर इतनी बड़ी खबर छापने का भ्रम पैदा किया गया है तो इन सब जानकारियों को देकर पाठक को सक्षम बनाया जा सकता था। भ्रमित पाठक से अच्छा है सक्षम पाठक। इसलिए अगर यह बताया जाता कि 1400 करोड़ के इलेक्टोरल बांड का 95 फीसदी भाजपा को गया है तो पाठक देख पाता कि कारपोरेट का झुकाव किस तरफ है। वह समझने की कोशिश करता है कि किस कारपोरेट का झुकाव भाजपा की तरफ है और क्यों हैं। बशर्ते पता चलता कि किसने इलेक्टोरल बान्ड खरीदा है। इस कानून से आप यह नहीं जान सकते तो ईमानदारी से बताएं कि क्या यह पारदर्शिता हुई?
अगर किसी भी अख़बार को भाजपा की सेवा करनी है तो भी सही और पूरी जानकारी उसके समर्थकों और मतदाताओं का हक है। क्या यह भाजपा समर्थकों का अपमान नहीं है? वे भाजपा को पसंद करते हैं क्या इसलिए उन्हें भरमाने वाली खबरें बताई जानी चाहिए। यूपी की राजनीति के तमाम पहलुओं को काट कर सिर्फ भाजपा भाजपा बताने से इन समर्थकों का मानस कैसा होगा। क्या भाजपा को समर्थन करने या उसे प्यार करने की यह कीमत चुकानी होगी उसके दिमाग़ को झूठ और भ्रम से भर दिया जाएगा? उन्होंने बीजेपी को पसंद किया तो उन्हें मूर्ख बनाए रखने का यह अभियान क्यों चलना चाहिए। क्या भाजपा समर्थकों को इसका प्रतिकार नहीं करना चाहिए। क्या वे एक ऐसा लोकतंत्र और एक ऐसा मीडिया चाहते हैं जहां सिर्फ भाजपा को ही आवाज़ मिले, बाकी विपक्ष को गायब कर दिया जाए? मीडिया भाजपा समर्थकों के साथ धोखा कर रहा है। उन्हें मूर्ख बना रहा है।
अब आते हैं पेज नंबर 14 पर। महासमर 2019 का रंग है। सोलह-सत्रह खबरें हैं। पहली खबर एक तस्वीर की है जो भोपाल से है। वहां भाजपा दफ्तर में कैलाश विजयवर्गीय ने सिक्योरिटी गार्ड का सम्मान किया है। कोई मोदी बनकर आया है तो गार्ड सेल्फी खींचा रहे हैं। इसकी तस्वीर छापी गई है। उसके बगल में रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण का बयान छपा है। शीर्षक है सेना 26/11 के बाद भी तैयार थी। इस खबर में सीतारमण के कांग्रेस सरकार पर लगाए गए आरोपों को विस्तार से छापा गया है। उसके बाद एक बड़ी खबर है। शीर्षक है "गन्ना किसानों के बकाए पर योगी-प्रियंका में टकराव।" इस ख़बर में दोनों के आरोप-प्रत्यारोप हैं। गन्ना बेल्ट में जागरण के कई वरिष्ठ संवाददाता रहते होंगे। चाहा जाता तो वास्तविक स्थिति भी अपनी तरफ से जोड़ी जा सकती थी। मगर आरोप-प्रत्यारोप के बहाने विपक्ष को जगह देने का भ्रम पैदा किया गया है। चार पन्नों के चुनाव कवरेज में शायद यह पहली खबर है जो विपक्ष के आरोप के आधार पर बनी है।
प्रियंका की एक और खबर है कि वे 27 को रामनगरी में रोड शो करेंगी। उसके बगल में एक और खबर है कि उत्तर प्रदेश में सरकार काम बताएगी और संघ एजेंडा। किनारे में उमा भारती का एक और बयान है कि "अब आडवाणी जी को स्पष्ट करनी है स्थिति। " सपना चौधरी का यू टर्न, कांग्रेस ने कहा कि शामिल होने के सबूत। तृणमूल का अपने लोगों से कांग्रेस हटाने से इंकार। ये दो खबरें हैं। नीचे फिर भाजपा की ही ख़बर है। अमित शाह की आगरा रैली का कवरेज है। शीर्षक है "किसी के बेटे की उम्र हो गई इसलिए न चुनें पीएम-शाह।" कानपुर से स्मृति ईरानी की सभा का कवरेज़ है। "कांग्रेस के हाथ ने लूटा देश का खजाना। "
शाह और स्मृति की खबरों के बगल में भी विपक्ष की एक खबर है। राजद का झारखंड की सभी सीटों पर चुनाव लड़ने का का एलान। छग में रमन सिंह के बेटे समेत पांच और टिकट कटे। इस तरह हमने महासमर 2019 के चार पन्ने देखें। आप भी देखें। आपको पता चलेगा कि किस तरह से विपक्ष को गायब किया जा रहा है। मेरी टिप्पणी इन चार पन्नों तक ही सीमित है। क्या मध्य प्रदेश से लेकर यूपी और झारखंड और बंगाल तक सिर्फ भाजपा ही चुनाव में सक्रिय है। बाकी किसी दल के नेता की सभा का कवरेज नहीं है।
मैं अपनी इस बात पर कायम हूं। हिन्दी के अख़बार हिन्दी के पाठकों की हत्या कर रहे हैं। यह बात भाजपा समर्थकों के लिए भी लागू है और विरोधियों के लिए भी। वे भाजपा को चुनते हैं न कि अख़बार को। इसलिए मैंने कहा था कि आप ढाई महीने तक कोई न्यूज़ चैनल न देखें। मैंने इसके लिए अपवाद नहीं बताए थे बल्कि सभी चैनल न देखने की बात की थी। चैनलों पर चलने वाले प्रोमो पर न जाइये। देखिए देखिए करने के बाद भी आप न देखें। इसी तरह अख़बारों के बारे में सोचें। प्लीज़ आप अख़बार लेना बंद करें। आप पत्रकारिता को समाप्त करने के लिए अपनी जेब से 300 रुपया कैसे दे सकते हैं? क्या आप भारत के लोकतंत्र और उसके पाठकों-दर्शकों की हत्या के लिए पैसे दे सकते हैं?
हिन्दी के पाठक और दर्शकों पर बड़ा दबाव रहता है। उनके पास जानने के कम साधन और माध्यम होते हैं। ख़राब स्कूल और कालेज मिलता है। ऊपर से अगर ख़राब अख़बार मिले तो पूरी पीढ़ी का बेड़ा ग़र्क हो जाएगा। अगर इस तरह से उन्हें जानकारियों से वंचित किया जाएगा तो हमारी हिन्दी पट्टी वाकई गोबर में बदल जाएगी। इसलिए मेरी बातों को ध्यान से सुनिए। अख़बार पढ़ने और टीवी देखने का तरीका बदलिए। अगर वे नहीं बदल सकते हैं तो देखना पढ़ना बंद कर दीजिए। इसकी जगह किताब पढ़िए। जब आपको बिना जाने या भरमाए जाने पर ही किसी को वोट देने के लिए तैयार किया जा रहा है तो आप मीडिया के बग़ैर किसी को वोट कर दें। अपना समय और पैसा क्यों बर्बाद कर रहे हैं।