Eid ul-Adha 2024: देश में आज मनाई जा रही बकरीद, दिल्ली से लेकर मुंबई तक जश्न
ईद-उल-अजहा यानी बकरीद का त्योहार आज मनाया जा रहा है.
Eid ul-Adha 2024: ईद-उल-अजहा यानी बकरीद का त्योहार आज मनाया जा रहा है. दिल्ली की जामा मस्जिद पर अलग ही नजारा देखने को मिला है. लोगों ने नमाज अदा करने के बाद एक-दूसरे को बधाई दी है. दरअसल, ये दुनिया भर के मुसलमानों द्वारा मनाया जाने वाला दूसरा प्रमुख इस्लामी त्योहार है और यह पैगंबर इब्राहिम के अल्लाह के प्रति पूर्ण विश्वास से दिए गए गए बलिदान के रूप में मनाते हैं. बकरीद मुसलमानों की ओर से जुल अल-हिज्जा के महीने में मनाई जाती है, जो इस्लामी चंद्र कैलेंडर का बारहवां महीना है.
यूपी में सीएम के स्पष्ट निर्देश
बकरीद को लेकर उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा कड़ी सुरक्षा व्यवस्था देखने को मिल रही है. सीएम योगी ने निर्देश दिए हैं कि बकरीद पर कुर्बानी के लिए स्थान पहले ही तय होना चाहिए. इसके अलावा कहीं पर भी कुर्बानी नहीं होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि जो भी परंपरा रही है उसके अनुसार नमाज एक निर्धारित जगह पर ही हो और सड़कों पर नमाज नहीं होनी चाहिए.
राष्ट्रपति ने भी दी बधाई
नमाज अदा करने के बाद जानवर की कुर्बानी दी जाती है. इसे अल्लाह की राह में एक बड़ी इबादत समझा जाता है. ईद के इस मौके पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु समेत तमाम नेताओं ने बधाई दी है. राष्ट्रपति ने अपने संदेश में कहा है, 'ईद-उल-अजहा के अवसर पर, मैं सभी देशवासियों और विदेशों में रहने वाले भारतीयों, विशेष रूप से हमारे मुस्लिम भाइयों और बहनों को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ देती हूँ. यहपवित्र त्योहार त्याग और बलिदान का प्रतीक है। यह प्रेम, भाईचारे और सामाजिक सद्भाव का संदेश देता है। यह त्योहार हमें मानवता की निस्वार्थ सेवा करने के लिए प्रेरित करता है.'
कुर्बानी का महत्व
ईद अल-अज़हा इब्राहिम और इस्माइल का अल्लाह के लिए प्यार का उत्सव है और कुर्बानी का मतलब है कि कोई अल्लाह के लिए बलिदान देने को तैयार है. यह ईश्वर के लिए उस चीज़ की कुर्बानी है जिसे कोई सबसे ज़्यादा प्यार करता है. जिसके लिए दुनिया भर के मुसलमान बलिदान की भावना में एक बकरा या भेड़ की कुर्बानी देते हैं. ऐसा माना जाता है कि भले ही न तो मांस और न ही खून अल्लाह तक पहुंचता है, लेकिन उसके बंदों की भक्ति जरूर पहुंचती है. इस्लाम में सिर्फ हलाल के तरीके से कमाए हुए पैसों से ही कुर्बानी जायज मानी जाती है. कुर्बानी का गोश्त अकेले अपने परिवार के लिए नहीं रख सकता है. इसके तीन हिस्से किए जाते हैं. पहला हिस्सा गरीबों के लिए होता है. दूसरा हिस्सा दोस्त और रिश्तेदारों के लिए और तीसरा हिस्सा अपने घर के लिए होता है.