सच को स्वीकार नहीं करने की कवायद!
प्रधानमंत्री जी! सच को छिपाना डिपलोमेसी या मजबूत नेतृत्व का विकल्प कतई नहीं हो सकता.
प्रो0 दिग्विजय नाथ झा
इससे कतई भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि गत् 15 जून, 2020 की रात को पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में 20 निहत्थे भारतीय सैनिकों की चीनी सैनिकों के हाथों हुई दर्दनाक मौत से 45 दिनों पूर्व ही भारत के माननीय रक्षामंत्री श्रीयुत राजनाथ सिंह ने सरेआम स्वीकार किया था कि चीनी सैनिकों ने भारतीय क्षेत्र में अतिक्रमण किया है बावजूद इसके गलवान घाटी में 20 निहत्थे भारतीय सैनिकों की शहादत पर पटना यूनिवर्सिटी की पूर्व छात्रा व एक मशहूर भारतीय महिला न्यूज एंकर की 16 जून, 2020 को प्रतिक्रिया थी कि अगर चीनी सेना भारत में घुस आयी है तो इसके लिए श्रीयुत नरेन्द्र दामोदरदास मोदी के नेतृत्ववाली केन्द्र की सरकार जिम्मेदार नहीं है, बल्कि भारत की सेना स्वयं जिम्मेदार है, क्योंकि पेट्रोलिंग की जिम्मेदारी सरकार की नहीं सेना की होती है। हो सकता है कि 16 जून, 2020 से पूर्व तक बिहार के सर्वाधिक प्रतिष्ठित पटना यूनिवर्सिटी की उस पूर्व छात्रा को इतनी छोटी सी भी जानकारी नहीं रही होगी कि मौजूदा वर्ष के फरवरी महीने में ही लद्दाख के वरिष्ठ भाजपा नेता व काउंसलर ने भारतीय भूमि पर चीनी सैनिकों की मौजूदगी की लिखित सूचना भारतीय सेना के किसी भी उच्चाधिकारीयों को नहीं, बल्कि भारत के सम्मानित प्रधानमंत्री को दी थी।
इसी तरह लेह के भाजपा जिलाध्यक्ष समेत लद्दाख के भाजपा सांसद ने भारतीय सीमा में चीनी सैनिकों की व्यापक घुसपैठ की जानकारी गलवान घाटी में शहीद हुए 20 भारतीय सैनिकों को नहीं बल्कि भारत की सरकार को दी थी और सच तो यहां तक है कि जुलाई 2014, सितम्बर 2014, नवम्बर 2014, मई 2015, जुलाई 2015, जून 2016, सितम्बर 2016, अक्टूबर 2016, जून 2017, जुलाई 2017, सितम्बर 2017, अप्रैल 2018, जून 2018, नवम्बर 2018, मई 2019, जून 2019, अक्टूबर 2019 एवं नवम्बर 2019 में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से भारत के सैनिकों की नहीं भारत के मौजूदा प्रधानमंत्री की मुलाकात हुई थी। सर्वाधिक दिलचस्प तो यह कि देश के मौजूदा प्रधानमंत्री बतौर मुख्यमंत्री भी चार मर्तबा चीन के दौरे पर गए थे। इसे चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के प्रति बाबू नरेन्द्र मोदी की अटूट निष्ठा की ही असर कह सकते हैं कि 15 जून, 2020 को गलवान घाटी में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच हुई हिंसक झड़प के मुद्दे पर चर्चा के लिए 19 जून, 2020 को बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में पीएम ने साफ-साफ कहा कि वहां न तो कोई हमारी सीमा में घुसा है और न ही हमारी कोई पोस्ट किसी दूसरे के कब्जे में है। हद तो यह कि पीएम ने 28 जून, 2020 को अपने मन की बात, 30 जून, 2020 को राष्ट्र के नाम संबोधन और 03 जुलाई, 2020 को गलवान घाटी से 230 किलोमीटर दूर 11 हजार फीट की ऊंचाई पर अवस्थित नीमू गांव से सैनिकों के नाम अपने संबोधन में भारतीयों के सामर्थ्य एवं संकल्प की तो तारीफ की, परंतु चीन शब्द का कोई जिक्र नहीं किया और इतना ही नहीं आई टी एक्ट के सेक्शन 69ए के तहत 29 जून, 2020 को भारत सरकार ने चीन निर्मित अथवा कि चीनी कंपनियों के स्वामित्व वाली जिन 59 स्मार्ट फोन एप्स को प्रतिबंधित किया है, उस प्रतिबंध से संबंधित आईटी मंत्रालय की ओर से जारी प्रेस विज्ञप्ति में भी कहीं पर चीन का जिक्र नहीं है तथा सर्वाधिक शर्मनाक तो यह कि गत् 5 जुलाई, 2020 को चीनी काउंसलर वांग यी से भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की हुई दो घंटे की लंबी बातचीत के बाद भी सिर्फ गलवान घाटी के उस भारतीय इलाकों में चीन एवं भारत की सेना तकरीबन दो-दो किलोमीटर पीछे हटी है, जहां बीस निहत्थे भारतीय सैनिकों की 15 जून, 2020 की रात को हत्या हुई थी।
बहरहाल, कोई कुछ भी दावा करे, मगर उपरोक्त वर्णित तारीखों को हम महज इत्तेफाक नहीं मानते, क्योंकि आज की तारीख में इतना तो शीशे की तरह साफ है कि भारत और चीन के बीच लद्दाख में लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल पर जारी तनाव को समाप्त करने के मकसद से राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के अलावा बीते दिनों चार बार भारतीय ब्रिगेडियर एवं तीन बार भारतीय मेजर जनरल रैंक के अधिकारियों की अपने समकक्ष चीन के पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के अधिकारियों के साथ लगातार हुई बातचीत के बावजूद चीन ने भारत के लद्दाख स्थित पैंगोंग त्सो में मजबूत मोर्चेबंदी कर रखी है। हैरानी की बात तो यह कि भारत के प्रधानमंत्री सरेआम यह कह रहे हैं कि कोई भारत की सीमा में नहीं घुसा है, जबकि सेटेलाइट इमेजेस समेत न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट चीख-चीख कर बयां कर रही है कि अजीत डोभालजी के तमाम प्रयासों के बाद भी भारत के 647 वर्ग किलोमीटर इलाके पर चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी का कब्जा बरकरार है, यानी कि कह सकते हैं कि चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा को बदलने की फिराक में है और ऐसा सिर्फ हम अकेले ही नहीं कह रहे हैं, बल्कि सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च में स्ट्रेटजिक स्टडीज के प्रोफेसर ब्रहम चेलानी, ईरान और संयुक्त अरब अमीरात में भारत के राजदूत रहे के.सी. सिंह, भारत की पूर्व विदेश सचिव एवं चीन में भारत की राजदूत रही निरूपमा राव तथा रिटायर्ड आर्मी ऑफिसर व रक्षा मामलों के विशेषज्ञ प्रवीण साहनी भी लगातार कह रहे हैं कि सरकार लद्दाख के सीमाई सच को छिपा रही है और विदेश मंत्री एस जयशंकर की कूटनीति लद्दाख के सीमाई इलाकों में फेल हो गयी है, पर खुद को राष्ट्रवाद की सबसे बड़ी झंडाबरदार बता रही भाजपा खामोश है और आगामी राज्य विधानसभा के चुनावों की तैयारी में जुटी है।
इसमें बिल्कुल भी दो राय नहीं कि जिस तरह साल 1999 में कारगिल में पाकिस्तानी सेना ने घुसपैठ कर सामरिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण ठिकाने पर कब्जा कर लिया था, कुछ वैसा ही 2020 में चीन ने लद्दाख में किया है और भारत की वही चूकें एवं वही सामरिक गलतियां फिर एक बार उजागर हुई है, परंतु प्रधानमंत्री कुटनीति मोर्चे पर अपनी विफलताओं को छिपाने के लिए आत्मनिर्भर भारत के सपने बेच रहे हैं तथा कुछ गिने-चुने स्मार्टफोन एप्स पर पाबंदियां लगा रहे हैं।
दरअसल, बायकॉट चीन की बात करने वाले भारतीय भी षी जिनपिंग के प्रति नरेन्द्र दामोदरदास मोदी की निष्ठा की जमीनी हकीकत से वाकिफ नहीं हैं, अन्यथा मसूद अजहर व डोकलाम से लेकर लद्दाख तक चीन के धोखे को निरंतर देखनेवाला हर कोई भारतीय पूछना चाहेगा कि 1. सुरक्षा संबंधी संवेदनशीलता के बावजूद मौजूदा प्रधानमंत्री के बीते छह सालों के कार्यकाल में चीनी टेलीकॉम कंपनियां भारतीय बाजार पर कैसे छा गई बावजूद इसके कि चीन की दूरसंचार कंपनियों पर दुनिया के कई समृद्धशाली देश सामूहिक शक कर रहे थे और चीनी 5जी को रोक रहे थे ? 2. चीन की सरकारी कंपनियां जो चीन की सेना से रिश्ता रखती है उन्हें संवेदनशीलता और रणनीतिक इलाकों से जुड़ी परियोजनाओं में निवेश की छूट कैसे मिली ? क्यों चाइना स्टेट कंस्ट्रक्शन इंजीनियरिंग कॉर्पोरेशन, चाइना रेलवे कंस्ट्रक्शन एवं चाइना रोलिंग स्टॉक कॉर्पोरेशन रेलवे, हाईवे एवं टाउनशिप के प्रोजेक्ट में सक्रिय हैं ? क्यों न्यूक्लियर, बिजली (टर्बाइन मशीनरी) और प्रतिरक्षा (बुलेट प्रूफ जैकेट का कच्चा माल) में चीन का दखल है ? 3. हो सकता है कि चीन से सामान मांगना मजबूरी था, लेकिन हम पूंजी क्यों मांगने लगे ? संवेदनशील डिजिटल इकोनॉमी में चीन की दखल कैसे स्वीकार कर ली ? बेशक, चीन पर स्थायी शक करनेवाले भारतीय कूटनीतिक तंत्र की रहनुमाई में ही ड्रैगन का व्यापारी से निवेशक में बदल जाना आश्चर्यजनक है। वर्ष 2014 में नरेन्द्र दामोदरदास मोदी के प्रधानमंत्री बनने से पहले तक दिल्ली के कूटनीतिक हलकों में यह वकालत करनेवाले अक्सर मिल जाते थे कि चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा खासा बड़ा है यानी कि चीन को निर्यात कम है और आयात ज्यादा। इसकी भरपाई के लिए चीन को सीधे निवेश की छूट मिलनी चाहिए ताकि भारत में तकनीक और पूंजी आ सके।
अलबत्ता भरोसे की कमी के चलते चीन से सीधे निवेश का मौका नहीं मिला। वर्ष 2014 के बाद निवेश का पैटर्न बताता है कि चीन केन्द्र और राज्य सचिवालयों के भीतर तक पैठ गया है और भारत माता की जयकारा लगाने वालों ने शायद यह सुझाव मान लिया और तमाम शक-शुबहों के बावजूद चीन भारत में निवेशक बन गया। दूरसंचार क्षेत्र इसका प्रत्यक्ष बड़ा प्रमाण है, मगर यह एक बानगी भर है। अन्यथा कि इंडियन काउंसिल ऑन ग्लोबल रिलेशंस से जुड़े थिंक टैंक ''गेटवे हाउस'' की ओर से गत् फरवरी महीने में प्रकाशित एक रिपोर्ट में भारतीय स्टार्टअप्स में 4 अरब डॉलर के चीनी तकनीकी निवेश का अनुमान लगाया है। भारत में टॉप 30 यूनिकॉर्न्स (1 अरब डॉलर से ज्यादा मूल्य के स्टार्टअप्स) में से 18 चीनी फंड से पोषित और तकनीक से संचालित है। गेटवे हाउस की रिपोर्ट में चीन के फंड से पोषित 92 प्रमुख स्टार्टअप्स की सूची दी गई है।
रणनीतिक निवेश के जरिए भारतीय कारोबारों में शामिल प्रमुख फर्मों में अलीबाबा, टेनसेंट और बाइटडांस है। अकेले अलीबाबा ग्रूप ने ही बिगबास्केट (25 करोड़ डॉलर), पेटीएम डॉट कॉम (40 करोड़ डॉलर), पेटीएम मॉल (15 करोड़ डॉलर), जोमैटो (20 करोड़ डॉलर) एवं स्नैपडील (70 करोड़ डॉलर) में रणनीतिक निवेश किया है। इसी तरह एक अन्य चीनी समूह टेनसेंट होल्डिंगस ने भारतीय कंपनियों जैसे कि बायजू (5 करोड़ डॉलर), ड्रीम11 (15 करोड़ डॉलर), फ्लिपकार्ट (30 करोड़ डॉलर), हाइक मैसेंजर (15 करोड़ डॉलर), ओला (50 करोड़ डॉलर) और स्विगी (50 करोड़ डॉलर) एवं बाइट डांस कंपनी ने टिकटॉक (100 करोड़ डॉलर) में अपना निवेश किया है। यहां यह बताना अहम है कि ये चीनी फर्म इन प्लेटफार्म्स की इकलौती मालिक नहीं है। कई भारतीय और गैर चीनी निवेशक इन कंपनियों में से अधिकतर पर मेजोरिटी कंट्रोल रखते हैं, जिससे उन्हें चीनी या गैर चीनी के रूप में वर्गीकृत करना मुश्किल हो जाता है। अब सवाल है कि भारत इसका क्या विरोध कर पाएगा ? पाठकों को यह जानकर हैरानी होगी कि जिस दिन गलवान घाटी में भारतीय सैनिकों की लाशें चीन बर्बरता से गिरा रहा था, उससे महज चौबीस घंटे पूर्व भारत में चीन को दिल्ली-मेरठ रीजनल रैपिड ट्रांजिट सिस्टम प्रोजेक्ट का अंडर ग्राउंड स्ट्रेच बनाने के लिए 1126 करोड़ रूपए का ठेका दिया जा चुका था। सच तो यहां तक है कि श्रीयुत नरेन्द्र दामोदरदास मोदी के देखरेख में ही नागपुर मेट्रो के लिए चाइना रेलवे रोलिंग स्टॉक को 851 करोड़ रूपए का ठेका मिला है।
गुजरात की सरकार ने चीनी कंपनियों से निवेश के लिए 50 खरब डॉलर का करार किया है। कर्नाटक की सरकार ने 100 एकड़ भूमि न्यूनतम दर पर चीनी कंपनियों को मुहैया करायी है। देवेन्द्र फडणवीस की सरकार ने 75 एकड़ भूमि न्यूनतम दर पर चीनी कंपनियों को उपलब्ध करायी थी। हरियाणा के मौजूदा मुख्यमंत्री ने चीनी कंपनियों के साथ 18 सहमति पत्र पर दस्तखत किए हैं। और तो और भारत में सबसे अधिक चीनी कंपनियों के रीजनल ऑफिस प्रधानमंत्री के गृह राज्य में ही है एवं कटु सत्य यह भी है कि वर्ष 2011 में चीन ने जहां 102 अरब डॉलर भारत में कुल निवेश किया था, वहीं 2016 में भारत में चीन का कुल निवेश 20 खरब डॉलर के पार पहुंच गया। जरा इतिहास के पन्नों को उलटिए तो पता चल जाएगा कि चीन का भारत में कहां तक पहुंच है। वर्ष 2011 में भारत में विदेशी निवेश करनेवाले मुल्कों में चीन का स्थान 35वां था जो कि 2014 में 28वां एवं 2016 में 17वां हो गया और दिलचस्प तो यह भी कि ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के दावे के मुताबिक भ्रष्टाचार की रैंकिग में वर्ष 2013 के मुकाबले वर्ष 2018 में चीन की स्थिति बदतर होकर 10 अंक नीचे चली गई।
चीन की तमाम कंपनियां किसी एक देश में घूस और मनीलॉन्ड्रिंग के कारण प्रतिबंधित होती है, लेकिन दूसरी जगह सरकार के साथ मिलकर काम कर रही होती है। निवेश में बढ़ती जटिलताओं के साथ एक चीनी ब्रैंड की पहचान करना भी भारत में मुश्किल हो रहा है। गेटवे हाउस की रिपोर्ट कहती है कि कुछ चीनी फंड भारत में अपने निवेश को सिंगापुर, हांगकांग, मॉरीशस आदि में स्थित कार्यालयों के माध्यम से करते हैं। मिसाल के तौर पर पेटीएम में अलीबाबा का निवेश सिंगापुर होल्डिंगस प्राइवेट लिमिटेड की ओर से किया गया है। ये भारत के सरकारी डेटा में चीनी निवेश के तौर पर दर्ज नहीं है। ग्लोबल बिजनेस एनालिसिस फर्म ''काउंटर प्वाइंट रिसर्च'' के मुताबिक वर्ष 2019 की चौथी तिमाही में भारतीय समार्टफोन बाजार में रिकॉर्ड 72 फीसदी, स्मार्ट टी.वी. बाजार में 45 फीसदी, दूरसंचार उपकरण बाजार में 25 फीसदी, ऑटो पार्टस बाजार में 30 फीसदी, सोलर पावर बाजार में 90 फीसदी, स्टील बाजार में 30 फीसदी, फार्मा सेक्टर में 60 फीसदी एवं खिलौना बाजार में 85 फीसदी तक चीनी ब्रैंडस की हिस्सेदारी पहुंच गई थी और बदकिस्मती तो यह कि पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के हाथों गलवान घाटी घाटी में मारे गए 20 भारतीय सैनिकों को स्वदेशी की राग अलापने वाली सरकार की ओर से चीनी एप के जरिए ही श्रद्धांजलि तक दी गई है।
प्रधानमंत्री जी! सच को छिपाना डिपलोमेसी या मजबूत नेतृत्व का विकल्प कतई नहीं हो सकता और जिस किसी भी दिन भारत की खुफिया एजेंसियां भारतीय सीमा व भारत की अर्थव्यवस्था में चीन की गहरी व व्यापक घुसपैठ की निष्पक्ष तहकीकात आरंभ करेगी उसी दिन भारतीय नेताओं के स्वदेशी निष्ठा की हवा निकल जाएगी और भारतीय राजनीति के अनेक महारथी सलाखों के पीछे नजर आएंगे। भारत की छोटी-सी आबादी ही सही पर वह इससे सौ फीसदी वाकिफ है कि मार्च 2018 में चीनी नागरिक व हांगकांग के पूर्व गृहमंत्री पैट्रिकहो चाइना एनर्जी ग्रुप के लिए ठेके हासिल करने के दौरान युगांडा में रिश्वत एवं मनीलॉन्ड्रिग के मामले में गिरफ्तार किए गए थे। इधर यूरोप में बुडापेस्ट-बेलग्रेड रेलवे परियोजना में चीन की कंपनियों की भूमिका की जांच चल रही थी कि वर्ष 2019 की शुरूआत में बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के जरिए मलेशिया में चीनी कंपनियों के भ्रष्टाचार की पोल खुल गई और खुलासा हुआ कि मलेषिया के स्टेट डेवलपमेंट फंड को कमीशन देकर चीनी कंपनियों ने ठेका हासिल किया और जिसके तार मलेशिया के पूर्व प्रधानमंत्री से जुड़े थे।
सच पूछिये तो कांग्रेस को चीन का ज्यादा गहरा दोस्त साबित कर रहे भाजपा प्रवक्ताओं के बोल हमें बिल्कुल भी रोमांचित नहीं करते, बल्कि बुरी तरह चिंतित करते हैं, क्योंकि केन्द्र की मौजूदा सरकार समेत कई भाजपाई मुख्यमंत्रियों के रिश्ते उस चीन से हैं जहां कि सरकार, कम्युनिस्ट पार्टी, सेना, कंपनियां एवं कारोबार एक ही व्यवस्था के अलग-अलग चेहरे हैं और चीनी कंपनियां दुनिया के सबसे संगठित भ्रष्टाचार की ध्वजावाहक है। वर्ष 2012 के बाद चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने चीन की सरकारी कंपनियों को विराट ताकत देकर पूरी दुनिया में फैलाया तथा निजी कंपनियों को कम्युनिस्ट पार्टी संगठन से जोड़ा। चीन की कंपनियां कूटनीतिक रिश्तों का इस्तेमाल कर विकाशसील देशों में कारोबार लपकती है और सियासी नेतृत्व को प्रभावित करती है। वेनेजुएला के पूर्व राष्ट्रपति निकोल समादुरो की ताकत बढ़ाने में चीन टेलीकॉम दिग्गज जेडटीई की भूमिका और इक्वाडोर की सरकार पर चाइना नेशनल इलेक्ट्रॉनिक इंपोर्ट-एक्सपोर्ट कॉर्पोरेशन के असर ताजा उदाहरण हैं। चीन ने विकासशील देशों में कमजोर बुनियादी ढ़ांचा और ऊर्जा की कमी को निशाना बनाकर बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव शुरू किया जिसे पाकिस्तान और मलेशिया कॉरिडोर ऑफ करप्शन कहा जाता है और जो देश बीआरआई से बाहर थे वहां भी चीनी कंपनियां सस्ती तकनीक एवं भारी पूंजी लेकर घुसी है। केन्या एवं युगांडा में इस तरह की भ्रष्टाचार कथाएं जांच और अभियोजन के दायरे में है। भारत में सड़क, पुल, अचल संपत्ति में चीनी कंपनियों की सक्रियता सार्वजनिक है।
पिछले साल भारत और चीन ने ऊर्जा और तेल में दोस्ती का करार किया है। हुआवे, जेडटीई, बायटू, अलीबाबा, टेनसेंट जैसी निजी कंपनियां पहले चीन के नागरिक निगरानी तंत्र का हिस्सा बनी और फिर विकासशील देशों के उभरते डिजिटल बाजार में पूंजी और तकनीक में बड़ा हिस्सा कब्जा लिया। हुआवे और जेडटीई को अमेरीका की सरकार ने खतरा घोषित किया है, जबकि भारत के निजी व सरकारी टेलीकॉम नेटवर्क इनके बूते चल रहे हैं। बीते दिसम्बर में ही हुआवे को भारत में 5जी के परीक्षण को मंजूरी मिली है। अफ्रिका में सक्रिय 87 फीसदी चीनी कंपनियां रिश्वत देती है। वर्श 2019 में अमेरीकी सिक्युरिटी एक्सचेंज कमीशन से विदेशी रिश्वत कानून के तहत सजा पाई कंपनियों में चीन के मामले सबसे ज्यादा है। बावजूद इसके कि श्रीयुत नरेन्द्र दामोदरदास मोदी के प्रधानमंत्रित्वकाल में चीनी दूरसंचार उपकरण निर्माता टिड्डी की तरह भारत पर कैसे छा गए ? आज अधिकतर हाथों में चीनी कंपनियों का मोबाइल देखने वाले क्या भरोसा करेंगे कि 2010-11 में जब कंपनियां नेटवर्क के लिए चीनी उपकरणों पर निर्भर थी, तब संदेह इतना गहरा था कि भारत ने चीन के दूरसंचार उपकरणों पर प्रतिबंध तक लगा दिया था ?
पर मेक इन इंडिया के बाद यह प्रतिबंध इस तरह हटा कि भारत चीनी मोबाइल उत्पादन का बड़ा केन्द्र बन गया और यह निवेश सरकार की सफलताओं की फेहरिश्त में न केवल सबसे ऊपर है, बल्कि कोविड के बाद इसमें नई रियायतें जोड़ी गई है। चीन का क्रोनी कैपिटलिज्म दुनिया के सबसे संगठित और बहुआयामी है। अन्य देशों के जिन कारोबारों में भ्रष्टाचार करते चीनी कंपनियों को पकड़ा गया, उन्हीं कारोबारों में वे भारत में भी सक्रिय हैं। देश को कभी नहीं बताया गया कि चीनी तकनीक और पूंजी को लाने में क्या एहतियात बरते गए हैं और हमें पता है कि दुनिया में सबसे ज्यादा संदिग्ध चीनी कंपनियां भारत में टेलीकॉम, स्टार्टअप, फिनटेक क्रांति की अगुवा है। ऐसे में चीन पर सरकार के प्रपंचगान पर मुझे गालिब के शेर याद आ रही है -
''उम्र भर गालिब यही भूल करता रहा,
धूल चेहरे पर थी और आईना साफ करता रहा !''