सादा दिल लेकिन तीखी तराशी हुई ज़बान में निहायत गहरी और शौर अंगेज़ बातें कहने वाले शायर,सहाफी,मुफ़क़्क़ीर, नस्र निगार और दानिश्वर सय्यद सिब्ते असग़र नक़वी अल मुताख़ल्लिस बा जौन एलिया एक ऐसे शायर थे जिनकी शायरी ने न सिर्फ अपने ज़माने के अदब नवाज़ों के दिल जीत लिए बल्कि अपने बाद आने वाले अदीबों और शायरों के लिए ज़बान ओ बयान का नया लहजा पेश किया।
जौन एलिया अमरोहा के इल्मी घराने में 14 दिसंबर 1931 ई० में पैदा हुए। इसी घराने में मशहूर डायरेक्टर कमाल अमरोही भी पैदा हुए।
जौन एलिया के वालिद सय्यद शफ़ीक़ हसन एलिया और उनके तीनो भाई शायर थे।
1.सय्यद नफीस हसन वसीम
2.सय्यद अनीस हसन हिलाल (कमाल अमरोही के वालिद)
3.सय्यद हैदर हसन(रम्ज़,गदा)
जौन एलिया के दादा सय्यद नसीर हसन नसीर भी शायर थे।
जौन एलिया के परदादा सय्यद अमीर हसन अमीर उर्दू फ़ारसी दोनों में शेर कहते थे।
सय्यद अमीर हसन अमीर के दादा सय्यद सुल्तान अहमद मीर तक़ी मीर के शागिर्द अब्दुल रसूल निसार के शागिर्द थे।इन सब का असर जौन एलिया पर हमेशा रहा।
" जौन ही तो है जौन के दरपय
मीर को मीर ही से खतरा है"
8 साल की उम्र में पहला शेर कहा मगर पहला मजमुआ "शायद" 60 साल की उम्र में शाया हुआ।
जौन की इब्तिदाई तालीम अमरोहा के मदारिस में हुई जहां उन्होंने उर्दू,अरबी और फ़ारसी सीखी।दर्सी किताबों से कोई दिलचस्पी नहीं थी। बड़े होने के बाद उनको फ़लसफ़े और हैयत से दिलचस्पी पैदा हुई।उन्होंने उर्दू,फ़ारसी और फ़लसफ़े में एम० ए० की डिग्रीयां हासिल की।वह अँग्रेज़ी, पहलवी,इब्रानी,संस्कृत और फ़्रांसिसी ज़बानें भी जानते थे।
जौन अपने कम्यूनिस्ट ख़यालात की वजह से तक़सीम के सख़्त ख़िलाफ़ थे,लेकिन बाद में उन्होंने इसे एक समझोते के तौर पर क़ुबूल कर लिया।1957 को जौन पाकिस्तान चले गए और कराची को अपना घर बनाया।\
जौन एक अदबी मैगज़ीन के "इंशा" के एडिटर बन गए जहां जहां उनकी मुलाकात उर्दू की एक मशहूर जॉर्नलिस्ट अफ़साना निगार ज़ाहिदा हिना से हुई।जिन से बाद में उनकी शादी हुई।ज़ाहिदा हिना अपने आप में एक तरक़्की पसंद दानिश्वर हैं। और अब भी दो रिसालों जंग और एक्सप्रेस में मौजूदा और समाजी मौज़ूआत पर लिखती हैं।जौन से अब तक दो बेटियाँ और एक बेटा है।
जौन एलिया तवील अलालत के बाद 8 नवंबर 2002 को कराची में इंतेक़ाल कर गए।
✍️साहिल फ़ारूक़ी अमरोहवी