क्या आप जानते है विधानसभा चुनाव विधायक के लिए होता ही नहीं, सीएम के लिए होता है?
आप डेमोक्रेसी वॉचडॉग, दिल्ली की मीडिया, इंटेलेक्चुअल, प्रोग्रेसिव लोगों इत्यादि किसी भी विशेषण वाले लोगों के हिसाब से सबसे अच्छा विधायक जिता दें, पांच साल बाद लोग उसे गाली देते मिलेंगे
ऋषभ प्रतिपक्ष
विधानसभा चुनाव विधायक के लिए होता ही नहीं, सीएम के लिए होता है. अगर विकास कार्यों की बात करें तो एक ग्राम प्रधान जितना काम अपने एरिया के लिए करा सकता है उसका दसवां हिस्सा भी विधायक नहीं करा सकता. उसके पास कोई अधिकार ही नहीं है काम कराने का. संविधान में भी कुछ खास नहीं लिखा है विधायकों के बारे में. इनका मुख्य काम है विधानसभा चलाना.
एक रास्ता निकाला गया था कि कुछ फंड हर विधायक को दिया जाए अपने एरिया में खर्च करने के लिए. पर दस साल पहले बिहार पहला राज्य बना था जिसने MLALADS फंड खत्म कर दिया. वजह बताई गई थी- भ्रष्टाचार. विकास कार्यों के नाम पर दिये गये पैसे गायब हो जाते थे. फिर बाद में लाया गया था, पता नहीं अब क्या स्टेटस है. उसके बारे में तो बात भी नहीं होती. अब विधायक का काम एक ही है- पार्टी के सुर में सुर मिलाना. चाहे कानून बनाना हो, फाइनेंशियल बिल हो या अविश्वास प्रस्ताव लाना हो, सब कुछ उसे अपनी पार्टी के हिसाब से करना है. अब तो विधानसभा चुनाव भी प्रेसिडेंशियल सिस्टम की तरह हो रहे हैं. चुनाव के बाद सीएम भी चार-पांच अधिकारियों के साथ मिलकर सारा काम करता है. सारे महत्वपूर्ण विभाग सीएम के पास ही होते हैं. कुछ मंत्रियों के पास जातीय और दबंगई आधार पर मंत्रालय मिल जाते हैं. वरना बाकी लोग बस जयकारा लगाने के लिए हैं.
ऐसे में जनता के पास भी ज्यादा विकल्प नहीं रहता. 'अच्छा विधायक' और 'बुरा विधायक' का कोई मतलब ही नहीं है. यही वजह है कि बिहार में लोग दबंग विधायक प्रेफर करते हैं. अगर दबंग रहा तो सीएम पर दबाव डालकर अपने एरिया में कुछ काम करा सकता है. कुछ नहीं करा सकता तो पुलिस-प्रशासन के लफड़े से बचा-फंसा सकता है.
यह एक मुख्य वजह है जातीय आधार पर विधायकों को जिताने की. जब आपके पास कोई अधिकार ही नहीं है, तो आपके रहने का फायदा क्या? इससे बेहतर है कि आप जातिगत ताकत को ही रिप्रजेंट करें. या कुछ ऐसा कानून बने जिससे जाति को हानि हो रही हो तो आप उसके खिलाफ अंदरूनी धरना-प्रदर्शन-विरोध करेंगे. अगर आप जाति के रिप्रजेंटेटिव नहीं है तो कैबिनेट आपकी बात सुनेगी भी नहीं. कह देगी कि आपको क्या दिक्कत है.
आप डेमोक्रेसी वॉचडॉग, दिल्ली की मीडिया, इंटेलेक्चुअल, प्रोग्रेसिव लोगों इत्यादि किसी भी विशेषण वाले लोगों के हिसाब से सबसे अच्छा विधायक जिता दें, पांच साल बाद लोग उसे गाली देते मिलेंगे. क्योंकि वो कुछ कर ही नहीं सकता. फंड से खर्च करने की कोशिश करेगा तो केस हो जाएगा. सबसे पढ़ा लिखा, विजन वाला, समझदार व्यक्ति पांच साल बाद एकदम नाकारा साबित होगा जनता की नजरों में. वो तो थाने से एक मोटरसाइकिल तक नहीं छुड़ा पाएगा. विकास कार्य तो वो ऐसे ही नहीं करा सकता. वो करेगा क्या? सिवाय अच्छी बातों के? जाति के नाम पर भड़कने नहीं देगा, धर्म के नाम पर भड़कने नहीं देगा, सोशल जस्टिस की बात करेगा, विजन की बात करेगा. पर इससे होगा क्या? ये तो स्कूल-कॉलेज में सीखने वाली बातें हैं. वो तो ये भी नहीं कर पाएगा कि छठ में श्रद्धालुओं को चाय ही पिला दे. अंत में वो धक्के मारकर निकाला जाएगा.