कृषि बिल वापसी के सहारे पंजाब और उत्तर प्रदेश का विजयरथ
बिल वापिस लेने के पीछे एक तरफ जहां पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह के सहारे भाजपा अपनी पैठ मजबूत करने का अवसर देख रही है वही उत्तर प्रदेश में राकेश टिकैत और विपक्षी दलों के हाथों से एक बड़ा मुद्दा चुनावों से ठीक पहले छीनने का प्रयास किया है। राकेश टिकैत जो कहीं ना कहीं इस आंदोलन के बहाने अपनी राजनीतिक ज़मीन बनाने मे लगे थे यह उनके लिए एक बड़ी जीत है
कृषि बिल को वापस लेने का फैसला सरकार को आने वाले चुनावों में कितना लाभ पहूंचायेगा वह तो आने वाला वक्त ही बताएगा। लेकिन जिस प्रकार से मात्र पश्चिम उत्तर प्रदेश के कुछ खास संगठनों और देश के लगभग अस्सी प्रतिशत सब्सिडी पर कब्जा जमाएं बैठे पंजाब और हरियाणा के बड़े जमींदार किसानों के द्वारा राजधानी दिल्ली मे प्रवेश करने वाले सड़कों पर कब्जा करने और राजधानी में बवाल खड़ा करने की रणनीति ने सरकार को बिल वापिस लेने को मजबुर किया है उसने कई गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
सरकार को आने वाले चुनावों में कई गंभीर सवालों का सामना करना पड़ेगा और देखना होगा कि सरकार उन सवालों का सामना कैसे करेगी। बिल वापिस लेने के इस फैसले से भाजपा को इस बिल को मंजूरी देने से जो नुकसान हुआ है उसका आंकलन भी करने का समय काफी पीछे छूट गया है। वैसे बिल वापिस लेने का फैसला उतना भी अप्रत्याशित नही है क्योंकि पिछले दिनों पंजाब में जो राजनीतिक उथल-पुथल हुईं हैं और जिस तरह से कैप्टन अमरिंदर सिंह लगातार भाजपा शीर्ष नेतृत्व से मिलकर कृषि बिल वापिस लेने पर चर्चा कर रहे थे और सरकार उसपर सकारात्मक दिख रही थी उससे यह आभास हो गया था कि सरकार बिल वापिस लेने पर राज़ी हो सकती है।
बिल वापिस लेने के पीछे एक तरफ जहां पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह के सहारे भाजपा अपनी पैठ मजबूत करने का अवसर देख रही है वही उत्तर प्रदेश में राकेश टिकैत और विपक्षी दलों के हाथों से एक बड़ा मुद्दा चुनावों से ठीक पहले छीनने का प्रयास किया है। राकेश टिकैत जो कहीं ना कहीं इस आंदोलन के बहाने अपनी राजनीतिक ज़मीन बनाने मे लगे थे यह उनके लिए एक बड़ी जीत है लेकिन इसके साथ ही उनके समक्ष अपने को किसी राजनीतिक दल के समर्थक होने से बचाने की चुनौती है। क्योंकि इस पूरे आंदोलन में उन्होंने अपने को एक गैर-राजनीतिक व्यक्ति और किसानों को समर्पित नेता बताया था। अब जबकि सरकार ने कृषि बिल को वापस लेने का फैसला कर लिया है और उनके मांगों को स्वीकार कर लिया है तो अब देखना है कि उनका अगला कदम क्या होगा। जहां तक इस फैसले से राजनीतिक नफा-नुकसान की बात है उसमें सरकार की साख को गहरा धक्का लगा है क्योंकि उसके कई राजनीतिक सहयोगियों ने इस बिल के विरोध मे गठबंधन को छोड़ दिया है।
वही कृषि क्षेत्र मे निवेश लाने के सरकार के प्रयासों को तो धक्का लगा ही है अब अन्य क्षेत्रों में भी निवेश की संभावनाएं प्रभावित होंगी। कुल मिलाकर बिल वापिस लेने पर फैसला सरकार को पहले ही कर लेना चाहिए था जब विरोध अपने चरम पर था। बिल वापिस लेने का फैसला तब लिया गया है जबकि यह आंदोलन लगभग एक औपचारिकता मात्र रह गया है जिसको कुछ संगठनों के अलावा और कोई संगठन समर्थन नही कर रहे है और ना ही पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र गुजरात जैसे तमाम राज्यों मे किसानों ने इस बिल वापिस लेने के लिए कोई बड़ा आन्दोलन किया है।
इस सवाल पर जवाब सरकार को देना है लेकिन आने वाले चुनावों में विपक्ष इसे अपने विजय के तौर पर जनता के बीच ले जायेगा। कुल मिलाकर कह सकते है कि कृषि मंत्री तोमर ने इस मामले मे सरकार को बड़ा नुक़सान पहूंचाया है। लेकिन बिल वापसी के सहारे भाजपा उत्तर प्रदेश की सत्ता मे वापसी और पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह के सहारे विजयरथ पर सवार होने की राह देख रही है। अब यह राह कितना आसान है यह समय ही बताएगा।
(डॉ रविन्द्र प्रताप सिंह, शोध सहायक, भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली)