साहेब ने 70सालों का रोना फिर रोया, लेकिन BJP के युग पुरुष अटल जी और लौहपुरुष आडवाणी जी को तो बख्स देते!

लेकिन एक भी ऐसा नहीं मिला, जिसने सड़कों पर उतरकर सरकार और साहेब के खिलाफ हल्ला बोलने की जरूरत मानी हो।

Update: 2020-08-15 13:18 GMT

वीरेंद्र सेंगर 

आज स्वतत्रंता दिवस की साल गिरह है।पूरा देश बधाई और शुभकामना संदेशों से लबालब है।लाल किले से देश के बड़कऊ का भी लंबा संबोधन सुना। एक बार फिर साहेब ने 70सालों का रोना रोया। हैरान करने वाली बात ये कि इस कथित नाकारा कालखंड में वे जनता पार्टी की सरकार को भी लपेटे में ले लेते हैं, जिसमें भाजपा के युग पुरुष रहे अटल जी और अपनों की मण्डली में लौहपुरुष कहलाने वाले लाल कृष्ण आडवाणी जी मंत्री थे। बाद में अटल जी तीन बार पीएम बने। करीब छह साल राज किया।

भाजपा के अपने दस्तावेजों में दर्ज है कि अटल सरकार की तमाम ऐतिहासिक उपलब्धियां रही हैं।उन्हीं के दौर में कारगिल युद्ध हुआ था। जिसमें हमारी सेना ने बेमिसाल शौर्य दिखाया था। संघ परिवार पूरे गाजे बाजे के साथ हर साल विजय दिवस मनाता है। ... यह अलग बात है कि इस.युद्ध में अपना ही इलाका सिर्फ खाली कराया गया था। उसी दौर में इस विजय को लेकर विरोधी सियासी चुटकियां भी ले लेते थे।मुझे याद है ,कवि हृदय अटल जी मुस्कराते हुए ये तंज सुन भी लेते थे।कांग्रेसी राज्य सभा सदस्य थे,बाल कवि बैरीगी। उन्होंने संसद में वाजपेयी जी के सामने एक कविता पढ़ी, जिसके बोल थे। अपने घर में ही बमबारी, वाह भाई!अटल बिहारी!इस तंज पर अटल जी भी हंस पड़े थे। कवि राज अटल ने शाबासी में ताली भी बजा दी थी। उन्होंने बैरीगी जी को घर बुलाकर गले भी लगाया था।फिर एक स्व रचित कविता से बैरीगी जी को धो भी दिया था।यह पूरा वाकया बैरागी जी ने ही मुझे एक शाम बताया था।

.. . . किस्सा कोताहा ये कि साहेब की पार्टी में ही अटल जी जैसे कितने विराट हृदय नेता रहे हैं,जो विपक्षी भले मानुषों को गले लगाते थे।आज की तरह उनके यहां सीबीआई और ईडी स्वागत के लिए नहीं भेजते थे!छह सालों की सत्ता में कुछ बेहतरीन काम हुए जरूर थे ।लेकिन इतने नहीं कि शाइनिंग इंडिया हो जाए? 2004 के चुनाव में भाजपा की यही टैग लाइन बन गयी थी। उनके साथ भी एक सुदर्शन चेहरे वाले चाणक्य हुआ करते थे,।प्रमोद महाजन ।वे सियासी शो मैन थे।चुनाव को लेकर कुछ अफलातूनी भी थे।इसकी गाज अटल जी पर पड़ी ,वे चुनाव हार गये थे महाजन जी असमय ही चल बसे ।सो ,उनके बारे में और ज्यादा कुछ नहीं कहते। दो ढाई साल जनता पार्टी की सरकार थी।छह साल अटल जी ने राज किया।साहेब!जब 70साल को कोसते हैं ,तो अटल जी की ही नहीं, शायद अपनी सत्ता के दो साल भी नाकाराकाल में शामिल कर लेते हैं?क्योंकि इसके बगैर 70साला हिसाब फिट नहीं बैठता।

किसी ने इस तथ्य का भी जवाब मांगने की जवां मर्दी नहीं दिखाई ? अरे!मैं तो बैक गीयर में चल पड़ा!अब बात आज की।कोरोना और लाकडाउन.अनलाकडाउन का फेर जारी है।जिंदगी सीमित दायरे में सिकुड़ कर रह गयी है।जीवन में खालीपन काफी है।साहेब के तमाम चिंटू बगैर मांगे सलाह दे जाते हैं।यही कि बी पाजटिव!यानी सकारात्मक सोच बनाओ।कोशिश भी की ,झाल मंजीरा भी बजाया ।लेकिन नकारात्मक ख्याल ही बढ़े। सवाल सामने यही आता है कि देश काल में कुछ तो बेहतर हो रहा हो,?जिस पर खुशी की बांसुरी बजाई जाए?क्या झांसों और सियासी जुमलों पर सालों ता थैय्या किया जा सकता है? अब मैंने उन चिंटुओं की चिंता छोड़ दी है।लेकिन पत्रकारिता का कीड़ा ऐसा होता है ,वो आपको चैन नहीं लेने देता। . आज सुबह यही हुआ।मैने गलती से मन की बात सुन ली।वो बड़क ऊ वाली मन की बात नहीं।अपने मन की बात।अब लग गया कि ये मन की बात में होता लोचा ही है।

चाहे वो देश के बड़क ऊ की हो,या अदने इस नाचीज की ।मन में हूक उठी कि जनता जनार्दन से जाना जाए कि उन्हें आखिर गुस्सा क्यों नहीं आता?कोरोनाकल से पहले ही देश की आर्थिक हालत बेहद खराब हो गयी थी।करोड़ों के रोजगार छिन गये ,आप चुप रहे।लाकडाउन में लाखों प्रवासी मजदूर बदहाली का शिकार बने।सब चुप रहे।बड़के का साथ दिया।क ई प्रदेशों में विधायकों और सांसदों की घुड़ मण्डी लगीं।कुछ जगह अरबों रुपये के खेल से सत्ता हरण का खेल हुआ, तुम चुप रहे।लद्दाख में विश्वासघाती चीन हमारी छाती में आ बैठा।हमारे बीस जवानों को भी शहीद होना पड़ा।सबकी आंखों में धूल झोंककर वे बोलते भये कि हमारी सीमा में न कोई आया न घुसा।जबकि धीरे धीरे सच आप भी जान गये।इसीलिये तो चीन को कोसते हो।लेकिन अपने झांसा राम जी से गुस्सा नहीं होते हो,आखिर क्यों?इसी क्यों का जवाब लेने के लिए अपने आसपास ही निकला।कुछ कार चालकों से बात हुई ।खूब कुरेदा। उनकी जिंदगी से जुड़ी समस्याओं पर।जवाब यही मिले।उनको सीधे फायदा नहीं मिला।पिछले सालों में वे और गरीब हुए हैं।

लेकिन इसमें बेचारे मोदीजी क्या करें?हमारे पूर्व जन्म के पाप रहे होंगे।उन्हें तो भोगना ही पड़ता है।इस किस्म के जवाब लगभग एक दर्जन ने दिए।पांच छह छोटे दुकानदारों से मुलाकात हुई।सबने बदहाली के किस्से तो जमकर सुनाए।यह भी माना की सरकारी नीतियों के चलते वे बदहाल हुए हैं।लेकिन जब बात मोदीजी जी की आयी ,तो उनके स्वर बदल गये।बोले, मोदीजी जी तो केवल दो घंटे सोते हैं।दिन रात काम में लगे रहते हैं।70सालों में हरामखोर सरकारें रही हैं।ठीक करने में समय तो लगेगा?जानना चाहा कि ये जानकारियां कहां से मिलती हैं ?जवाब मिला, जीटीवी,आजतक व इंडिया टीवी आदि से।प्रति सवाल करने की गुंजाइश नहीं.थी।अपार्टमेंट के कुछ युवाओं से बात हुई।वे झंडारोहण कार्यक्रम में जुटे थे।ज्यादातर साफ्टवेयर कारपोरेट में कार्यरत हैं।उनकी सैलरी में 15.से लेकर 40 प्रतिशत की चपत लगी है।इसी साल जनवरी में गणतंत्र दिवस के अवसर पर ये साहेब के लगभग अंधभक्त लग रहे थे।अब रुझान कुछ बदला है।बोले, अकेला मोदीजी ही क्या क्या करे ?,बाकी तो सरकार में यहां भी चोर बैठे हैं।

एक जनाब!एक मल्टी नेशनल में जीएम हैं ।दो करोड़ का सालाना पैकेज है।बोले, सरकार को रिटेल की बेलगाम होती मंहगाई थामनी चाहिए।सवाल किया, आप तो अमीर हैं, फिर मंहगाई का रोना क्यों?जवाब मिला।मंहगाई से मेरा बजट भी खराब हो रहा है।डीयू के कुछ छात्रों से मुलाकात हुई।दो ने तो मोदीजी जी का भी लिहाज नहीं किया।मैंने उन्हें सीख दी कि देश के पीएम के बारे में नाराजगी के बावजूद भाषा शालीन रहनी चाहिए।इस पर एक तो कुपित ही हो गया।बोला, अंकल माफ कीजियेगा!आपकी बिरादरी यानी मीडिया के लोग बिकाऊ हैं।

आप लोगों से अच्छे और चरित्रवान तो कोठेवालियों हैं।अपना जिस्म बेचती हैं,देश नहीं बेचतीं।आपलोग तो पूरे देश को गुमराह कर रहे हो।दलालों से बदतर हो।देश की सही तस्वीर आम आदमी तक पहुंच ही नहीं रही।लोगों को गुस्सा कहां से आयेगा? आप लोग जनता को हिजड़ा बना रहे हैं!ये चंद युवा अपवाद जरूर रहे जो गुस्से में उबलते मिले।करीब सौ लोगों से मुलाकात हुई।लगभग दो तिहाई ने साहेब की तरफदारी की।एक हिस्सा बहुत मायूस भी मिला।लेकिन एक भी ऐसा नहीं मिला, जिसने सड़कों पर उतरकर सरकार और साहेब के खिलाफ हल्ला बोलने की जरूरत मानी हो।मुझे आज लगा कि वे वाकई नसीब वाले हैं।उन्हें गौ माता जैसी भोली जनता मिली है।इसीलिए तो आत्म विश्वास से कह पाते हैं, सब चंगा सी।करीब पांच घंटे की कवायद पूरी करके लौटा हूं।आज शनिवार है।सो पसीना बहाकर अपना शनि भी उतार आया।इसे ही आपसे साझा कर रहा हूं।उन्हें तो गुस्सा नहीं हैं।पता नहीं मुझे क्यों गुस्सा आए जा रहा है?

लेखक वरिष्ठ पत्रकार है 

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