कबीरदास जयंती पर पढ़िए राकेश मधुर की कविता, हाय कबीर रोता क्यूँ है ??

नींद नहीं आती है जब तो रातों में सोचा करता हूँ दुनियां सारी जब सोती है हाय! कबीरा रोता क्यूँ है??

Update: 2021-06-24 19:39 GMT

नींद नहीं आती है जब तो

रातों में सोचा करता हूँ

दुनियां सारी जब सोती है

हाय! कबीरा रोता क्यूँ है??

सृष्टि सगरी ख़ूब बनायी

दृष्टि दे दुनियां दिखलायी

कहाँ ग़लत है कहाँ सही है

ये तो समझ तुझ ही से पायी

सूझ नहीं पड़ता है जब तो

रातों मेंं सोचा करता हूँ

लीला अपनी करने के हित

भव-निधि का भय बोता क्यूँ है??

काटो ख़ून नहीं है तन में

मारो टूटन नहीं बदन में

कैसा हो ,चाहते बनाना!!

पारस पत्थर इच्छा मन में

बूझ?? नहीं आती है जब तो

रातों में सोचा करता हूँ......

देह बिना जब भक्ति नहीं है

देहाध्यास चुभोता क्यूँ है??

तदाकार जब हो जाते हैं.....

एकम एक मेंं खो जाते हैं

तेरा मेरा, मेरा तेरा...

शबद गगन में खो जाते हैं

समझ नहीं पड़ता है जब तो

रातों मेंं सोचा करता हूँ....

एक हो गए हैं हम तुम जब...

कष्ट क्लेश फिर होता क्यूँ है??

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- राकेश मधुर ,

आगरा (उत्तर प्रदेश) 

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