दिल्ली मामले पर मोदी की आलोचना कर रहा है विदेशी मीडिया
यह हिंसा तब हुई जब अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत की यात्रा पर थे।
दिल्ली में 24-25 फ़रवरी, 2020 के बीच हुई सांप्रदायिक हिंसा को लेकर अंतरराष्ट्रीय मीडिया में नरेंद्र मोदी सरकार की ख़ूब आलोचना हो रही है।विदेशी मीडिया में कहा जा रहा है कि नरेंद्र मोदी सरकार इस हिंसा को रोकने में नाकाम रही, जिस हिंसा में कम से कम 39 लोगों की मौत हुई है और सैकड़ों घायल हैं।गुजरात मॉडल भी फ़रवरी में ही अंजाम दिया गया था और ये भी दंगा फ़रवरी में ही प्रायोजित किया गया है।
यह हिंसा विवादास्पद क़ानून नागरिकता संशोधन क़ानून (सीएए) के समर्थकों और विरोधियों के बीच हुई पत्थरबाज़ी से शुरू हुई इस क़ानून का समर्थन कर रहे लोगों में अधिकांश हिंदू हैं जबकि मुसलमान इस क़ानून का विरोध कर रहे हैं क्योंकि कथित तौर पर कहा जा रहा है कि यह क़ानून मुसलमानों के साथ धर्म के आधार पर भेदभाव करने वाला है। यह हिंसा तब हुई जब अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत की यात्रा पर थे।
न्यूयार्क टाइम्स ने लिखा है, "ट्रंप और मोदी का आलिंगन तब हो रहा था जब नागरिकता संबंधी क़ानून पर हो रहा विरोध प्रदर्शन सड़क पर दंगे में तब्दील हो गया था।"न्यूयार्क टाइम्स ने लिखा है, "सरकार ने जम्मू-कश्मीर के पूर्ण राज्य का दर्जा निरस्त कर दिया. वहां के मुस्लिम नेताओं को जेल में बंद कर दिया है. इसके बाद एक क़ानून लेकर आई जिसमें ग़ैर-मुस्लिम बाहरी लोगों को नागरिकता देने का प्रावधान किया गया।
वहीं सीएनएन ने कहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नागरिकता संबंधी क़ानून को आगे बढ़ाने से ये हिंसा प्रायोजित हुई है।सीएनएन ने अपनी रिपोर्ट में कहा, "डोनाल्ड ट्रंप के राजकीय दौर में उम्मीद की जा रही थी कि भारत वैश्विक स्तर पर अपने प्रभुत्व का प्रदर्शन करेगा. लेकिन इसकी जगह उसने महीनों से चले रहे धार्मिक तनाव की तस्वीर पेश की।
वाशिंगटन पोस्ट में दिल्ली की हिंसा पर छपी रिपोर्ट में कहा गया है, "नरेंद्र मोदी के राजनीतिक करियर में यह दूसरा मौक़ा है जब बड़े सांप्रदायिक हिंसा के दौरान वे शासनाध्यक्ष हैं।" अख़बार ने लिखा है कि गुजरात में 2002 की सांप्रदायिक हिंसा के दौरान मोदी राज्य के मुख्यमंत्री थे।
गार्डियन ने अपने एक संपादकीय में नरेंद्र मोदी की आलोचना करते हुए लिखा है, "उन्होंने शांति और भाईचारे की अपील काफ़ी देरी से की और यह उनकी कई दिनों की चुप्पी की भरपाई नहीं कर सकता ना ही विभाजन के आधार पर बने उनके करियर पर पर्दा डाल सकता है।
"इंडिपेंडेंट ने 27 फ़रवरी को अपनी रिपोर्ट में लिखा है, "नरेंद्र मोदी की आलोचना इसलिए भी हो रही है क्योंकि वे हिंसा करने वालों की आलोचना करने में भी नाकाम रहे हैं,इसमें कुछ तो राजमार्ग पर आगज़नी करते हुए मलबे के ढेर से गुज़रते हुए उनके नाम के नारे भी लगा रहे थे।