कर्मचारी संघों की काम करने के लिए तापमान की सीमा तय करने की मांग

यूरोपीय देश ठंडे तापमान के लिए जाने जाते हैं लेकिन उन्हें फिलहाल भयंकर गर्मी का सामना करना पड़ रहा है। गर्मी से यूरोपीय जनजीवन अस्त व्यस्त हो गया है।

Update: 2022-07-25 07:28 GMT

यूरोपीय देश ठंडे तापमान के लिए जाने जाते हैं लेकिन उन्हें फिलहाल भयंकर गर्मी का सामना करना पड़ रहा है। गर्मी से यूरोपीय जनजीवन अस्त व्यस्त हो गया है। गर्मी कहर बरसा रही है और कर्मचारियों के लिए हालात बेहद मुश्किल होते जा रहे हैं. ऐसे में इन लोगों ने मांग की है कि तापमान की एक अधिकतम सीमा तय की जाए ताकि कर्मचारियों को खतरे में ना डाला जाए।

हीट वेव के कारण पिछले हफ्ते स्पेन में तीन लोगों की काम के दौरान मौत हो गई थी। ऐसी घटनाएं दोबारा ना हों, इसलिए कर्मचारी संघों ने यूरोपीय आयोग से मांग की है कि बाहर खुले में काम करने वालों के लिए अधिकतम तापमान की सीमा तय की जाए। वैसे यूरोपीय संघ के कुछ सदस्य देशों में ऐसे नियम पहले से मौजूद हैं जिनके तहत अत्याधिक गर्मी के दौरान काम करने पर रोक का प्रावधान है। लेकिन अलग-अलग देशों के लिए तापमान की सीमा अलग-अलग है और राष्ट्रीय स्तर पर इस तरह के नियमों का प्रावधान नहीं है। सर्वेक्षण करने वाली एक एजेंसी यूरोफाउंड की एक रिसर्च के मुताबिक यूरोपीय संघ के कुल कर्मचारियों के कम के कम 23 प्रतिशत अत्याधिक तापमान वाले हालात में काम करते हैं। अपने काम का कम से कम एक चौथाई हिस्सा वे ऐसे हालात में बिताते हैं. सिर्फ कृषि और उद्योगों में काम करने वाले ऐसे लोगों की संख्या 36 प्रतिशत है जबकि निर्माण उद्योग में 38 प्रतिशत कर्मचारियों को अत्याधिक तापमान के दौरान काम करना पड़ता है।

कई शोधों में यह बात सामने आ चुकी है कि अत्याधिक तापमान में काम करने से कामगारों को हमेशा रहने वाली बीमारियां हो जाती हैं और काम के दौरान चोट लगने का खतरा भी बढ़ जाता है। यूरोपीय ट्रेड यूनियन कॉन्फेडरेशन के उप महासचिव क्लाएस-मिकाएल श्टाल कहते हैं, "मजदूर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को झेलने वालों में रोज सबसे आगे खड़े होते हैं। उन्हें लगातार बढ़ रहे अत्याधिक तापमान के खतरों से सुरक्षा की जरूरत है।" यूनियन का कहना है कि अधिकतर यूरोपीय देशों में काम के दौरान अत्याधिक तापमान की कोई सीमा तय नहीं है। हालांकि बेल्जियम, हंगरी और लातविया में कुछ प्रतिबंध लागू हैं। फ्रांस में अत्याधिक तापमान की कोई सीमा तय नहीं है। 2020 में वहां काम करते वक्त गर्मी के कारण 12 लोगों की जान गई थी।

औद्यौगिक क्रांति के पहले के मुकाबले पृथ्वी का औसत तापमान 1.1 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है और यूरोप में तेज गर्मी के दौर बार-बार आ रहे हैं. वैज्ञानिकों का अनुमान है कि कार्बन प्रदूषण के लगातार बढ़ते स्तर के चलते घातक ग्रीष्म लहरें और ज्यादा बढ़ेंगी। संयुक्त राष्ट्र के जलवायु विज्ञान पैनल ने इसी साल जारी एक रिपोर्ट में चेतावनी दी थी कि दुनिया के करोड़ों लोगों पर बढ़ती गर्मी का सीधा असर होगा। इस कारण बड़े पैमाने पर मौतें होने व लोगों के बेघर हो जाने जैसे नतीजे भी देखने को मिलेंगे। लंदन के किंग्स क्रॉस स्टेशन का ये प्लेटफॉर्म इसलिए खाली है क्योंकि गर्मी की वजह से ट्रेनें रद्द कर दी गईं और लोगों से कहा गया कि वो अपने घर में ही रहें। लंदन के इतिहास में पहली बार मंगलवार को पारा 40 डिग्री के पार गया।

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