जो बाइडेन की जीत तय, जानें उनका अमेरिकी राष्ट्रपति बनना भारत के लिए अच्छा या बुरा
अमेरिका को नया राष्ट्रपति मिलने जा रहा है?
अमेरिका को नया राष्ट्रपति मिलने जा रहा है। मतों की गिनती अभी जारी है लेकिन जो बाइडेन ने डोनाल्ड ट्रंप पर 50 इलेक्टोरल वोट्स की बढ़त ले रखी है जिसका पट पाना अब मुश्किल है। ऐसे में यह लगभग तय हो गया है कि वाइट हाउस में अब बाइडेन की एंट्री होगी और कमला हैरिस उनकी डेप्युटी होंगी। भारत के लिहाज से अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव बेहद अहम है क्योंकि हाल के दिनों में अमेरिका के साथ उसका सहयोग काफी बढ़ा है। चीन के साथ लद्दाख सीमा पर तनाव ने भारत और अमेरिका को और करीब ला दिया है। तनाव की स्थिति अब भी बरकरार है, ऐसे में नए राष्ट्रपति का रुख कैसा रहता है, यह देखने वाली बात होगी। बाइडेन का अमेरिकी राष्ट्रपति बनना भारत के लिए अच्छा है या बुरा, इसके कुछ संकेत पिछले दिनों मिले हैं।
भारत में एक धड़ा मानता है कि बाइडेन और हैरिस जिस तरह से जम्मू कश्मीर में मानवाधिकार और एनआरसी-सीएए को लेकर मुखर रहे हैं, उससे भारत को परेशानी हो सकती है। लेकिन कुछ बयानों के आधार पर दोनों को जज करना सही नहीं होगा। बाइडेन दशकों तक फॉरेन पॉलिसी से जुड़े मुद्दों पर काम करते रहे हैं। उन्हें बेहतर अंदाजा है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कौन से मुद्दे अहम हैं। एक्सपर्ट्स के अनुसार, बाइडेन और ट्रंप में बुनियादी फर्क यह है कि बाइडेन दूरदर्शी हैं और ट्रंप बड़बोले। टाइम्स ऑफ इंडिया में छपे एक लेख में अमेरिकी प्रोफेसर सुमित गांगुली लिखते हैं कि मोदी के साथ बेहतर तालमेल के बावजूद ट्रंप ने कई मौकों पर भारत को बड़े झटके दिए हैं। उनके मुताबिक, बाइडेन सोच-समझकर फैसला करने वालों में से हैं, ऐसे में वह भारत के लिए ज्यादा मुफीद हैं।
गांगुली अपने लेख में कहते हैं कि ट्रंप ने जिस तरह से अचानक और अजीब तरह के फैसले किए, उससे भारत के लिए उनका कार्यकाल उतना फलदायी साबित नहीं हुआ। गांगुली ने भारतीय उत्पादों पर टैरिफ बढ़ाने, H-1B वीजा रोकने, कश्मीर मुद्दे पर मध्यस्थता के ऑफर जैसे ट्रंप के कुछ ऐसे फैसले गिनाए जिनसे भारत को नुकसान हुआ। गांगुली कहते हैं कि ट्रंप की नजर में भारत और अमेरिका के रिश्ते पूरी तरह लेन-देन पर आधारित हैं। बाइडेन की सोच ऐसी नहीं हैं। गांगुली के अनुसार, बाइडेन की विदेश नीति में ट्रंप के मुकाबले कहीं ज्यादा स्थायित्व देखने को मिलेगा। उदाहरण के दौर पर, भारत को सिर्फ यह जानकारी देने कि अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों को हटाया जा रहा है, अमेरिका उस देश को स्थिर करने के लिए भारत की मदद मांग सकता है। बतौर राष्ट्रपति बाइडेन के उन मामलों में टांग अड़ाने की संभावना कम ही है जो राजनीतिक रूप से किसी माइनफील्ड की तरह हैं।
बाइडेन के भारत-पाकिस्तान विवाद या चीन के साथ जारी तनाव में ज्यादा दखल देने की उम्मीद कम ही है। वह कई दशक तक अमेरिकी विदेश विभाग के लिए काम कर चुके हैं। इसके अलावा ट्रंप से अलग, वह अपने सलाहकारों की बात सुनने के लिए जाने जाते हैं। बाइडेन किसी एक घटना या मुद्दे के आधार पर भारत के प्रति अमेरिकी नीति में बदलाव लाने के इच्छुक नहीं दिखते। इसके अलावा प्रवासियों को लेकर भी बाइडेन का रुख नरम है जबकि ट्रंप कई मौकों पर खुलकर वीजा पर लिमिट लगाने की बात कर चुके हैं। ट्रंप ने भारत के साथ व्यापारिक स्तर पर धींगामुश्ती जारी रखी। बाइडेन के ऐसा करने की उम्मीद कम है।
मोक्रेट प्रशासन में भारत की स्थिति और बेहतर हो सकती है। ट्रंप ने चीन को लेकर जिस तरह से मोर्चा खोला, उससे पर्सेप्शन बैटल में भारत को फायदा हुआ लेकिन इससे भारत के अमेरिका का पिछलग्गू बनने की बातें होने लगीं। पाकिस्तान को लेकर ट्रंप प्रशासन ने पहले सख्ती दिखाई लेकिन अफगानिस्तान में बातचीत में उसके आगे झुक गया। बाइडेन कहते हैं कि दक्षिण एशिया में आतंक पर कोई समझौता नहीं होगा। बाइडेन ने ही पहले भारत और अमेरिका में भारतीय-अमरीकियों ने लिए विस्तृत एजेंडा जारी किया था। कश्मीर को लेकर ट्रंप के मध्यस्थता के ऑफर ने भारत के होश उड़ा दिए थे। बाइडेन कश्मीर को लेकर मुखर रहे हैं लेकिन इसे चुनावी स्टंट भी कहा जा सकता है। कश्मीर पर बयान देने के ठीक बाद ही उन्होंने एक और संदेश में भारत को 'प्राकृतिक साझेदार' बताया था। बाइडेन ने कहा था कि अगर वे चुने जाते हैं कि दोनों देशों के बीच रिश्तों को मजबूत करना उनकी प्रॉयरिटी लिस्ट में ऊपर रहेगा।