JNU Violence : जेएनयू हिंसा में दोषी जेल में होते तो क्या होता दोबारा हिंसक संघर्ष?
जेएनयू में 5 जनवरी 2020 में हुई हिंसा की जांच अभी पूरी नहीं हुई है, गिरफ्तारी नहीं हुई है लेकिन दो साल बाद एक और हिंसा सामने है।
जेएनयू में 5 जनवरी 2020 में हुई हिंसा की जांच अभी पूरी नहीं हुई है, गिरफ्तारी नहीं हुई है लेकिन दो साल बाद एक और हिंसा सामने है। हिंसा का स्वभाव एक जैसा है। हिंसक समूह वही हैं। वैचारिक आधार पर बंटे छात्र संघ- एक वामपंथी और दूसरा दक्षिणपंथी। ताजा घटना में भी वामपंथी छात्र-छात्राओं की कुटाई अधिक हुई है और पिछली घटना में भी ऐसा ही हुआ था।
सवाल यह है कि दो साल पहले घटी घटना में अगर आवश्यक कार्रवाई हुई होती तो क्या यह घटना दोहराई जाती?
सवाल यह भी है कि जानबूझकर क्या जेएनयू में हिंसा की घटना को दोहराया जा रहा है?
क्या जानबूझकर जेएनयू को अशांत और बदनाम किया जा रहा है?
2 साल पहले घटी घटना का क्या हुआ?
दो साल पहले जेएनयू हिंसा को लेकर डीएमके सांसद दयानिधि मारन ने 3 अगस्त 2021 को संसद में सवाल पूछा था जिसके जवाब में केंद्रीय गृहराज्य मंत्री नित्यानन्द राय ने बताया था,
''दिल्ली पुलिस ने सूचित किया है कि जनवरी 2020 में जेएनयू परिसर में हुई हिंसा के संबंध में पुलिस स्टेशन वसंत कुंज में दर्ज तीन मामलों की जांच करने के लिए क्राइम ब्रांच की एक विशेष जांच टीम (SIT) गठित की गई है। की गई जांच में अन्य बातों के साथ-साथ गवाहों की जांच, फुटेज का संग्रहण एवं विश्लेषण एवं पहचाने गये संदिग्धों की जांच शामिल है।"
एसआईटी की जांच से कोई खुलासा अब तक सामने नहीं आया है। उल्टे तथ्य दबाए गये हैं, ऐसा मालूम पड़ता है। उदाहरण के तौर पर दो साल पहले घटी घटना में हमलावर के तौर पर तस्वीरों में आ चुकी एबीवीपी की नेता कोमल शर्मा पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। पूछताछ की खानापूर्ति हुई। बाकी हमलावरों पर भी कार्रवाई का कोई सवाल नहीं उठता। कैम्पस में बाहर से घुस आए लोगों ने मारपीट की थी। कैम्पस के बाहर खड़ी पुलिस की मौजूदगी में वे आए भी और हिंसा करके चले भी गये जो साफ तौर पर विजुअल्स में नजर आया और वे विजुअल्स वायरल भी हुए।
यहां तक कि जेएनयू पर हमले को अंजाम देने के लिए जो वाट्सएप ग्रुप बना था उसमें शामिल नामों को भी पुलिस ने गिरफ्तार नहीं किया। बाद में वह वाट्सएप ग्रुप ही मिटा दिया गया। उल्टे वामपंथी छात्रों पर ही जेएनयू हिंसा के मामले में एफआईआर दर्ज हुई। इनमें उन छात्रों को भी घसीटा गया जो सीएए-एनआरसी के विरुद्ध आंदोलन में शरीक हुए थे।
जेएनयू कैम्पस में ताजा घटना को लेकर एसएफआई और एबीवीपी छात्र संगठनों की ओर से दो परस्पर विरोधी दावे हैं। एबीवीपी का कहना है कि कावेरी होस्टल में राम नवमी की पूजा का वामपंथी छात्र विरोध कर रहे थे। वहीं, वामपंथी छात्र कह रहे हैं कि नॉनवेज भोजन को लेकर मारपीट शुरू की गयी।
रामनवमी नहीं, नॉनवेज है हिंसा की वजह
वास्तव में अगर घटना का वक्त देखा जाए तो वह शाम 7.30 बजे का है और यह वक्त रामनवमी की पूजा का कतई नहीं हो सकता। यह वक्त इफ्तार के बाद का है। ऐसे में वामपंथी छात्रों का दावा ज्यादा सही लगता है कि नॉनवेज परोसे जाने का हिंसक विरोध हुआ और हमले शुरू हो गये। तनातनी पहले से जारी थी इसका भी पता उनके अलग-अलग बयानों से चलता है। वामपंथी छात्रों का दावा है कि 60 के करीब छात्र-छात्राएं घायल हुई हैं। वहीं एबीवीपी यह संख्या दर्जन भर के करीब बता रहे हैं। ये दावे भी बताते हैं कि हिंसा वास्तव में किसके खिलाफ हुई है।
जेएनयू हिंसा में यह प्रवृत्ति देखने को मिल रही है कि कैम्पस के बाहर से हमलावरों को बुलाया जाता है। घटना के समय पुलिस सूचनाओं को नजरअंदाज करती है यानी घटना होने देती है। कैम्पस से मदद मांगने वालों को मदद न मिल जाए, इसकी पूरी कोशिश इस रूप में की जाती है कि कैम्पस का मुख्य गेट बंद कर दिया जाता है। दो साल पहले भी याद होगा कि योगेंद्र यादव सरीखे नेता कैम्पस के बाहर अंदर आने के लिए प्रदर्शन करते रहे। उन्हें अंदर तो घुसने नहीं दिया गया, उल्टे उनके साथ धींगामुश्ती की गयी।
जेएनयू हिंसा की प्रवृत्ति पहले जैसी
जेएनयू के भीतर की घटना को लेकर टीवी चैनलों के माध्यम से वामपंथी छात्रों के खिलाफ जहर फैलाया जाना भी एक खास प्रवृत्ति है। घटना के बारे में सच बयां करने के बजाए जांच होने तक दावे-प्रति दावे दिखाने के क्रम में मुख्य धारा की मीडिया हमलावरों के दावों को प्रमुखता देते हैं। इस नैरेटिव को आगे बढ़ाते हैं कि सारी गलती जेएनयू कैम्पस के वामपंथी छात्रों की ही है। यहां तक कि बाहरी तत्वों के कैम्पस में प्रवेश के विषय पर भी रहस्यमय खामोशी बरती जाती है।
ऐसा लगता है जैसे जेएनयू के नाम से एक वैचारिक लड़ाई आगे बढ़ाई जा रही है। रामनवमी को लेकर देश के कई हिस्सों में भी झड़पें हुई हैं। जेएनयू को भी हिंसा का स्वाभाविक सेंटर के रूप में पेश किया जा रहा है ताकि यहां सक्रिय वामपंथी संगठनों को धर्म विरोधी और खास समुदाय परस्त बताया जा सके। जेएनयू प्रशासन और पुलिस की भूमिका संदिग्ध रहा है। राजनीतिक मकसद से घट रही इन घटनाओं पर उनकी चुप्पी और सक्रियता दोनों नज़र आती हैं जिसका साफ संदेश होता है कि अब आगे से ऐसा ही सबकुछ चलेगा।
केंद्र सरकार सदन में जेएनयू हिंसा के बारे में दिल्ली पुलिस के हवाले से बताती है कि इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं हुई है। ऐसे में अब ताजा घटना को लेकर यह उम्मीद कैसे की जाए कि दोषियों को गिरफ्तार कर लिया जाएगा और दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा? एक बार फिर जांच पर सत्ता की आंच न आएगी और दबाव के धुंधलके में जांच न दब जाएगी- इसकी उम्मीद करना व्यर्थ है।