अतिक्रमण मुक्ति अभियान में 'सेकुलर' बना बुल्डोजर!
अतिक्रमण मुक्ति अभियान राष्ट्रीय मुद्दा बन चुका है।
अतिक्रमण मुक्ति अभियान राष्ट्रीय मुद्दा बन चुका है। नगर निगम और नगरपालिकाएं मजबूत दिख रही हैं। केंद्र-राज्य सरकारें खामोश हैं। क्या स्थानीय निकायों का स्वर्ण काल आ गया है? क्या देश का लोकतंत्र इतना उदार हो गया है कि सत्ता का विकेंद्रीकरण इस कदर नज़र आने लगा है कि स्थानीय निकायें फैसले ले रही हैं?
भ्रम में रहने की जरूरत नहीं है। स्थानीय निकायों को जहां से शक्ति मिली है या मिल रही है, उसे समझना हो तो कुछ नारों पर गौर कीजिए-
"कागज भी दिखाना होगा, अतिक्रमण भी हटाना होगा।" "बांग्लादेशी-रोहिंग्याओं को भगाओ, अतिक्रमण को हटाओ।" "पत्थरबाजों को सबक सिखाओ, बुल्डोजर से अवैध निर्माण गिराओ।"
ये वो नारे हैं जिसने बुल्डोजर में भी 'प्रतिशोध' भरने का काम किया है। स्थानीय निकाय 'राष्ट्रवादी' होकर 'घुसपैठिए' और 'देशविरोधी' ताकतों को बुल्डोज कर रहे हैं। ऐसा करते हुए उन्हें शाबाशी मिल रही है, देश की मीडिया उन्हें सराह रही है, देश के 'राष्ट्रवादी' उनके गुण गा रहे हैं।
नगर निगम ने सुस्त रहने का रूटीन क्यों तोड़ा?
जहांगीरपुरी में देश की सुप्रीम अदालत के फैसले पर अमल करने में कोताही बरतने का 'शौर्य' भी दिल्ली नगर निगम के अधिकारियों ने दिखलाया। औपचारिक प्रतिक्रियाएं इस रूप में रहीं कि अतिक्रमण हटाने की यह रूटीन में की जा रही कार्रवाई है और फरवरी महीने से चल रही है।
सच यह है कि सुस्त रहने का रूटीन नयी दिल्ली नगर निगम ने तोड़ दिया है और यह सुस्ती टूटी है बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष आदेश गुप्ता के प्रार्थना पत्र के बाद। इधर आवेदन मिला और उधर अगली सुबह अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई शुरू हो गयी। इस त्वरित कार्रवाई के पीछे यह बात भी वजह थी कि निगम ने देख लिया था कि आवेदक केंद्रीय गृहमंत्री के साथ बैठक के बाद आवेदन लेकर आया था।
शाहीनबाग से गुजरेगा बुल्डोजररूपी अश्वमेघी घोड़ा!
एनडीएमसी ने खुलकर बताया कि बुल्डोजररूपी 'अश्वमेघ यज्ञ का घोड़ा' शाहीनबाग, सरिता विहार, कालिंदी कुंज जैसे इलाकों से अब गुजरेगा। अतिक्रमणकारी तैयार हो जाएं। मतलब हथियार डाल दें। निगम की तैयारी ऐसी है क अब ऐसा मौका भी नहीं मिलेगा कि कोई सुप्रीम कोर्ट रूपी लव-कुश को बुला लाए, जो इस अश्वमेघी घोड़े को रोक दे। कार्रवाई कभी भी, किसी भी दिन, किसी भी समय हो सकती है। नतीजा यह हुआ है कि हर दिन मीडिया सुबह से खबर लेकर तैयार है कि आज शाहीनबाग में चलेगा बुल्डोजर।
मेयर मुकेश सुर्यन के इस बयान पर गौर कीजिए जिसके बाद मीडिया ने कहना शुरू कर दिया कि कागज भी दिखाना होगा, अतिक्रमण भी हटाना हो- "हम दिल्ली में अतिक्रमण के ख़िलाफ़ बड़ा अभियान चला रहे हैं। दिल्ली में रोहिंग्या व बांग्लादेशियों ने बहुत जगहों पर कब्जा किया हुआ है।"
आंदोलनकारियों से बदला है 'बुल्डोजर'?
मतलब यह कि दो साल पहले शाहीनबाग की महिलाओं ने सीएए-एनआरसी के खिलाफ जो आंदोलन किया था, उसकी सज़ा है अतिक्रमण हटाओ अभियान। अतिक्रमण हटाने के नाम पर सबक सिखाने का अभियान चलाया जा रहा है। यही बात तब भी स्पष्ट हुई थी जब देश के उन इलाकों में बुल्डोजर चलाए जाने लगे, जहां सांप्रदायिक दंगे हुए थे। चाहे वह मध्यप्रदेश में खरगौन हो या फिर दिल्ली में जहांगीरपुरी।
राजस्थान के अलवर में तो नगरपालिका ने अतिक्रमण मानकर मंदिर पर बुल्डोजर चलवा दिया। ताज्जुब की बात यह है कि इस नगरपालिका में बीजेपी का बोलबाला है। हालांकि ताज्जुब करने की बात अब यह नहीं रह गयी है क्योंकि मंदिर गिराने का ठीकरा राजस्थान की अशोक गहलौत नीत कांग्रेस सरकार पर मढ़ दिया गया है और 'हिन्दू विरोधी सरकार' के ख़िलाफ़ जुलूस-प्रदर्शन जारी है।
'सेकुलर' हुई गोदी मीडिया!
गोदी मीडिया अचानक धर्मनिरपेक्ष हो गया है। वह अतिक्रमण हटाओ अभियान को धर्मनिरपेक्ष चश्मे से देखने लगा है। जहांगीरपुरी में गुप्ता जूस सेंटर और रमन झा की दुकान पर बुल्डोजर का चलना उसे धर्मनिरपेक्ष बुल्डोजर की धर्मनिरपेक्ष कार्रवाई लगती है। गोदी मीडिया सबूत के साथ कहता है- "बुल्डोजर सिर्फ मुसलमानों पर ही नहीं, हिन्दुओं की दुकानों पर भी चले हैं।"
धर्मनिरपेक्षता का गिरगिटी रंग चढ़ाए गोदी मीडिया वाले स्क्रीन पर योगी आदित्यनाथ के राज में चलते बुल्डोजर के दृश्य यह खबरदार करते हुए चलाए जाते हैं कि दिल्ली में अतिक्रमण हटाने को हिन्दू-मुसलमान के चश्मे से ना देखें। गिरगिटी रंग फिर बदलता है जब इसी स्क्रीन पर शाहीनबाग के दृश्य दिखाए जाने लगते हैं कि लोग खुद से अतिक्रमण के सामान पैक कर रहे हैं। ख़बर के साथ टैगलाइन होती है- भय बिन होय न प्रीति। खुद गोदी मीडिया मान लेता है कि अतिक्रमण का यह पूरा अभियान ख़ौफ़ पैदा करने के लिए है।
दोषी वे हैं जिनके अरमानों पर चलता है बुल्डोजर!
अतिक्रमण मुक्ति के इस अभियान में एक वर्ग पीड़ित होकर दुखी है तो दूसरा वर्ग पर-पीड़ा से खुश है। जो वर्ग अतिक्रमण मुक्ति के बहाने बुल्डोजर की मार या इसका ख़तरा झेल रहा है उसे लगता है कि उसकी प्रताड़ना की जा रही है। दूसरा वर्ग अहसास दिला रहा है कि पहला वर्ग इसी प्रताड़ना के 'लायक' है।
अतिक्रमण मुक्ति अभियान के बरक्स पैदा हुए ये दो वर्ग धार्मिक रूप से अलग-अलग हैं इसलिए पूरा माहौल सांप्रदायिक हो चला है। निर्जीव बुल्डोजर में भी मानो सांप्रदायिकता की जान फुंक गयी है। लगातार प्रश्न पूछे जा रहे हैं- आप अतिक्रमण हटाने के पक्ष में हैं या नहीं? 'हां' तो फिर चुप रहिए। मतलब विरोध मत कीजिए। 'नहीं', तो आप भी गुनहगार हैं या फिर एकपक्षीय हैं। यानी चित भी उनकी पट भी।
क्या आप पत्थरबाजों के साथ हैं? नहीं, तो उन पर बुल्डोजर चलने पर आपको तकलीफ क्यों है? क्या आप रोहिंग्याओं और घुसपैठियों के साथ हैं? नहीं, तो अतिक्रमण हटाने पर आपको दर्द क्यों हो रहा है? मान लिया गया है कि सज़ा दी जा रही है। जिन्हें सज़ा दी जा रही है वे दोषी हैं। दोषी इसलिए हैं क्योंकि बुल्डोजर चलाने वाले ऐसा मानते हैं। अब अदालतों में दोष नहीं ठहराए जाते। दोषी वो है जिनके अरमानों पर चलता है बुल्डोजर।