Bihar Caste Based Survey: बिहार में आज से शुरू होगा जाति आधारित सर्वे, जानें तेजस्वी यादव ने इसके क्या फायदे बताए

Bihar Caste Based Survey: केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने 2011 में सामाजिक-आर्थिक और जातिगत जनगणना कराई थी, लेकिन जाति के आंकड़े जारी नहीं किए गए थे।

Update: 2023-01-07 04:26 GMT

Bihar Caste Based Survey: बिहार में आज से शुरू होगा जाति आधारित सर्वे, जानें तेजस्वी यादव ने इसके क्या फायदे बताए

Bihar Caste Based Survey: Bihar Caste Based Survey: बिहार में आज से जाति आधारित सर्वे शुरू होगा। डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने कहा है कि यह सर्वे हमें वैज्ञानिक आंकड़े देगा जिससे उसके अनुसार बजट और समाज कल्याण की योजनाएं बनाई जा सकें। उन्होंने कहा कि भाजपा गरीब विरोधी है। वे नहीं चाहते कि ऐसा हो। बता दें कि इस परियोजना पर 500 करोड़ रुपये खर्च होंगे। सरकार दो चरणों में इसे पूरा करेगी। पहला चरण 21 जनवरी तक पूरा होने की संभावना है। इसमें राज्य के सभी घरों की संख्या की गणना की जाएगी। दूसरे चरण में मार्च से सभी जातियों, उप-जातियों और धर्मों के लोगों से संबंधित डेटा एकत्र किया जाएगा।

बताया जा रहा है कि पंचायत से जिला स्तर तक आठ स्तरीय सर्वेक्षण के तहत एक मोबाइल एप्लिकेशन के माध्यम से डेटा डिजिटल रूप से एकत्र किया जाएगा। ऐप में स्थान, जाति, परिवार में लोगों की संख्या, उनके पेशे और वार्षिक आय के बारे में प्रश्न होंगे। जनगणना कर्मियों में शिक्षक, आंगनवाड़ी, मनरेगा या जीविका कार्यकर्ता शामिल हैं। केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय और बिहार के एक भाजपा सांसद ने 2021 में संसद में कहा था कि अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) को छोड़कर कोई भी जाति-आधारित जनगणना नहीं होगी। इसके बावजूद बिहार में जातिगत जनगणना आयोजित किया जा रहा है। आजादी के बाद से केंद्र सरकार ने अब तक सात जनगणनाएं की हैं और केवल अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति से संबंधित आंकड़े प्रकाशित किए हैं।

राज्य सरकार ने पहले अपनी जातिगत जनगणना को पूरा करने की समय सीमा को तीन महीने बढ़ाकर मई 2023 कर दिया था। बिहार सरकार का कहना है कि जातिगत जनगणना के डेटा से कल्याणकारी नीतियां तैयार करने में मदद मिलेगी। बिहार सरकार का कहना है कि गैर-एससी और गैर-एसटी से संबंधित आंकड़ों के अभाव में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की जनसंख्या का सही अनुमान लगाना मुश्किल है। बता दें कि 1931 की जनगणना में ओबीसी की आबादी 52 फीसदी आंकी गई थी। केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने 2011 में सामाजिक-आर्थिक और जातिगत जनगणना कराई थी, लेकिन जाति के आंकड़े जारी नहीं किए गए थे।

बिहार विधान सभा ने जातिगत जनगणना के पक्ष में 2018 और 2019 में दो सर्वसम्मत प्रस्ताव पारित किए। जून 2022 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अध्यक्षता में बिहार में एक सर्वदलीय बैठक हुई, जिसमें सर्वसम्मति से इसे आगे बढ़ाया गया। जातिगत जनगणना की मांग करने वालों का कहना है कि एससी और एसटी को उनकी आबादी के आधार पर आरक्षण दिया गया था, लेकिन ओबीसी के मामले में नहीं। उनका कहना है कि कोटा को संशोधित करने की जरूरत है और इसके लिए जाति आधारित जनगणना की जरूरत है।

जातिगत जनगणना का क्या पड़ेगा राजनीतिक प्रभाव?

यदि 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले जातिगत जनगणना के आंकड़े सामने आते हैं, तो नीतीश और तेजस्वी यादव इसके सबसे बड़े लाभार्थी हो सकते हैं। इसके विपरीत, संवेदनशील जातिगत जनगणना के आंकड़े मंडल और कमंडल राजनीति के एक नए दौर को फिर से उठा सकते हैं।

1990 के दशक की शुरुआत में देखा गया था कि केंद्र में जनता दल सरकार ने अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए रथ यात्रा करने वाले अपने नेता लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व वाली भाजपा की कमंडल राजनीति का मुकाबला करने के लिए ओबीसी को आरक्षण देने वाली मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू की थी। मंडल आयोग की रिपोर्ट के लागू होने से पूरे देश में हिंसा भड़क गई थी। जातिगत जनगणना का समर्थन नहीं करने के केंद्र के कारणों में एक कारण ये भी है कि पूर्व की घटना फिर से न दोहराई जाए।

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