किम जोंग के उत्तर कोरिया और पाकिस्तान की दोस्ती भारत पर क्यों पड़ती है भारी?
इससे दुनिया भर में उत्तर कोरिया के परमाणु कार्यक्रम में पाकिस्तानी सेना और सरकार की सीधी भूमिका होने को लेकर भी सवाल खड़े होने लगे.
पाकिस्तान के अस्तित्व में आने के एक साल बाद 1948 में उत्तर कोरिया का जन्म हुआ. पाकिस्तान एक इस्लामिक स्टेट बना और भारत सेकुलर. उसी तरह उत्तर कोरिया ने तानाशाही का रास्ता चुना और दक्षिण कोरिया ने लोकतंत्र का. पाकिस्तान जन्म के बाद से भारत से दुश्मनी निभाता रहा, उत्तर कोरिया भी अपनी हर सुरक्षा नीति दक्षिण कोरिया को केंद्र में रखते हुए बनाता है. दोनों ही देशों में सेना और शासन में बहुत फर्क नहीं है. पाकिस्तान में सेना का सरकार पर नियंत्रण है तो उत्तर कोरिया में सरकार ही सेना पर अपना पूरा प्रभाव रखती है. यही नहीं, दोनों की ही चीन से गहरी दोस्ती है.
उत्तर कोरिया की पाकिस्तान से नजदीकी भारत के लिए नुकसानदायक भी साबित हुई. पाकिस्तान के पास आज मिसाइलों का जो जखीरा है, उसके लिए उत्तर कोरिया ही जिम्मेदार है. पाकिस्तान दुनिया के उन चुनिंदा देशों में से एक है जिसकी उत्तर कोरिया से गहरी दोस्ती है. प्योंगयांग में पाकिस्तान का दूतावास है और इस्लामाबाद में नॉर्थ कोरिया का दूतावास है. इस्लामाबाद के अलावा, कराची में भी नॉर्थ कोरिया का एक बड़ा सा दूतावास है. पाकिस्तान के लोगों को उत्तर कोरिया जाने के लिए आसानी से वीजा मिल जाता है.
उत्तर कोरिया और पाकिस्तान की दोस्ती का अध्याय 1970 के दशक में शुरू हुआ था. 1976 में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने समाजवादी देशों के साथ संबंध मजबूत करने के लिए उत्तर कोरिया का दौरा किया. 1990 के दशक में ये दोस्ती और परवान चढ़ी. उस वक्त पाकिस्तान परमाणु हथियार हासिल करने के लिए बेचैन था लेकिन तालिबान से नजदीकी की वजह से अंतरराष्ट्रीय समुदाय में अलग-थलग पड़ गया था. पाकिस्तान ने पहले चीन से मदद मांगी लेकिन उसने अमेरिका से संबंध खराब होने के डर से पाकिस्तान को M-11 मिसाइल बेचने से इनकार कर दिया.
ऐसे में, पाकिस्तान ने उत्तर कोरिया का रुख किया. रिपोर्ट्स के मुताबिक, बेनजीर भुट्टो ने नॉर्थ कोरिया से लंबी दूरी की मिसाइल रोडोंग खरीदी और बदले में प्योंगयांग को परमाणु तकनीक दे दी. पाकिस्तान की सरकार ने उत्तर कोरिया के छात्रों को पाकिस्तानी यूनिवर्सिटी में पढ़ने के लिए भी प्रोत्साहित किया. 2002 में अमेरिकी अधिकारियों ने ऐलान कर हर किसी को चौंका दिया कि पाकिस्तान ने उत्तर कोरिया को परमाणु बम बनाने में मदद करने के लिए गैस सेंट्रीफ्यूज का निर्यात किया है. पाकिस्तान के सैन्य अधिकारी इस योजना में अपनी भूमिका से इनकार करते रहे लेकिन रिपोर्ट आने के बावजूद इस्लामाबाद-प्योंगयांग की साझेदारी पर कोई फर्क नहीं पड़ा.
यूएस से दोस्ती होने के बावजूद इस्लामाबाद ने उसके दुश्मन उत्तर कोरिया के साथ सैन्य सहयोग जारी रखा. 2002 में रिपोर्ट आने के बाद मुशर्रफ ने अमेरिका को पाकिस्तान के न्यूक्लियर साइंटिस्ट अब्दुल कादिर खान से पूछताछ करने से रोक दिया. रिपोर्ट्स के मुताबिक, न्यूक्लियर साइंटिस्ट एक्यू खान ने उत्तर कोरिया, ईरान और लीबिया के परमाणु कार्यक्रम में मदद की थी. 2009 में पाकिस्तान की सरकार ने खान को "आजाद नागरिक" घोषित कर दिया. अमेरिका के तमाम अधिकारियों ने पाकिस्तान के इस कदम का विरोध किया और कहा कि खान से दुनिया भर में परमाणु प्रसार का गंभीर खतरा है. दो साल बाद ही खान ने आरोप लगाया कि पाकिस्तानी आर्मी ने 30 लाख डॉलर के बदले उत्तर कोरिया को परमाणु सामग्री उपलब्ध कराई है. इससे दुनिया भर में उत्तर कोरिया के परमाणु कार्यक्रम में पाकिस्तानी सेना और सरकार की सीधी भूमिका होने को लेकर भी सवाल खड़े होने लगे.
पाकिस्तान और उत्तर कोरिया के गठजोड़ के पीछे इस्लामाबाद-बीजिंग की दोस्ती का भी हाथ रहा है. उत्तर कोरिया के जन्म लेने के बाद से ही चीन ने उसको पाला-पोसा है. जबकि अमेरिका दक्षिण कोरिया का साथ देता रहा है. विशेषज्ञों का मानना है कि पूर्वी एशिया में उत्तर कोरिया के अलग-थलग पड़ने के वक्त में जब पाकिस्तान ने प्योंगयांग को समर्थन दिया तो चीन ने इसे प्रोत्साहित किया. पाकिस्तान के नेता जब चीन जाते थे तो उत्तर कोरिया का भी दौरा कर लेते थे.
अमेरिकी कांग्रेस के एशिया सुरक्षा मामलों के सलाहकार शर्ली ए खान ने 2009 में दावा किया था कि इस्लामाबाद ने 1990 में जब उत्तर कोरिया को परमाणु तकनीक देकर मदद की, उसी के साथ पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम को चीन का समर्थन भी बढ़ा. इससे पाकिस्तान की चीन के साथ रणनीतिक साझेदारी भी मजबूत हो रही थी. परमाणु हथियार और परमाणु अप्रसार को लेकर जब अंतरराष्ट्रीय समुदाय में पाकिस्तान की आलोचना हुई तो चीन हमेशा बचाव के लिए आगे आता रहा.
1997 से 1999 तक उत्तर कोरिया में भारत के राजदूत रहे जगजीत सिंह सपरा ने बीबीसी को दिए इंटरव्यू में बताया था कि उत्तर कोरिया में पाकिस्तानी राजदूतों की शीर्ष नेतृत्व से काफी करीबी थी. उन्होंने बताया कि उत्तर कोरिया में तीन साल रहते हुए कई ऐसी चीजें देखीं जिनसे ये शक पुख्ता होता था कि पाकिस्तान ने ही उत्तर कोरिया को परमाणु तकनीक ट्रांसफर की है.
हाल के कुछ सालों में पाकिस्तान ने उत्तर कोरिया के साथ सैन्य सहयोग भले ही खत्म कर दिया हो लेकिन इस्लामाबाद अब भी उत्तर कोरिया के खिलाफ लगे यूएन प्रतिबंधों का पूरी तरह से पालन नहीं करता है. पाकिस्तानी कंपनियों के जहाज अक्सर प्योंगयांग में नजर आते रहते हैं. चीन से वफादारी साबित करने के लिए पाकिस्तान उत्तर कोरिया का करीबी दिखने की भरपूर कोशिश करता है. उत्तर कोरिया के लोग भी पाकिस्तान को अपना दोस्त मानते हैं.