द केरला स्टोरी के लेखक सूर्यपाल सिंह धार जिले के देदला नामक गांव के निवासी हैं श्री सूर्यपाल सिंह आदिवासी जाति का प्रतिनिधित्व करते हैं। इनकी प्रारंभिक शिक्षा नवोदय विद्यालय मुलथान जिला धार में हुई और यह 2012 में मुंबई चले गए थे जहां इन्होंने फिल्मी डायलॉग तथा संवाद लिखने का काम इनके द्वारा किया गया। इसके पूर्व इन्होंने निमाड़ी भाषा के कई गीत लिखे हैं।
केरला स्टोरी लिखने के पूर्व अनेक पीड़ितों से इनका संपर्क हुआ और उसके बाद यह स्टोरी लिखी गई यह स्टोरी विगत 2018 से उन्होंने लिखना शुरू किया। मालवा अंचल के इस आदिवासी बालक जिसके साहस तथा कल्पना शक्ति को दाद देते हुए हम बधाई देते हैं कि इनके द्वारा मध्य प्रदेश का नाम रोशन किया गया। आदिवासियों के नाम पर राजनीति करने वालो समाज के एक बेटे ने कितना श्रेष्ठ काम किया लेकिन एक पोस्ट नही दिखी किसी की ।
लव जिहाद शब्द केरल से ही आया
लव जिहाद शब्द को लेकर लोग कहते हैं कि ये किसी पार्टी के द्वारा उठाया या बनाया गया शब्द है, लेकिन लव जिहाद शब्द की रिसर्च करेंगे तो पता चलेगा कि ये शब्द केरल से ही आया है। वहां के चर्च के एक फादर का शब्द है। उन्होंने वहां पर सबसे पहले जब केस रजिस्टर्ड करवाया था तो इस शब्द का उपयोग किया था। कहा था कि हमारे यहां लव जिहाद चल रहा है। हमारी क्रिश्चियन लड़कियों को कन्वर्ट किया जा रहा है। लोग लव जिहाद का मुद्दा बीजेपी का मुद्दा या पर्टिकुलर किसी संगठन का मुद्दा बोलते हैं। ये मुद्दा उनका नहीं है। बहुत साल पहले केरल से ये मुद्दा निकलकर आया है और आज पूरे देश में ये चर्चा का विषय बन गया है।
मुस्लिम वर्ग बोला था- इसमें ऐसा कुछ भी नहीं है जो आहत करेगा
राइटर सूर्यपाल सिंह का देवी अहिल्या यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ कम्प्यूटर साइंस में रविवार सुबह प्रोग्राम था, जिसमें वे स्टूडेंट्स से रूबरू होने वाले थे, लेकिन आखिरी समय पर यूनिवर्सिटी प्रशासन ने प्रोग्राम की परमिशन निरस्त कर दी। जिसके बाद प्रोग्राम नहीं हो सका, हालांकि कैंपस में मौजूद इंडियन कॉफी हाउस में बिना माइक उन्होंने कुछ देर स्टूडेंट्स से बातचीत की और फिल्म के बारे में अपने अनुभव बताए।
उन्होंने कहा कि “फिल्म बनने के बाद मुस्लिम वर्ग को हमने फिल्म दिखाई और पूछा कि हमने ईशनिंदा तो नहीं है। कोई आपत्तिजनक कंटेंट तो नहीं है। इसमें कुछ ऐसा तो नहीं है तो देखकर आहत करेगा। उन्होंने कहा कि इसमें ऐसा कुछ भी नहीं है जो आहत करेगा। ये बहुत अच्छा विषय है, जो समाज में जाना चाहिए। यही वजह है कि समाज से विरोध उठकर नहीं आया। विरोध वो लोग कर रहे हैं जो राजनीति करते हैं।
आंकड़े कभी हमने 32 हजार कहे ही नहीं थे। टीजर में हमने लिखा था कि मेरे जैसी 32 हजार लड़कियां यहां दफन हो गईं। हमने ये नहीं कहा है कि भारत से आकर दफन हो गईं। उस समय वो अफगानिस्तान में थीं। वहां पूरी दुनिया से लड़कियां आई थीं। हम 32 हजार लड़कियां दिखा भी नहीं सकते। हमने 3 लड़कियों की कहानी दिखाई और उन तीन लड़कियों ने 32 हजार लड़कियों को रिप्रजेंट किया।”
(बता दें कि फिल्म में पहले 32 हजार लड़कियों के धर्म परिवर्तन का आंकड़ा बताया गया, जिस पर विवाद भी हुआ। इसके जवाब में लेखक के द्वारा सफाई दी जा चुकी है कि टीजर में लड़की कह रही है कि अब मेरा नाम फातिमा है, मैं सीरिया में हूं, यहां की जेल में बंद हूं और मेरे जैसी 32 हजार लड़कियां यहां की रेत में दफन हैं। उसने ये नहीं कहा कि ये सभी भारत की लड़कियां हैं या भारत से लाई गई हैं। उसने ये कहा मेरी जैसी।)