देशभर में जमाखोरी के 6244 हुए केस दर्ज, सर्वाधिक यूपी में हुए दर्ज, पढ़िए NCRB की ये रिपोर्ट
साल-2020 में फार्मर प्रोटेस्ट पर आईपीसी की धारा-147, 151 (धारा-144 का उल्लंघन और शांतिभंग करना) में 13 राज्यों में 2188 केस दर्ज हुए हैं
नई दिल्ली: केंद्र सरकार आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 को बदलकर कृषि कानून (विधेयक-2020) लाई है। इसके खिलाफ देशभर में किसानों का प्रदर्शन जारी हैं। एक तरफ सरकार नया कानून रद करने को तैयार नहीं है, दूसरी तरफ जमाखोरी रोकने के लिए पुराने कानून का ही सहारा ले रही है। देशभर में सबसे ज्यादा मुकदमे 1955-अधिनियम के तहत उत्तर प्रदेश राज्य में दर्ज हुए हैं।
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी)-2020 की रिपोर्ट बताती है कि पुराने कृषि कानून के तहत एक साल में देश के 32 राज्यों में 6244 केस दर्ज किए गए। इसमें सर्वाधिक यूपी में 1705 मुकदमे दर्ज हुए। दूसरे नंबर पर बिहार में 699 और फिर तीसरे नंबर पर महाराष्ट्र में 524 मुकदमे दर्ज किए गए। इसके अलावा जम्मू कश्मीर में 391, आंध्र प्रदेश में 357, असम में 108, छत्तीसगढ़ में 34, गुजरात में 130, हरियाणा में 132, हिमाचल प्रदेश में 18, झारखंड में 123, कर्नाटक में 478, केरल में 45, मध्यप्रदेश में 285, राजस्थान में 326, ओडिशा में 46, तमिलनाडु में 195, तेलंगाना में 248 और पश्चिम बंगाल में 225 केस दर्ज किए गए।
इस कानून के तहत केंद्र सरकार, राज्य सरकारों के माध्यम से आठ श्रेणी की वस्तुओं पर नियंत्रण रखती है। इसमें ड्रग्स, उर्वरक, खाद्य तिलहन एवं तेल की चीजें, कपास धागा, पेट्रोलियम व इसके उत्पाद, कच्चा जूट और जूट वस्त्र, खाद्य-फसलों के बीज, फेसमास्क व हैंड सैनिटाइजर शामिल हैं। इन वस्तुओं के स्टॉक की एक सीमा तय है।
अधिनियम-1955 में संशोधन करके अधिनियम-2020 लागू किया है। इस संशोधन में अनाज, दलहन, तिलहन, खाद्य तेलों, प्याज और आलू को धारा 3(1) के दायरे से बाहर कर दिया गया है। यानि अब आपदा, युद्ध जैसी परिस्थितियों में ही सरकार इन वस्तुओं पर नियंत्रण रख सकेगी।
साल-2020 में फार्मर प्रोटेस्ट पर आईपीसी की धारा-147, 151 (धारा-144 का उल्लंघन और शांतिभंग करना) में 13 राज्यों में 2188 केस दर्ज हुए हैं। इनमें बिहार में 1286, महाराष्ट्र में 279, उत्तर प्रदेश में 142, कर्नाटक में 148, झारखंड में 83, गुजरात में 80, हरियाणा में 34 मुकदमे हुए हैं। दिल्ली में 26 जनवरी 2021 को ट्रैक्टर परेड की हिंसा में 50 से ज्यादा मुकदमे दर्ज हुए, लेकिन यह मामला 2021 का है, इसलिए एनसीआरबी की रिपोर्ट में इसका जिक्र नहीं है