माउंट एवेरेस्ट की उच्चाई करीब 1 मीटर तक बढ़ी, जाने एवेरेस्ट से जुडी ये बातें
नेपाल और चीन ने संयुक्त रूप से माउंट एवरेस्ट को दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत चोटी बताते हुए इसकी ऊंचाई 8,848.86 मीटर बताया है. यह माउंट एवरेस्ट की पुरानी मान्य ऊंचाई से 86 सेंटीमीटर ज्यादा है.लिखित संदेश में नेपाल की राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने कहा है, 'इस ऐतिहासिक मौक़े पर दोनों देशों के सर्वे विभाग की ओर से संयुक्त तौर पर मापने की प्रक्रिया पूरी करने के बाद मैं माउंट सागरमाथा/चोमोलोंगमा की नई ऊंचाई 8,848.86 मीटर मान्यवर आपके साथ (चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग) संयुक्त रूप से घोषित करते हुए ख़ुश हूँ.'
माउंट एवरेस्ट को नेपाल में सागरमाथा और तिब्बत में चोमोलोंगमा कहते हैं. यह इन दोनों ही देशों में फैला हुआ है लेकिन इसकी चोटी नेपाल की सीमा में स्थित है. नेपाल और चीन की सर्वे टीम ने अलग-अलग एवरेस्ट की ऊंचाई नापी है. अब तक चीन एवरेस्ट की ऊंचाई दुनिया भर में मान्य इसकी ऊंचाई को नहीं मानता रहा है और इसे चार मीटर कम कर के आंकता रहा है.
अभी तक जो मान्य ऊंचाई है, उसका निर्धारण ब्रितानी राज में भारतीय सर्वे विभाग की ओर से किया गया था. 2017 में माउंट एवरेस्टी की ऊंचाई मापने की शुरुआत नेपाल की ओर से शुरू की गई थी. 2015 में आए भूकंप के बाद इसे मापने का फ़ैसला किया गया था क्योंकि ऐसा कहा गया था कि भूकंप का दुनिया की इस सबसे ऊंची चोटी पर असर पड़ा है.
कई बार इस चोटी का माप लिया जा चुका है लेकिन नेपाल ने पहली बार इसे मापने का काम किया है. बाद में चीन ने भी इसकी नपाई शुरू की और नेपाल और चीन ने अपने डेटा शेयर किए और संयुक्त बयान जारी कर अपने महत्वपूर्ण नतीजें जारी किए. इस पर नेपाल की राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी और शी जिनपिंग ने 2019 में हस्ताक्षर किए. अब इसके एक साल बाद दोनों ही देशों ने इसकी आधिकारिक घोषणा की.
मापने की प्रक्रिया
2019 के वसंत में दो सर्वेक्षक माउंट एवरेस्ट की चोटी पर पुहँचें. आम तौर पर माउंट एवरेस्ट पर पहुँचने का अनुभव जैसा समझा जाता है उससे अलग होता है. ज्यादातर लोग एवरेस्ट की चोटी पर पहुँचते-पहुँचते मानसिक और शारीरिक तौर पर सुस्त पड़ जाते हैं. खिमलाल गौतम के नेतृत्व में पहुँची टीम को एवरेस्ट की चोटी पर पुहँच कर मानसिक और शारीरिक तौर पर सुस्त पड़ने के बावजूद काम करना था.
गौतम ने बीबीसी को बताया, "सबसे ऊंची चोटी को मापना हमारे लिए एक बड़ी उपलब्धि है. हमारे लिए चोटी पर पहुँचना बस शुरुआत भर था." उनकी टीम ने एवरेस्टी की चोटी पर दो घंटे तक जीपीएस ट्रैकिंग सिस्टम की मदद से माप ली.
यह उपकरण नेपाल में अलग-अलग जगहों पर दूसरे आठ ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम के साथ तालमेल मिलाते हुए काम करता है. सैटेलाइट नेटवर्क के आधार पर जीपीएस एंटीना वास्तविक स्थिति की रिकॉर्डिंग करता है. यूनिवर्सिटी ऑफ़ कोलोराडो बोल्डर में भूगर्भ विज्ञान के प्रोफेसर पीटर हाले मोलनार कहते हैं कि, "जीपीएस की मदद से कोई पृथ्वी के केंद्र से एक सेंटीमीटर या उससे कम की अनिश्चितता से ऊंचाई को माप सकता है. हम समुद्र तल से ऊंचाई मापते हैं. एवरेस्ट के मामले में लेकिन यह बहुत मुश्किल काम है."
पृथ्वी पर अलग-अलग जगहों पर द्रव्यमान के अलग-अलग वितरण की वजह से व्यवहारिक रूप से समुद्र तल से ऊंचाई एक जैसी नहीं होता. गौतम बताते हैं कि, "इसलिए यह सबसे संभावित ऊंचाई होती है लेकिन हमने जिस तकनीक को अपनाया है, हमारा दावा है कि यह अब तक की सबसे सटीक उंचाई है." इस सर्वे की सबसे अहम बात यह है कि सर्वे की टीम ने डेटा इकट्ठा करने के लिए उस वक्त का इस्तेमाल किया है, जिस वक्त पर ज्यादा से ज्यादा आंकड़े इकट्टे किए जा सके.
गौतम बताते हैं, "पहले किए गए दूसरे सर्वे के विपरीत इस बार एवरेस्ट की ऊंचाई मापने के लिए हमने तीन बजे सुबह का वक्त चुना था ताकि दिन के वक्त के सूरज की रौशनी से बचा जा सके और गलती की गुंजाइश कम से कम हो."
यूनिवर्सिटी ऑफ़ कोलोराडो बोल्डर में भूगर्भ विज्ञान के प्रोफ़ेसर रॉजर बिल्हाम लंबे समय से इस क्षेत्र में सर्वे के काम से जुड़े रहे हैं. उन्होंने बीबीसी नेपाली सेवा से कहा, "नेपाल के सर्वेक्षकों ने गुरुत्व बल और समुद्र तल दोनों का इस्तेमाल करते हुए सटीक डेटा का इस्तेमाल किया है. पिछले सर्वेक्षकों के पास ये डेटा उपलब्ध नहीं थे."
गौतम के मुताबिक़, एवरेस्ट को लेकर जो आंकड़ें इस सर्वे में पेश किए गए वो 'सबसे अधिक सटीक' है क्योंकि इसमें कई तरह के तकनीक इस्तेमाल किए गए हैं. पुराने समुद्र तल वाली पद्धति के अलावा इसमें आधुनिक जीपीएस तकनीक का भी इस्तेमाल किया गया है.
प्रोफेसर रॉजर के मुताबिक़ 1857 में समुद्र तल की माप कराची और कलकत्ता में एक महीने तक की गई थी. इसके आधार पर बिहार और भारत में कई जगहों पर ऊंचाई मापी गई. चीन ने इससे पहले 1975 और फिर 2005 में माउंट एवरेस्ट की उंचाई मापी थी. चीन ने एवरेस्ट की ऊंचाई तब 8,844.43 मीटर बताई थी. इसमें उसने स्नो कैप को शामिल नहीं किया था. इस बार के ऊंचाई में स्नो कैप शामिल किया गया है.
फिर से ऊंचाई मापने की ज़रूरत
हिमालय की उत्पत्ति पांच करोड़ वर्ष पूर्व कई भूकंपों की वजह से हुई है. यूनिवर्सिटी ऑफ़ ऑक्सफ़ोर्ड के अर्थ साइंस के प्रोफ़ेसर माइक सिअर्ले के मुताबिक़ 2015 के भूकंप के दौरान नेपाल उत्तर-दक्षिण की ओर हिमालय के देशांतर पर एक मीटर तक खिसक गया. काठमांडू घाटी के उत्तर की पहाड़ियाँ एक मीटर तक उठ गईं.
नेपाली अधिकारियों ने बताया है कि इस बार की नाप में स्नो कैप को शामिल किया गया है. इस पर प्रोफ़ेसर माइक सिअर्ले कहते हैं, "एवरेस्ट की चोटी पर हर मौसम में कई मीटर की ऊंचाई वाले स्नो कैप में अंतर आ जाता है. मौनसून के दौरान होने वाली बर्फ़बारी की वजह से दो से तीन मीटर तक स्नो कैप बढ़ जाता है हालांकि आम तौर पर पश्चिम से पूर्व की ओर चलने वाली हवा इसे तुरंत नष्ट कर देती है."