हाजी अब्दुर्रज्जाक अंसारी : क़तरे से गुहरे होने तक का सफर
अब्दुर्रज्जाक अंसारी की शैक्षिक और सामाजिक सेवाओं ने यह साबित किया कि संकल्प और साहस के आधार पर इंसान मुश्किलों के बावजूद सफलता की राह पर आगे बढ़ सकता है।
दुनिया में बहुत कम लोग ऐसे होते हैं जो अपनी जिंदगी में इज्जत पाते हैं और मरने के बाद भी लोगों के दिलों में इज्जत और आदर के साथ जिंदा रहते हैं। हाजी अब्दुर्रज्जाक अंसारी ऐसी ही एक शख्सियत थे, जिन्होंने बिना किसी धर्म और जाति का भेदभाव किए सिर्फ मानव सेवा को अपनी जिंदगी का मकसद बनाया। उनकी सच्चाई, सादगी, नम्रता, त्याग, और मानवता की सेवा उनकी शख्सियत की खासियतें थीं, जो उन्हें औरों से अलग करती हैं। एक दयालु शिक्षक और शिक्षा और अर्थव्यवस्था के जानकार होने के साथ ही उन्होंने समाज और राजनीति के क्षेत्र में भी अहम योगदान दिया।
आजादी की जंग में हिस्सा लेने की वजह से उन्होंने जेल की तकलीफें झेलीं और हमेशा हिंदू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा दिया। उनकी राजनीति साफ-सुथरी और बिना किसी पक्षपात की थी, और उनका मकसद हमेशा हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की इस हदीस पर अमल करना थाः ‘‘तुम में सबसे अच्छे वो लोग हैं जो दूसरों को फायदा पहुंचाएं’’।
अब्दुर्रज्जाक अंसारी का जन्म 24 जनवरी 1917 को रांची के पास ‘‘इरबा’’ गांव में हुआ। पिता की ग़रीबी की वजह से बचपन में उन्होंने बकरियां चराईं और फिर अपने पुश्तैनी काम में कपड़ा बुनना शुरू किया। पढ़ाई का शौक भी उनके दिल में पैदा हुआ, जिसके चलते उन्होंने प्राथमिक स्कूल में दाखिला लिया और मिडिल तक पढ़ाई पूरी की। बाद में डालटनगंज से प्रशिक्षण लेकर शिक्षक बन गए और अपनी पत्नी बीबी नफीरुन निशा को भी पढ़ाया। उनके लिए शिक्षा देना केवल व्यक्तिगत उद्देश्य नहीं था, बल्कि पूरे इलाके में लोगों में शिक्षा का प्रचार करने के लिए उन्होंने कोशिशें कीं और महिलाओं की शिक्षा पर खास जोर दिया और कई शैक्षणिक संस्थान स्थापित किए। उन्होंने अपनी गरीबी और तंगी के अनुभवों को ताकत बनाया और गरीब बुनकरों की हालत सुधारने के लिए 1948 में ‘‘इरबा प्राथमिक बुनकर सहयोग समिति लि0’’ की नींव रखी।
जनाब अंसारी की ईमानदारी और रणनीति की वजह से बुनकरों को उनके पारंपरिक काम की ओर वापस लाया गया, जिसके परिणामस्वरूप हर घर में हथकरघा चलने लगा और बुनकरों की जिंदगी में खुशहाली आई। यह प्रयास सिर्फ अरबा तक सीमित नहीं रहा, बल्कि आसपास के क्षेत्रों में भी क्रांति लाई, और कई सहकारी समितियों की स्थापना हुई, जो आज भी उनकी नेतृत्व और दृष्टि का प्रतीक हैं। उनका यह काम इस बात का प्रमाण है कि एक व्यक्ति की ईमानदारी और मेहनत पूरे इलाके की किस्मत बदल सकती है। उनकी नेतृत्व और मेहनत से बुनकरों के लिए बाजार उपलब्ध हुआ और समितियों को संगठित करने के रास्ते खुले। बिहार स्टेट हैंडलूम वीवर्स कोऑपरेटिव यूनियन लिमिटेड, पटना की स्थापना में उनका बड़ा योगदान था, और बाद में उन्होंने दी छोटानागपुर रीजनल हैंडलूम वीवर्स को-ऑपरेटिव यूनियन लिमिटेड की स्थापना की, जो आज भी उनके नेतृत्व का प्रतीक है। उनकी कोशिशों से कई समितियां बनाईं गईं, और इन समितियों ने समाज और आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनका हमेशा कहना था, ‘‘अगर आपकी आवाज में दम और आकर्षण है, तो पूरा गांव आपके साथ चलेगा, और मंजिल खुद आ जाएगी’’।
अब्दुर्रज्जाक अंसारी की शैक्षिक और सामाजिक सेवाओं ने यह साबित किया कि संकल्प और साहस के आधार पर इंसान मुश्किलों के बावजूद सफलता की राह पर आगे बढ़ सकता है। उनके नेतृत्व ने न केवल मोमिन समुदाय बल्कि पूरे क्षेत्र को फायदा पहुँचाया। वह गरीबी और विपत्ति के बावजूद बकरियाँ चराने वाले एक मासूम बच्चे से महान नेता बने, जिन्होंने अपनी मेहनत और समर्पण से छोटानागपुर के गरीबों और पीड़ितों की जिंदगी बदल दी। उनकी निःस्वार्थ सेवा और नेतृत्व ने न केवल क्षेत्र में बल्कि वैश्विक स्तर पर ‘‘इरबा’’ को एक अद्वितीय स्थान दिलाया। उनका सपना था कि इरबा में एक अस्पताल बने जो गरीब बुनकरों को आधुनिक इलाज की सुविधा दे। इसके लिए उन्होंने बिहार के गवर्नर से निवेदन किया था और 1991 में गवर्नर ने इसका शिलान्यास किया। हालांकि यह सपना उनकी जिंदगी में पूरा नहीं हो सका, लेकिन उनके बेटों ने इस सपने को हकीकत में बदला। उनके बेटों ने अस्पताल की इमारतें बनवाईं, जो आज ‘‘मेदांता अब्दुर्रज्जाक अंसारी मेमोरियल वीवर्स अस्पताल’’ के नाम से काम कर रहा है और यह अब्दुर्रज्जाक अंसारी की महानता का जीवित उदाहरण है।
छोटानागपुर जैसे पिछड़े हुए इलाके में शिक्षा की रोशनी फैलाना हाजी अब्दुर्रज्जाक अंसारी की कड़ी मेहनत और संकल्प का परिणाम था। उन्होंने न सिर्फ शैक्षिक संस्थान बनाए बल्कि ज्ञान और जागरूकता की ऐसी बुनियाद डाली जिसकी रोशनी पीढ़ी दर पीढ़ी फैलती चली गई। स्वतंत्रता के बाद, जब पंचायत राज की शुरुआत हुई, तो गाँव के लोग उन्हें अपना मुखिया चुनकर इस पद पर बैठाए। उनकी मेहनत और काबिलियत ने उन्हें सरकारी और गैर-सरकारी संस्थानों में महत्वपूर्ण पदों पर पहुँचाया और दो बार बिहार विधान परिषद के सदस्य बनने का सम्मान प्राप्त किया। उनकी सादगी और निःस्वार्थता ने उन्हें पूरे देश में एक प्रमुख व्यक्ति बना दिया, जो हमेशा मानवता की सेवा को अपनी सफलता पर प्राथमिकता देते थे। वे मोमिन समुदाय और बुनकरों के सच्चे मददगार और निष्ठावान नेता थे। मोमिन एवं बुनकर आंदोलन में उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता, उन्होंने आंदोलन को स्थिरता और मजबूती देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्हें प्रसिद्ध साहित्यिक शख्सियत सुहैल अजीमाबादी के माध्यम से अब्दुल कय्यूम अंसारी से मिलवाया गया, जो ऑल इंडिया मोमिन कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष थे। सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी ने स्व0 अंसारी की मेहनत और ईमानदारी की सराहना की और उन्हें 1958 और 1985 में बिहार विधान परिषद का सदस्य और डॉ. जगन्नाथ मिश्रा के शासनकाल में हस्तकरघा, रेशम एवं पर्यटन विभाग में कैबिनेट मंत्री बनाया।
मोमिन आंदोलन के अंदरूनी मतभेदों, खासकर जियाउल रहमान अंसारी की मौत के बाद नेतृत्व के मुद्दों ने एक संवेदनशील स्थिति उत्पन्न कर दी थी, लेकिन हाजी अब्दुर्रज्जाक अंसारी की दूरदर्शिता और निःस्वार्थ नेतृत्व ने इन चुनौतियों का सामना करते हुए आंदोलन की महानता को बनाए रखा। उनकी रणनीति और उच्च विचारधारा के कारण आंदोलन के नेता मौलाना हबीबुर्रहमान नेामानी की नेतृत्व में फिर से एकजुट हो गए, जो उनकी ईमानदारी से नेतृत्व और आंदोलन से गहरे जुड़ाव का स्पष्ट उदाहरण था। उन्होंने हमेशा मतभेदों को खत्म करने और आंदोलन को एकजुट रखने की कोशिश की, जिससे वे एक सहमति से नेता के रूप में उभरे। वे साम्प्रदायिकता और भेदभाव से मुक्त राष्ट्रीय एकता के प्रबल समर्थक थे, और उनकी जननेता ने उन्हें हर दिल अजीज बना दिया। उनकी शख्सियत पंडित नेहरू, मौलाना आजाद, श्रीमती इंदिरा गांधी और मदर टेरेसा जैसी महान शख्सियतों के करीब रही। मदर टेरेसा ने उनके बारे में कहा ‘‘जैसे अल्लाह ताला हर सृष्टि से प्रेम करता है, वैसे ही हमें भी एक-दूसरे से प्रेम करना चाहिए, जैसा कि उन्होंने किया।’’ उनकी मानवता और निस्वार्थ सेवा ने न केवल राष्ट्रीय बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी उन्हें एक महान व्यक्तित्व के रूप में स्वीकार किया।
हाजी अब्दुर्रज्जाक अंसारी ने लगभग 57 सालों तक गरीबों के मददगार, समुदाय और राष्ट्र के नेता, और मानवता की सेवा करने वाले निस्वार्थ ध्वजवाहक के रूप में अपनी सेवाएं दीं और 14 मार्च 1991 को इस दुनिया से रुखसत हो गए। उनकी मृत्यु पर सरकारी सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया और उनके निधन की खबरें विभिन्न भाषाओं के समाचार पत्रों में प्रमुखता से प्रकाशित हुईं। उनकी सेवाओं की सराहना करते हुए दुनिया भर से शोक संदेश और श्रद्धांजलि के शब्द प्राप्त हुए, जो उनकी लोकप्रियता और सार्वजनिक सेवा के उच्च मानक को दर्शाते हैं। उनके निधन से न केवल उनके चाहने वाले दुखी हुए, बल्कि देश को एक महान नेता की कमी का भी गहरा अहसास हुआ। मानवता के प्रति उनके प्रभाव का उदाहरण इस घटना से मिलता है जब एक आदिवासी महिला ने भावुक होकर उनकी कब्र पर मिट्टी डालने की इच्छा जताई, यह कहते हुए कि वे उनके मास्टर थे और हमेशा दिलों में जिंदा रहेंगे। यह घटना उनकी लोकप्रियता और दिलों में उनके स्थान को दर्शाती है। वे वास्तव में स्वतंत्रता सेनानी, देशभक्त और राष्ट्र के सेवक थे, जिन्होंने अपनी जिंदगी मानवता की सेवा के लिए समर्पित कर दी। उनका जीवन प्रेम, एकता और बलिदान का एक उज्जवल उदाहरण है, जो हमें उनके पदचिन्हों पर चलने के लिए प्रेरित करता है, और उनकी शिक्षाएँ हमेशा याद रखी जाएंगी।
मिस्ल-ए-ऐवान-ए-सहर मरक़द फरोज़ां हो तेरा
नूर से मामूर ये खा़की शबिस्तां हो तेरा
-ःलेखकः-
मो0 आरिफ अंसारी