कभी थे बाल मजदूर, अब बने भारत की आवाज
आज इन बच्चों में से कोई वकील है, कोई एमबीए कर रहा है तो कोई पुलिस में भर्ती होने के लिए प्रयासरत है।
डरबन(द. अफ्रीका)। दुनियाभर में बालश्रम के समूल उन्मूलन के मकसद से यहां डरबन में अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के 5वें सम्मेलन का आगाज किया गया। 2025 तक बालश्रम के खात्मे का लक्ष्य रखा गया है। ऐसे में सम्मेलन की महत्ता और बढ़ जाती है। इसमें कभी बाल मजदूरी करने वाले भारत के बच्चों ने भी अपनी आवाज बुलंद की और उपस्थित प्रतिनिधियों को बालश्रम के खात्मे के लिए कदम उठाने की प्रतिज्ञा दिलवाई। इन बच्चों में से तीन राजस्थान से और एक झारखंड से हैं। आज इन बच्चों में से कोई वकील है, कोई एमबीए कर रहा है तो कोई पुलिस में भर्ती होने के लिए प्रयासरत है।
राजस्थान के अति पिछड़े बंजारा समुदाय से आने वाली तारा और अमर लाल ने अपने समुदाय के लोगों को एक नई राह दिखाई है। आठ साल की उम्र में तारा सड़कों पर सफाई व निर्माण का काम करती थी। वह अपने समाज से स्कूली शिक्षा के बाद कॉलेज में जाने वाली पहली लड़की है। यही नहीं, तारा ने अपनी छोटी बहन के बाल विवाह को भी रुकवाया।
बाल मित्र ग्राम की उपज तारा अब बालश्रम, बाल विवाह और ट्रैफिकिंग रोकने के लिए काम कर रही हैं। साथ ही वह अब तक अपने समुदाय के 22 बच्चों को मजदूरी से छुड़वाकर स्कूल में दाखिला भी करवा चुकी हैं। पढ़ाई पूरी करके तारा पुलिस में भर्ती होना चाहती है। तारा ने डरबन में सम्मेलन में उपस्थित वैश्विक समुदाय से कहा, 'यदि हम गरीब बच्चों को वोट देने का अधिकार नहीं है तो क्या हमसे मजदूरी करवाआगे? सब बच्चों को पढ़ने का अधिकार है, किसी भी बच्चे को बाल मजदूरी नहीं करनी चाहिए।' नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी ने तारा की प्रशंसा करते हुए कहा, 'आईएलओ में हमारी एक और बेटी तारा बंजारा ने आज हमारा सिर गर्व से ऊंचा कर दिया। राजस्थान के एक पिछड़े गांव में झोपड़ी में रहने वाली पूर्व बाल मजदूर तारा ने अपने प्रभावशाली भाषण के बाद विश्व भर के प्रतिनिधियों को खड़ाकर बाल मजदूरी के खिलाफ प्रण करवाया।'
इसी समुदाय के अमर लाल ने कभी नहीं सोचा था कि वह स्कूल भी जा सकेंगे। छह साल की उम्र में वह पत्थर खदान में मजदूरी करने लगे थे ताकि परिवार की मदद कर सके। यह सिलसिला लंबा चलता अगर कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन के सहयोगी संगठन 'बचपन बचाओ आंदोलन' ने एक रेस्कयू ऑपरेशन के दौरान उन्हें मुक्त न करवाया होता। इसके बाद अमर लाल को बाल आश्रम लाया गया। बड़ा होने पर अमरलाल का रुझान बच्चों के अधिकारों के प्रति काम करने की ओर हो गया। कानून की पढ़ाई के बाद अमर लाल बाल अधिकार के वकील एवं कार्यकर्ता के रूप में काम कर रहे हैं।
उन्होंने कहा, 'दुनियाभर में सरकारें युद्ध पर अरबों डॉलर खर्च कर रही हैं जबकि बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य व सुरक्षा जैसे प्रासंगिक मुद्दों को पीछे कर दिया है। बच्चों से संबंधित अधिकारों के लिए जमीनी स्तर पर और काम करने की जरूरत है।' बाल आश्रम राजस्थान में कैलाश सत्यार्थी व सुमेधा कैलाश द्वारा स्थापित देश का पहला दीर्घकालीन पुनर्वास केंद्र है, जिसमें बच्चों के रहने व शिक्षा की व्यवस्था की जाती है।
वहीं, राजेश जाटव को राजस्थान के जयुपर जिले में एक ईंट-भट्टे से 'बचपन बचाओ आंदोलन' ने मुक्त करवाया गया था, उस समय वह आठ साल के थे। राजेश को 18-18 घंटे काम करना पड़ता था। मुक्ति के बाद राजेश को बाल आश्रम पुनर्वास केंद्र में रखा गया, जहां उन्होंने पढ़ाई पूरी की। साल 2020 में बीएससी करने के बाद राजेश अभी उदयपुर में एमबीए इन फाइनेंस कर रहे हैं।
झारखंड राज्य के बड़कू मरांडी की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। गिरिडीह जिले के गांव कनिचिहार का रहने वाला बड़कू जब 5-6 साल का था तभी उसके पिता गुजर गए थे। दो वक्त की रोटी के लिए वह अपनी मां राजीना किस्कु और भाई के साथ माइका(अभ्रक) चुनने का काम करने लगा। साल 2013 में काम करने के दौरान खदान में एक हादसा हो गया। इसमें मिट्टी के नीचे दबने के कारण बड़कू के एक दोस्त समेत दो लोगों की मौत हो गई जबकि बड़कू की एक आंख में गंभीर चोट आ गई। इसके चलते उसे आज भी कम दिखाई देता है। सितंबर, 2013 में कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन ने कनिचियार गांव का चयन बाल मित्र ग्राम बनाने के लिए किया तो बड़कू को माइका चुनने के काम से हटाकर स्कूल में दाखिला करवा दिया। वह अपने परिवार का पहला और गांव के उन चुनिंदा लोगों में से है जिन्होंने 10वीं पास की है। यहां बाल पंचायत का चुनाव होने पर बड़कू को पंचायत का मुखिया चुना गया। फिलहाल वह बाल मित्र ग्राम के सक्रिय कार्यकर्ता के रूप में काम कर रहा है। बाल मित्र ग्राम, कैलाश सत्यार्थी का एक अभिनव प्रयोग है, जिसके जरिए गांवों में बाल मजदूरी के उन्मूलन, बाल विवाह पर रोक और बच्चों को स्कूल भेजने का कार्य किया जाता है।