अक्सई चिन अरे वही जिसे नेहरू चीन से हार गए, बड़ा खुलासा

कोई चीज आप तब हारते हो, जब वो आपके पास पहले से हो। तो बताओ, अक्सई चिन भारत मे कब शामिल हूुआ? वो कौन वीर था। किसने इसे जीतकर भारत मे मिलाया। मौर्य ने, मुगल ने, अग्रेजों ने ??

Update: 2020-09-10 12:08 GMT

मनीष सिंह 

आएगा भी नही, पर मै आपको बताता हूं। अक्साई चिन जीतने वाला न कोई वीर था, न राजा, न जनरल। वो एक नक्शानवीस था, सर्वेयर... नाम था जानसन । तो जानसन भईया ने नक्शे पर एक लाइन खींची और अक्साई चिन भारत मे आ गया। यह 1855 की बात है।

आप कहेंगे कि ठीक है भई। नक्शे पर ही सही सही, नेहरू को क्या हक था उसे छोड़ देने का।

यह भी गलत है। चीन को अक्साई चिन भेट करने वाला भी कोई राजा, जनरल या भारत का प्रधानमंत्री नहीं था। वो एक दूसरा नक्शानवीस था। ब्रिटिश अफसर, एन्वॉय / राजदूत था । चीन को सन्तुष्ट करने के लिए भाई ने नक्शे पर दूसरी लाइन खीची, और अक्साई चिन चाइना मे चला गया।

इन दूसरे भैया का नाम था मैक्कार्टनी... साल था 1896। नेहरू इस वक्त सात साल के थे। पर मक्कार मैक्कार्टनी का सारा नजला नेहरू पर डाला जाता है। नीचू फोटुक भी है बन्दे की, देखिए-किसी ऐंगल से नेहरू जैसा दिख जाए शायद...

तो किस्सा जरा विस्तार से

डोगरा सरदार गुलाब सिंह ने अंग्रेजो को पचहत्तर लाख रूपये देकर कश्मीर का राज खरीदा। अब राजाजी का राज है तो एक प्रापर नक्शा भी होना चाहिए। तो एक अंग्रेज नक्शानवीस बुलाया। जानसन भाई ने घूमघाम कर नक्शा खींचना शुरू किए। कायदे से गुलाब सिंह का राज, लद्दाख से एक रत्ती आगे नहीं था।

पर घूमते घूमते जानसन भैया दू SSSSSSSSSSSSर तक निकल गए। अक्सई चिन का इलाका बंजर रेगिस्तान है। किसी ने रोका न टोका, जहां तक उनका घोड़ा गया, भाई ने जानसन लाइन खींच दी।

आए राजा साहब के पास, राजा साहब को वह भी छोटा लगा। असल मे एक वीर हुए थे, जोरावर सिंह। जोरावर सिंह साहब, और गुलाब सिंह दुन्नो सिख राजा के फौजदार हुआ करते थे। जोरावर सिंह कश्मीर इलाके मे लड़ते लड़ते तिब्बत तक चले गए थे। वहीं शहीद भी हो गए।

"तो जहाँ हुए शहीद जोरावर, वो तिब्बत हमारा है"... राजा साहब ने जानसन के नक्शे मे और 18000 स्क्वेयर किमी जोडकर राज्य का नक्शा छपवा लिया। महल की दीवार पर टांग लिया। एकदम दिग्विजयी- दिग्विजयी टाइप फीलिंग आई।

अब समझिये कि सुभाष चंद्र बोस ताइवान मे शहीद हुए, तो हम चाहें तो घर भीतर नक्शा टांग सकते है अपनी सीमा ताइवान तक दिखाकर। ताइवान को कोई दिक्कत नहीं होगी, जब तक उसे यह पता न चले। तो ठीक इसी तरह चीन को भी यह सब पता नही था। जब पता चला, उसने ना-नुकुर करना शुरू किया। कोई 1896 की बात है।

तब भारत के वाइसराय लार्ड एल्गिन थे। उनके दूत थे मैक्कार्टनी भैया। उन्होने नक्शे पर दूसरी लाइन खींच दी, इसमे अक्सई चिन का इलाका चीन का दिखा दिया। पर मैक्कार्टनी लाइन को भी चीन के राजा ने स्वीकृति नही दी।

नहीं दी तो ठीक है भाई। अब अंग्रेज वापस जानसन लाइन के क्लेम पर आ गए। उधर अपने कश्मीर राजा तो जानसन लाइन से भी आगे का नक्शा बनाकर रखे थे। सब अपनी अपनी जगह खुश थे।

अक्सई चिन की वास्तविक जमीन पर किसी का कब्जा नहीं था। फिर याद रखिए, जमीन पर राजा के शासन का आखरी बिंदु लद्दाख ही था। यही लेकर वे भारत मे मिले।

1947 मे कश्मीर अपना नक्शा लेकर भारत मे शामिल हो गया। 1949 आते आते तिब्बत चीन बन गया। उसने बना ली रोड। इसका पता हमको और बाद मे चला। असल मे अक्साई चिन और लद्दाख के बीच के पहाडों के कारण, उधर से चीन का आवागमन सुगम है। हमारे लिए वो इलाका कटा हुआ है। वहां रोड बनने का पता तब चला, जब चीन ने रोड के नक्शे प्रकाशित किए। भई, ये रोड तो राजा वाले नक्शे भीतर थी। हमने आपत्ति की। झगड़म झगड़ी शुरू हो गईं

इस इलाके मे कभी भी कश्मीर राजा या अग्रेजो या चीनीयों की सेनाएं नही लगाई गई थी। नेहरू सरकार ने पहली बार सेनाऐं बढाई वो अक्साई चिन को आधा पार कर चीनी रोड तक पहुंचने वाली थी, कि चीनियों ने भी प्रतिरोध किया। आगे बढने की इसी नीति को फारवर्ड पालिसी कहते है। जो बाद मे युद्ध का कारण बनी।

नक्शेबाजीे अभी एक तरफ रखिए। नक्शे पर जो पतली सी रेखा खीची जाती है, वह आपकी पेन की निब की मोटाई, और नक्शे के स्केल के अनुसार, जमीन पर पांच से पंद्रह किमी तक मोटी हो सकती है। इसलिए नक्शे तब तक मायने नही रखते जब तक जमीनी कब्जा न हो।

तो जमीन हमने नए इलाके कब्जे किए है, जहां आज झड़पे होती है. जहां हम खड़े हैं, लद्दाख से आगे का वो इलाका नेहरू ने जीत कर दिया। कोई सरकार इससे आगे नही बढ़ सकी। नेहरू ने एक इंच नहीं हारा, बल्कि अक्साई चिन के एक हिस्से को जीता और देश की सीमाऐं, देश का मान बढाया।

नेहरू ने जो खाली इलाके कब्जे किए, हमारी अपेक्षा थी कि वह और आगे बढ़कर राजा के बनाए मैप की बाउंडी तक चले जाते। पर इस बंजर इलाके सुरक्षा के यूजलेस झमेले और रेगिस्तान विजय की निस्सारता की वजह से उन्होने " नाट ए ब्लेड आफ ग्रास इज ग्रोन देयर वाला बयान दिया"। यह अक्साई चिन छोड़ देने का बयान नहीं था। यह हम जहां है, उससे आगे बढ़ने की निस्सारता पर था।

तब बेवकूफ गाल बजौने गंजा सर लेकर देशभक्ति दिखाने आ गए। इन गंजो को खुद तो सर कटवाना नही था। वो जानते है कि सर तो कटना फौजियों का है, और मानते हैं कि फौजी बने ही मरने के लिए है।

आज भी मैक्कार्टनी लाइन चीन की मांग है। पर राजाजी का मैप तो जानसन लाइन से भी 18000 स्क्वेयर KM आगे का बना हुआ है। देश का नक्शा भी वही है। गली मोहल्लो मे हमने तय किया है कि हम अपने गंजे सर पर झूठ की पगड़ी लगाकर इस मामले मे देश के संसाधन लुटाते रहेंगे। अपनी सरकारो को दबाव मे रखेंगे।

इस किस्से का तात्पर्य चीन का समर्थन, भारत के क्लेम के हल्केपन गिनाना या नेहरू का बचाव नही है। मै इसलिए लिख रहा हूं ताकि वास्तविकता आपको पता चल सके। यह सच्चाई आपको भाजपा या कांग्रेस, नेहरू, इंदिरा, मोदी या राहुल सार्वजनिक रूप से नही बता सकते। यह तो देश की ओर से क्लेम छोड़ने वाली बात होगी। चुप रहिये, क्लेम बना रहेगा।

फिर आज सत्तर साल बाद इस इलाके की स्ट्रैटेजिक पोजीशन बदल गई है। पाकिस्तान और चीन के बीच बने कराकोरम हाइवे पर हमारा दबाव बना रहेगा, अगर हम अपने वर्तमान इलाके पर कब्जा बनाए रखें। और इतना काफी है।

इतने से ही चीन पाकिस्तान प्रेशर मे हैं। सियाचिन और दौलत बेग ओल्डी (नक्शा देखिये) में हम उनकी रोड की जद में हैं वे अपनी रोड से पच्चीस तीस किमी का मार्जिन चाहते है। हमे डटे रहना है। मगर पूरे अक्सई चिन का ख्वाब देखने, और नक्शे देखकर आहें भरने से बाज आइये।

और यह भी याद रखिए, भाई। कि नेहरू के रहते हिंदुस्तान मे भारत ने इलाके जोड़े है, खोए कभी नही। इस विजेता नेहरू को, हारा हुआ नेहरू कहना हमारी ऐतिहासिक मक्कारी है।

यह मक्कारी जिनकी सिखाई हुई है, अब उनको वीरता दिखाने का अवसर आया, तो वो चीन का नाम लेने से भी डरते हैे।

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