देशद्रोह का कानून होता तो क्यों बोलते मंत्री 'देश के गद्दारों को...गोली मारो...'
आतंकवाद का साथ देना, भारत सरकार के खिलाफ षडयंत्र करना, दुश्मन से हाथ मिलाना, अपने ही देश के खिलाफ जासूसी में शामिल होना, बगावत करना जैसी बातें देश के साथ द्रोह है।
अगर देश में देशद्रोह का क़ानून होता तो गद्दारों को सज़ा देने-दिलाने में मशक्कत करनी नहीं पड़ती। कभी देश के केंद्रीय मंत्री को यह बोलना नहीं पड़ता- "देश के गद्दारों को...गोली मारो...सालों को।" राजद्रोह के कानून से हम देशद्रोह के मामले नहीं निपटा सकते। राजद्रोह और देशद्रोह अलग-अलग हैं और इन्हें मिलाकर देखने-समझने की भूल को हमें रोकना भी होगा।
भारत में केंद्र ही नहीं प्रदेश की सरकारें भी विधि द्वारा स्थापित होती हैं। लिहाजा नवनीत राणा और उनके पति को महाराष्ट्र सरकार को अस्थिर करने के आरोपों में घेर लिया जाता है। हालांकि अदालत ने इन दोनों को 'राजद्रोह' से बरी कर दिया है। मगर, क्या राणा दंपती ने देश के साथ विद्रोह किया क्या? कतई नहीं। 'राजद्रोह' देशद्रोह नहीं हो सकता। फिर देशद्रोह क्या है?
आतंकवाद का साथ देना, भारत सरकार के खिलाफ षडयंत्र करना, दुश्मन से हाथ मिलाना, अपने ही देश के खिलाफ जासूसी में शामिल होना, बगावत करना जैसी बातें देश के साथ द्रोह है। ऐसी स्थितियों से निपटने के लिए स्वतंत्र भारत में देशद्रोह जैसी कोई धारा नहीं है। इन स्थितियों से निपटने के लिए हम यूएपीए, एएफएसपीए जैसे कानूनों का सहारा लेते हैं।
राजद्रोह नहीं हो सकता देशद्रोह का पर्याय
ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया का ताज पूरी दुनिया में सम्मान के साथ देखा जाता था जिनके राज में कभी सूर्यास्त नहीं हुआ करता था। फिर भी राजतंत्र खतरे में हुआ करता था। राजद्रोह की धाराओं का जन्म इसी ख़तरे को खत्म करने के लिए हुआ था। 1857 की क्रांति के बाद 1860 में इस कानून का मजमून लिखा गया जो 1870 से प्रभावी होकर लागू है।
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद तीसरी दुनिया का उदय हुआ। भारत जैसे राष्ट्र स्वतंत्र बने। अब स्वतंत्र देश में 'राजद्रोह' की क्या जरूरत होती? फिर भी राजद्रोह और इसकी धारा 124 ए का अस्तित्व बना रहा। न सिर्फ बना रहा बल्कि स्वतंत्र देश में 'देशद्रोह' का कोई कानून बना ही नहीं। आजादी के 75 साल बाद भी देश में 'देशद्रोह' का कोई कानून नहीं है।
क्या है राजद्रोह?
इंडियन पीनल कोड की धारा 124 ए कहता है कि अगर कोई व्यक्ति बोलकर, लिखकर, संकेतों में या किसी और तरह से घृणा, अवमानना या उत्तेजना फैलाता है या फिर विधि द्वारा स्थापित सरकार के प्रति असंतोष को भड़काने की कोशिश करता है तो वह राजद्रोह का अभियुक्त है। देश विरोधी संगठन के ख़िलाफ़ अनजाने में भी संबंध रखना या सहयोगी होना राजद्रोह है।
'राजद्रोह' का क़ानून सरकार और देश में फर्क नहीं करता। इसलिए यह कानून सत्ताधारी दल को बहुत उपयुक्त लगता आया है। आज मोदी सरकार ही देश है। कभी इंदिरा इज इंडिया कहा जाता था। 2011-12 में तमिलनाडु में जयललिता सरकार ने कुंडलकुलम न्यूक्लियर प्लांट का विरोध करने की सज़ा हजारों लोगों को राजद्रोह के मुकदमे में फंसाकर दी गयी थी। तब मनमोहन सरकार ने कहा था कि प्रदर्शनकारी विदेशी फंडिंग के लोभ में ऐसा कर रहे हैं। यही सिलसिला 2014 के बाद और तेज हो गया। मकसद अब और स्पष्ट हो चुके थे। राजनीतिक विरोधियों को सबक सिखाओ।
कानून के दुरुपयोग वाला 'अंधकार का दशक'
भले ही सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह की धारा 124 को इतिहास बना देने की पहल कर दी है लेकिन इस कारण देश ने जिस 'अंधकार का दशक' झेला है उसे कभी भुलाया नहीं जा सकेगा। 2010-2021 के बीच राजद्रोह के मामले में 13 हजार लोग जेलों में ठूंसे गये। आंकड़े बताते हैं कि यूपीए-2 सरकार में 2010-2014 के दौरान 279 राजद्रोह के मामले सामने आए जबकि 2014 से 2020 के के दौरान एनडीए की सरकार में 519 राजद्रोह के केस दर्ज किए गये।
आर्टिकल 14 की रिपोर्ट कहती है कि राजद्रोह के अभियुक्तों ने ट्रायल कोर्ट में केस रहने के दौरान औसतन 50 दिन बिताए। जबकि, हाईकोर्ट में जमानत मिलने तक उन्हें औसतन 200 दिनों तक जेल में रहना पड़ा है। सुनवाई के लिए स्वीकार किए गये मामलों से ज्यादा ऐसे मामले रहे जो ट्रायल कोर्ट में ही खारिज हो गये। हाईकोर्ट में राजद्रोह के हर 8 में से 7 मामलों में जमानत मिली।
केंद्रीय गृहमंत्रालय के आंकड़ों की बात करें तो 2014 से 2019 के बीच 326 मामले राजद्रोह के आए, 146 पर चार्जशीट दायर हुई और केवल 6 को सज़ा हुई। 2018 में 2 लोगों को राजद्रोह के मामले में सज़ा हुई थी जबकि 2014, 2016, 2017 और 2019 को एक-एक व्यक्ति को इस मामले में गुनहगार ठहराया गया था।
6 साल में राजद्रोह के 326 मामले
2019 93
2018 70
2017 51
2016 35
2015 30
2014 47
6 साल में कुल मामले 326
उल्लेखनीय यह भी है कि 2010 से 2021 के दौरान राजद्रोह मामलों में जिन 126 लोगों के ट्रायल पूरे हुए उनमें से 98 आरोपी सभी आरोपों से मुक्त हो गये। केवल 13 पर राजद्रोह का मुकदमा ठहरा और 13 को ही सज़ा सुनाई गयी। सज़ा देने की दर 0.1 फीसदी रही।
मोदी सरकार ने मनमोहन सरकार का 'राजद्रोह' ही आगे बढ़ाया
अगर यूपीए की सरकार ने वामपंथियों, आदिवासियों और राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ राजद्रोह का इस्तेमाल किया, तो एनडीए सरकार ने बुद्धिजीवियों, समाजसेवियों, आदिवासियों समेत राजनीतिक विरोधियो को निशाना बनाया। राजद्रोह का इस्तेमाल एनडीए सरकार में 196 फीसदी बढ़ गया।
सुप्रीम कोर्ट ने एडिटर्स गिल्ड की याचिका पर देश की दुखती रग पर हाथ रखा है और सुप्रीम कोर्ट का रुख देश को 'राजद्रोह' से मुक्त करना है। लेकिन, क्या केंद्र सरकार ईमानदारी से सुप्रीम कोर्ट के माध्यम से देश की जनता की भावना समझेगी? राजद्रोह और देशद्रोह में फर्क को कानून के जरिए महसूस करा पाएगी सरकार?
राज्य सरकारों से भी राजद्रोह और देशद्रोह के मामलों पर बात करनी चाहिए। संघीय ढांचे में इतने बड़े महत्व की चीजों पर प्रदेश की सरकारों की राय अहम है। देशद्रोह का कानून अत्यंत आवश्यक है। मगर, सबसे महत्वपूर्ण है कानूनों की समीक्षा और निगरानी। इसके बगैर कानून अपनी अहमियत खो देते हैं। सवाल यह है कि क्या देश में देशद्रोह के कानून पर विचार होगा?
लेखक : वरिष्ठ पत्रकार हैं.