3 राज्यों में पुरानी पेंशन सरकार की हार, तो क्या OPS का मुद्दा समाप्त?

If the old pension government defeats in 3 states, then is the issue of OPS over

Update: 2023-12-05 11:40 GMT

तीन राज्यों में बीजेपी की प्रचंड जीत ने इस मुद्दे पर पूरी तरह से पर्दा गिरा दिया है। वैसे तो यह मुद्दा तभी पीछे चला गया था जब इसे जोर-शोर से उठाने वाली कॉंग्रेस ने इस बार इसे ज़्यादा तूल नहीं दिया। यहाँ तक कि कर्नाटक की ही तरह तेलंगाना में इसका वादा करने के बावजूद ढोल नहीं पीटा गया। दरअसल, कॉंग्रेस को भी यह समझ में आ गया कि चाहे यह मुद्दा तात्कालिक राजनीतिक लाभ दे दे लेकिन इसके दीर्घकालिक दुष्परिणाम हैं।

इससे केंद्र सरकार को भी राहत मिलेगी जो OPS-NPS के बीच झूल रही थी। इसके लिए बनाई गई समिति अब शायद एक हाइब्रिड पेंशन व्यवस्था की सिफ़ारिश करे जिसमें कर्मचारियों के हितों का भी ध्यान रखा जा सकेगा। ऐसा करना आवश्यक भी है जिसमें कर्मचारियों को एक तय पेंशन मिलने की गारंटी दी जा सके। इसके लिए NPS में और सुधारों की आवश्यकता है।

कॉंग्रेस के कुछ नेता पोस्टल बैलेट के आँकड़े बता कर दावा कर रहे हैं कि इनमें मिली बढ़त के हिसाब से इन राज्यों में कॉंग्रेस की सरकार बननी चाहिए थी। वे भूल जाते हैं कि पोस्टल बैलेट अधिकांश ड्यूटी पर तैनात सरकारी कर्मचारी ही डालते हैं और उन पर OPS जैसे मुद्दों का व्यापक असर होता है। ऐसा इसलिए भी क्योंकि राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कॉंग्रेस सरकारों ने OPS पर जाने का ऐलान किया हुआ था और एमपी में इसका वादा था। लेकिन ईवीएम के वोटों में कॉंग्रेस का पिछड़ना यह बता रहा है कि इस मुद्दे में वैसी जान नहीं रही जैसी हिमाचल प्रदेश चुनाव में दिखी थी। 

मध्यप्रदेश और राजस्थान में कांग्रेस सरकार द्वारा बहाल की गई 'पुरानी पेंशन' व्यवस्था पर अब खतरा मंडराने लगा है। इन दोनों राज्यों में भाजपा ने प्रचंड जीत दर्ज कराई है। केंद्र सरकार ने 'पुरानी पेंशन' को लेकर पहले ही अपनी मंशा जाहिर कर दी है। देश में किसी भी सूरत में ओपीएस लागू नहीं किया जाएगा। खुद प्रधानमंत्री मोदी, इस विषय में अपनी राय स्पष्ट कर चुके हैं। एनपीएस में सुधार के लिए कमेटी का गठन किया गया है। कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद एनपीएस में बदलाव किया जा सकता है। नेशनल मूवमेंट फॉर ओल्ड पेंशन स्कीम (एनएमओपीएस) के अध्यक्ष विजय कुमार बंधु ने कहा है, ये संभावना नहीं, बल्कि तय समझें कि राजस्थान और छत्तीसगढ़ में अब 'पुरानी पेंशन' व्यवस्था खत्म हो सकती है। इस बाबत एनएमओपीएस की कार्यकारिणी की बैठक में विचार होगा। देश में 'पुरानी पेंशन' व्यवस्था बहाल होने तक कर्मचारियों का आंदोलन जारी रहेगा।

ओपीएस, एक बड़ा मुद्दा रहा है …

विजय कुमार बंधु ने बताया, राजस्थान सहित दूसरे प्रदेशों के चुनाव में ओपीएस का मुद्दा प्रभावी रहा है। अगर राजस्थान के पोस्टल बैलेट को देखें, तो उसमें 170 से अधिक सीटों पर कांग्रेस पार्टी आगे रही थी। इसी तरह मध्यप्रदेश के चुनावी नतीजों का विश्लेषण किया जा रहा है। ऐसा नहीं है कि ओपीएस ही चुनावी हार-जीत का प्रमुख कारण रहा है। यह कह सकते हैं कि हार-जीत के समीकरणों को तय करने के लिए जो अहम वजह होती हैं, उनमें से एक ओपीएस है। अगर राजस्थान और छत्तीसगढ़ में पुरानी पेंशन व्यवस्था को खत्म किया जाता है, तो उसके खिलाफ सरकारी कर्मचारी आवाज उठाएंगे। इस आंदोलन को देश के हर हिस्से में ले जाया जा रहा है। इस कड़ी में पटना में 10 दिसंबर को पुरानी पेंशन लागू कराने के लिए सरकारी कर्मियों की एक बड़ी रैली आयोजित होगी।

पीएम ने बताया था शॉर्ट कट पॉलिटिक्स

केंद्र सरकार की तरफ से कई बार ओपीएस को लेकर बयान सामने आए हैं। उनमें कहा जा रहा है कि जो राज्य पुरानी पेंशन लागू कर रहे हैं, वहां पर भविष्य में वित्तीय संकट उत्पन्न हो सकता है। राज्यों को विभिन्न मदों के अंतर्गत प्रदान की जाने वाली आर्थिक सहायता को बंद किया जा सकता है। पीएम मोदी, इस तरह की स्कीम को शॉर्ट कट पॉलिटिक्स का नाम दे चुके हैं। राजनीतिक दलों को ऐसी घोषणाओं से बचना चाहिए। ऐसी राजनीति, देश की अर्थव्यवस्था को खोखला कर देगी। दूसरी तरफ कांग्रेस पार्टी ने हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक चुनाव में ओपीएस का वादा किया था। इसी तरह कांग्रेस शासित राजस्थान और छत्तीसगढ़ में ओपीएस बहाल कर दी गई थी। कांग्रेस ने मध्यप्रदेश के चुनाव की गारंटियों में ओपीएस को शामिल किया था। राजस्थान के चुनावी घोषणापत्र में कांग्रेस ने कहा था कि पुरानी पेंशन व्यवस्था को कानूनी दर्जा दिया जाएगा। राहुल और प्रियंका ने अपनी चुनावी रैलियों में दूसरे मुद्दों के साथ ओपीएस पर भरपूर फोकस किया था। जब यह स्कीम राजस्थान में लागू की गई, तब राज्य वित्त आयोग का कहना था कि इसके लिए 41 हजार करोड़ रुपयों की जरुरत होगी।

पुरानी पेंशन को लेकर क्या कहा गया

राजस्थान कैडर के पूर्व आईएएस राजीव महर्षि, जो केंद्रीय वित्त सचिव और राजस्थान के मुख्य सचिव जैसे पदों पर काम कर चुके हैं, उन्होंने गत वर्ष ओपीएस को वित्तीय आपदा का नाम दिया था। उनका कहना था कि केंद्र और राज्य, दोनों के लिए यह स्कीम वित्तीय आपदा साबित होगी। राज्यों पर पहले से ही इतना कर्ज है कि उस स्थिति में ओपीएस, अर्थव्यवस्था को पूरी तरह बर्बाद कर सकती है। सीएजी गिरिश चंद्र मुर्मु ने पुरानी पेंशन स्कीम के चलते राज्यों की वित्तीय स्थिति पर पड़ने वाले प्रभावों के जोखिमों को लेकर संकेत दिए थे। उन्होंने कहा था, कुछ राज्यों में पुरानी पेंशन व्यवस्था को बहाल किए जाने से फिस्कल रिस्क बना रहेगा। आरबीआई और 15वें वित्त आयोग ने भी इस बाबत संज्ञान लिया है। योजना आयोग (अब नीति आयोग) के पूर्व उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलुवालिया ने ओपीएस को लेकर कहा था, ये सबसे बड़ी रेवड़ी है। एक तरफ तो राजस्व के घाटे को कम करने की बात की जाती है, लेकिन खर्चों को कैसे कम किया जाए, इसे पर कोई चर्चा नहीं होती है। प्रधानमंत्री मोदी ने इस संबंध में जिस रेवड़ी की बात कही है, वो सही है। पुरानी पेंशन सिस्टम, इसी तरह की सबसे बड़ी रेवड़ियों में से एक है।

अनिश्चितकालीन हड़ताल के पक्ष में हैं कर्मचारी

'पुरानी पेंशन बहाली' की लड़ाई अब अंतिम दौर की तरफ बढ़ रही है। अगर सरकार, कर्मचारियों की इस मांग को नहीं मानती है, तो उस स्थिति में अनिश्चितकालीन हड़ताल हो सकती है। कितने कर्मचारी, अनिश्चितकालीन हड़ताल के पक्ष में हैं, यह पता लगाने के लिए केंद्र सरकार में दो बड़े विभाग, रेलवे और रक्षा विभाग (सिविल) में स्ट्राइक बैलेट यानी मतदान कराया गया था। ओपीएस के लिए गठित नेशनल ज्वाइंट काउंसिल ऑफ एक्शन (एनजेसीए) की संचालन समिति के राष्ट्रीय संयोजक एवं स्टाफ साइड की राष्ट्रीय परिषद 'जेसीएम' के सचिव शिवगोपाल मिश्रा ने कहा, अब स्ट्राइक बैलेट का नतीजा आ गया है। रेलवे के 11 लाख कर्मियों में से 96 फीसदी कर्मचारी ओपीएस लागू न करने की स्थिति में अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जाने के लिए तैयार हैं। इसके अलावा रक्षा विभाग (सिविल) के चार लाख कर्मियों में से 97 प्रतिशत कर्मी, हड़ताल के पक्ष में हैं। यह मतदान पूरी तरह निष्पक्ष तरीके से हुआ है। कर्मियों ने बिना किसी दबाव के अपना मत डाला है। अब ज्वाइंट फोरम की बैठक में अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जाने के लिए निर्धारित तिथि की घोषणा की जाएगी।

18 साल बाद रिटायर हुए कर्मी को मिली इतनी पेंशन

शिव गोपाल मिश्रा ने बताया, एनपीएस में कर्मियों जो पेंशन मिल रही है, उतनी तो बुढ़ावा पेंशन ही है। कर्मियों ने कहा है कि देश में सरकारी कर्मियों, पेंशनरों, उनके परिवारों और रिश्तेदारों को मिलाकर वह संख्या दस करोड़ के पार पहुंच जाती है। अगर ओपीएस लागू नहीं होता है, तो लोकसभा चुनाव में भाजपा को राजनीतिक नुकसान झेलना होगा। एनपीएस स्कीम में शामिल कर्मी, 18 साल बाद रिटायर हो रहे हैं, उन्हें क्या मिला है। एक कर्मी को एनपीएस में 2417 रुपये मासिक पेंशन मिली है, दूसरे को 2506 रुपये और तीसरे कर्मी को 4,900 रुपये प्रतिमाह की पेंशन मिली है। अगर यही कर्मचारी पुरानी पेंशन व्यवस्था के दायरे में होते तो उन्हें प्रतिमाह क्रमश: 15250 रुपये, 17150 रुपये और 28450 रुपये मिलते। एनपीएस में कर्मियों द्वारा हर माह अपने वेतन का दस प्रतिशत शेयर डालने के बाद भी उन्हें रिटायरमेंट पर मामूली सी पेंशन मिलती है।

पीएफआरडीए में जमा है एनपीएस का पैसा

एनपीएस के तहत राज्य सरकारें, अपना और कर्मचारी की सैलरी का एक तय हिस्सा पेंशन फंडिंग रेगुलेटरी डेवलेपमेंट अथॉरिटी को देती हैं। इसे बाद में कर्मचारी को पेंशन के रूप में दिया जाता है। इसके तहत पेंशन फंडिंग एडजस्टमेंट के तहत राज्य सरकारें, केंद्र से अतिरिक्त कर्ज ले सकती हैं। यह अतिरिक्त कर्ज राज्य के सकल घरेलू उत्पाद का तीन फीसदी तक हो सकता है। पुरानी पेंशन योजना को दोबारा से लागू करने वाली राज्य सरकारों और केंद्र के बीच ठन गई है। जिन गैर-भाजपा शासित राज्यों ने अपने कर्मियों को पुरानी पेंशन के दायरे में लाने की घोषणा की है, उन्हें 'एनपीएस' में जमा कर्मियों का पैसा वापस नहीं मिलेगा। केंद्र ने साफ कर दिया है कि यह पैसा 'पेंशन फंड एंड रेगुलेटरी अथारिटी' (पीएफआरडीए) के पास जमा है। नई पेंशन योजना 'एनपीएस' के अंतर्गत केंद्रीय मद में जमा यह पैसा राज्यों को नहीं दिया जा सकता। वह पैसा केवल उन कर्मचारियों के पास जाएगा, जो इसका योगदान कर रहे हैं।

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