सनकी शासक ने ली बेकसूर मजदूरों की जान, मोदी को जश्न नही, स्यापा मनाना चाहिए!

मोदी के छह साल के बाद बीजेपी मना रही है जश्न

Update: 2020-05-31 03:56 GMT

महेश झालानी की फेसबुक से साभार 

हिंदुस्तान का इतिहास वर्तमान प्रधानमंन्त्री नरेंद्र मोदी की तानाशाही को कभी माफ नही करेगा जिसने एक फरमान जारी कर देश के 138 करोड़ लोगों को घरों में कैद कर नारकीय जीवन व्यतीत करने को मजबूर कर दिया । इस तानाशाह की नासमझी और अड़ियल रवैये की वजह से लाखों श्रमिक अपने परिवार के साथ सिसक सिसक कर कराहते रहे । लच्छेदार भाषणों के अलावा देश की जनता को आखिर मिला क्या ?

बात कोरोना की हो रही है । हिटलर की तरह देश का प्रधानमंत्री टीवी के सामने प्रकट होता है और लोगों को घरों में कैद रहने का फरमान सुना देता है । फरमान जारी करने से पहले इसके दुष्परिणामो के बारे में कुछ भी सोचने या विचार-विमर्श करने की जरूरत तक महसूस नही की गई । नतीजतन ऐसे लाखों श्रमिक जो अपने घरों से सैकड़ो किलोमीटर दूर रोजगार के लिए विभिन्न प्रदेशों में आये थे, बिना सजा के कैदी बनकर रह गए ।

भक्तगण और ज्ञानी पुरुष मेरी बात में अवश्य टांग अड़ाते हुए बेतुके तर्क पेश करेंगे । मोटा तर्क यही होगा कि लॉक डाउन लागू करने के अलावा चारा क्या था । भक्तों की बात सौ फीसदी वाजिब है । लेकिन सवाल उतपन्न होता है कि जिस तरह आज श्रमिक ट्रेन, बस आदि संचालित कर श्रमिकों को उनके गन्तव्य स्थल पर छोड़ा जा रहा है, यह कार्य लॉक डाउन के वक्त भी तो किया जा सकता था ।

लेकिन नही । नोटबन्दी की तर्ज पर ऐलान कर करोड़ो लोगो को नारकीय जीवन व्यतीत करने के लिए धकेल दिया मौत के कुएं में । एक व्यक्ति की सनक के कारण देश की अर्थ व्यवस्था तो चौपट हो ही गई, इसके अलावा मजदूरों के सामने खाने के लाले पड़ गए । जीवन का पहिया एक झटके में जाम होकर रह गया । जब स्थिति बेकाबू होगई तो साहब खुद तो गायब होगये और सारा ठीकरा राज्यो के माथे पर फोड़ दिया ।

असल मुद्दा यह है कि पहले सबको सचेत किया जाता कि फलाँ तारीख से मुकम्मल तौर पर लॉक डाउन लागू होगा । किसी व्यक्ति को किसी भी परिस्थिति में घर से बाहर निकलने नही दिया जाएगा । यानी पुख्ता तौर पर कर्फ्यू । जिन लोगों को जहां जाना होता, बड़ी आसानी और कष्ट रहित होकर अपनी यात्रा पूरी कर लेते । ऐसे में ना लोगों को पुलिस की लाठियां खानी पड़ती और न ही लोगो के पैरों में छाले पड़ते । रेल की पटरियों ना सोना पड़ता और न ही रेल भूख-प्यास से तड़पते बेकसूर लोगों को ट्रेन कुचलकर भागती ।

आज सरकार का मतलब है नरेंद्र मोदी और अमित शाह । पूरा मंत्रिमंडल और भाजपा इन दोनों के सामने नत मस्तक है । हिटलरशाही इंदिरा गांधी के वक्त भी थी । लेकिन आज उससे भी ज्यादा है । सारा मीडिया मोदी और भाजपा की स्तुति करने में अपने को धन्य समझता है । पत्रकारों में होड़ मची हुई है कि कौन ज्यादा चमचागिरी करे । नतीजतन असल मुद्दे गौण होते जा रहे है और वाहियात की पब्लिसिटी में समय जाया किया जा रहा है ।

हालात जब पूरी तरह बेकाबू हो चुके है तो मोदी सरकार ने पल्ला झाड़ते हुए सारी जिम्मेदारिया राज्यों के कंधे पर डाल दी है । अगर राज्यों पर ही जिम्मेदारियां डालनी थी तो दो माह तक तमाशा क्यों ? लॉक डाउन से पहले राज्यों से राय-मशविरा क्यों नही लिया गया, है कोई जवाब मोदीजी आपके पास ?

केंद्र सरकारी नासमझी, उतावलेपन और तानाशाही के कारण सैकडों मजदूर निर्मम तरीके से मौत के मुँह में समा गए है । मौत का यह सिलसिला आगे भी जारी रहने वाला है । कौन जिम्मेदार है इन बेकसूर की मौत का ? इमरती, धप्पो, सुगनी, संती के बच्चों का पेट अब कैसे भरेगा, कोई जवाब नही है मोदी सरकार के पास ।

मोदी सरकार को दो साल का जश्न नही, मजदूरों की मौत का स्यापा मनाकर अपने पापों का प्रायश्चित करना चाहिए । वरना आने वाली पीढ़ी मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में नही, असहाय, गरीब और मजलूमो की जिंदगी से खिलवाड़ करने वाले के रूप में देखेगी ।

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