Himachal Political Crisis: हिमाचल प्रदेश में सियासी संकट,क्या कांग्रेस के पास सरकार बचाने का कोई विकल्प है? जानें
Himachal Political Crisis: हिमाचल प्रदेश में सियासी संकट खड़ा हो गया है। कांग्रेस के सुखविंदर सिंह सुक्खू की सरकार बचेगी या नहीं? इसे लेकर सत्ता के गलियारे में तरह-तरह की चर्चाएं चल रही हैं।
Himachal Political Crisis: हिमाचल प्रदेश में सियासी संकट खड़ा हो गया है। कांग्रेस के सुखविंदर सिंह सुक्खू की सरकार बचेगी या नहीं? इसे लेकर सत्ता के गलियारे में तरह-तरह की चर्चाएं चल रही हैं। हिमाचल प्रदेश में राज्यसभा सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी अभिषेक मनु सिंघवी की हार के बाद सीएम सुक्खू की कुर्सी खतरे में पड़ गई है, जिसके बाद सरकार विरोधी कांग्रेस गुट खुलकर सामने आ गया है। ऐसे में अब इस बात पर ज्यादा फोकस है कि इस राजनीतिक घटनाक्रम से निपटने के लिए क्या 'विकल्प' बचे हैं।
हिमाचल प्रदेश में पार्टी की स्थिति की बात करें तो विधानसभा में कांग्रेस के पास स्पष्ट बहुमत है। सदन में कांग्रेस के पास 40 विधायक हैं जबकि बीजेपी के पास सिर्फ 25 विधायक हैं। वहीं, विधानसभा में 3 निर्दलीय विधायक भी जीतकर सदन पहुंचे। इसका मतलब यह है कि 68 सदस्यीय हिमाचल प्रदेश विधानसभा में कांग्रेस के पास सरकार में बने रहने के लिए पूर्ण बहुमत है, लेकिन राज्यसभा चुनाव में 6 विधायकों की क्रॉस वोटिंग और विक्रमादित्य सिंह के मंत्री पद से इस्तीफे के बाद एक नई राजनीतिक समस्या उत्पन्न हो गई है। हालांकि विक्रमादित्य सिंह और अन्य नाराज विधायकों को मनाने के लिए आलाकमान ने कर्नाटक के डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार और हरियाणा के पूर्व सीएम भूपिंदर सिंह हुडा को पर्यवेक्षक बनाकर हिमाचल भेजा है।
वहीं, मीडिया रिपोर्ट्स की बात करें तो क्रॉस वोटिंग करने वाले 6 विधायकों ने दावा किया है कि 26 कांग्रेस विधायक चाहते हैं कि सुखविंदर सिंह सुक्खू मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दें। अब सरकार बचाने के लिए पार्टी आलाकमान के पास कौन सी 'जादू की छड़ी' है कि उसका इस्तेमाल नाराज विधायकों को मनाने में किया जा सके?
कांग्रेस सरकार को संकट से बचाने का एक बड़ा विकल्प यह है कि वह पहले पूर्व सीएम वीरभद्र सिंह के नाराज परिवार को मनाए। इसके साथ ही उसे अलग से जो भी प्रयास करना हो वह सब करना चाहिए। यह कोशिश भी वैसी ही होनी चाहिए जैसी बीजेपी ने राज्यसभा में सीट पाने के लिए की थी।
इतना ही नहीं, सरकार बचाने के लिए नाराज विधायकों को इस तरह संतुष्ट करने की कोशिश की जानी चाहिए कि वे बीजेपी के किसी भी 'ऑफर' पर भारी पड़ें। स्थिति को 'डैमेज कंट्रोल' करने के लिए कांग्रेस आलाकमान को कड़े कदम उठाने होंगे। ऐसा न हो कि रूठों को मनाने के चक्कर में सुक्खू खेमा ही 'नाराज़' हो जाए और महाराष्ट्र की एकनाथ शिंदे सरकार जैसी स्थिति पैदा हो जाए।
कांग्रेस सरकार को बचाने के लिए हमें 'क्रॉस वोटिंग' करने वाले विधायकों से 'टकराव' करना है या नहीं, इस पर गंभीरता से विचार करना होगा। सरकार बचाने का एक 'विकल्प' ये है कि इन विधायकों पर फैसला सोच-समझकर लिया जाए। अगर पार्टी इन पर कोई बड़ी कार्रवाई करती है तो सदन में विधायकों की संख्या 68 से बढ़कर 62 हो जाएगी और बहुमत का आंकड़ा 32 हो जाएगा। इस बार कांग्रेस पार्टी को सोच समझकर सोचना होगा कि जो विधायक पार्टी से नाखुश हैं। सरकार पाला न बदले और क्रॉस वोटिंग वाले विधायक पार्टी में ही रहें, इससे भी सरकार का सियासी संकट सुलझ सकता है।