बर्लिन की सड़कों पर टॉपलेस होकर उतरीं महिलाएं, जर्मनी में भड़का महिलाओं का गुस्सा..

Update: 2021-07-11 14:59 GMT

लैंगिक समानता को लेकर बर्लिन की महिलाएं आई सड़कों पर पुरुषों का भी मिला साथ, एक फ्रांसिसी महिला को पार्क से बाहर किए जाने पर हुआ हंगामा..

बर्लिन :  लैंगिक समानता को लेकर यूरोप में भी मचा घमासान . जर्मनी की राजधानी बर्लिन में उस वक्‍त पुलिस-प्रशासन के हाथ-पांव फूल गए जब महिलाएं यहां सड़कों पर टॉपलेस होकर उतर गईं, जबकि पुरुष भी ब्रा, बिकिनी पहने हुए थे। बर्लिन की सड़कों पर सैकड़ों की संख्‍या में उतरे ये लोग लैंगिक समानता की मांग कर रहे थे। और साथ ही बर्लिन प्रशासन के खिलाफ नारे लगा रहे थे उनका गुस्‍सा पुलिस के उस एक्‍शन को लेकर था, जिसमें एक फ्रांसीसी महिला को टॉपलेस होकर धूप सेंकने के कारण शहर के एक वाटर पार्क से निकाल दिया गया था।

यह वाक्या बीते महीने का है, लेकिन पुलिस के इस एक्‍शन ने महिलाओं के एक बड़े वर्ग को नाराज कर दिया। इस प्रकार की घटनाएं हैरान करने वाली हैं। लैंगिक समानता में यकीन करने वाले पुरुषों का एक तबका भी उनके साथ था, जिन्‍होंने शनिवार 10 जुलाई को बर्लिन की सड़कों पर हुए इस प्रदर्शन में हिस्‍सा लिया। इस दौरान वे ब्रा और बिक‍िनी पहने नजर आए। प्रदर्शन में शामिल महिलाओं ने अपने शरीर पर 'माय बॉडी, माय च्‍वाइस' जैसे नारे भी लिखवाए।

डेली मेल की एक रिपोर्ट के अनुसार, फ्रांसीसी महिला एक दोस्त और दो बच्चों के साथ स्विम पार्क में गई थी। उस दौरान उसने स्विमसूट पहन रखा था। महिला वहां टॉपलेस होकर सनबाथ कर रही थी, जब पुलिस ने उसे देखा और टोका। वहां मौजूद गार्ड्स ने उसे सीना ढकने के लिए कहा तो उसने सवाल किया कि अगर पुरुष टॉपलेस होकर पार्क में रह सकते हैं तो वह क्‍यों नहीं? इस पर बहस बढ़ी तो गार्ड्स ने उसे बाहर निकाल दिया।

पार्क में मौजूद गार्ड्स के इसी एक्‍शन ने जर्मन महिलाओं को नाराज कर दिया और वे शनिवार, 10 जुलाई की दोपहर को बर्लिन की सड़कों पर टॉपलेस होकर उतर आईं। मैरिएननप्लात्ज में महिलाओं ने फ्रांसीसी महिला के साथ प्रशासन के रवैये का विरोध किया और लैंगिक समानता की मांग की। इस प्रदर्शन में पुरुष भी टॉपलेस होकर शामिल हुए, जबकि कुछ ने ब्रा और बिकिनी पहन रखे थे।

21वीं शताब्दी में यूरोप जो विकसित और आधुनिक माना जाता है वहां पर ऐसी हरकतें सामने आ रही हैं एक बार अवश्य विकसित राष्ट्र को विकासशील देशों के बारे में एक बार सोचना चाहिए। आज भी आधी आबादी अपने सामाजिक लांछन के चलते मौलिक अधिकारों से वंचित है।

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