हम दीप जलाए बैठे हैं...

बहते थे कभी जो हवाओं में..

Update: 2021-07-22 11:34 GMT

हंसते हैं वो पर दिल ही में -

प्रतिकार छुपाए बैठे हैं ,

हम भोले-चित्त समर्पण में -

संसार लुटाए बैठे हैं l

बहते थे कभी जो हवाओं में

आती - जाती सांसे बनकर ,

वह आज मिटाने को हम को

एक आग जलाए बैठे हैं l

जो बैठ गगन के साए में -

अनिमेष निरखते रहते थे ,

बोझिल पलके हैं आज बहुत

नजरों को झुकाए बैठे हैं l

जो करुणा मेघ बरसते थे

मेरे बंजर खलिहानों पर,

अब वह कजरारे दामन में

बिजली को छुपाए बैठे हैं l

शायद कुछ घाव पुराने थे,

या बस लड़ने के बहाने थे ,

जो साहिल बनकर आए थे -

मजधार छुपाए बैठे हैं l

उनके दिल की गहराई के

अब अंधकार हम क्या नापें?

उन के गलियारे रोशन हों -

हम घर को जलाए बैठे हैं ।

अब मौन द्वंद्व की बेला में

किसका मरना,किसका जीना,

इस झंझा में हम आशा का

एक दीप जलाए बैठे हैं l

- वंदना तिवारी

लखनऊ

उत्तर प्रदेश

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