डॉ कुमार विश्वास ने लिखा ये लंबा लेख और बोले, भारतमाता के नारे तो यह जानवर भी लगाता होगा?

हमारे विषपायी कवि दुष्यंत कुमार ने श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा थोपे आपातकाल के समय में कहा था...

Update: 2020-05-28 11:36 GMT

डॉ कुमार विश्वास 

ये दीन के ताजिर ये वतन बेचने वाले,

"इन्सान की लाशों के कफन बेचने वाले"

ये महलों में बैठे हुए कातिल ये लुटेरे,

कांटो के एवज रूहे-चमन बेचने वाले,

तू इनके लिये मौत का ऐलान बनेगा.

इंसान की औलाद है इंसान बनेगा..!

PPE Kit तक को नहीं छोड़ा?भारतमाता के नारे तो यह जानवर भी लगाता होगा?



बहुत से मीडिया हाउस व प्रकाशक मुझसे चाहते हैं कि मैं लगातार लिखूं किंतु लंबा और राजनैतिक लेखन मेरी प्राथमिकता नहीं है. आज सुबह की खबरो पर मन दुखा तो यह लिखा है ! हो सके तो पूरा पढ़िए.

हमारे विषपायी कवि दुष्यंत कुमार ने श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा थोपे आपातकाल के समय में कहा था...

"अब किसी को भी नज़र आती नहीं कोई दरार,

घर की हर दीवार पर चिपके हैं इतने इश्तहार !

मैं बहुत कुछ सोचता रहता हूँ पर कहता नहीं,

बोलना भी है मना सच बोलना तो दरकिनार !

इस सिरे से उस सिरे तक सब शरीके—जुर्म हैं,

आदमी या तो ज़मानत पर रिहा है या फ़रार...!"

जब भी मैं सरकार की किसी नीति का समर्थन करता हूँ, प्रधानमंत्री या किसी दक्षिणपंथी विचार की सकारण प्रशंसा कर देता हूँ, पीएम केयर कोष में सहायता राशि दे देता हूँ या भारतीयता के किसी भी प्रश्न पर केंद्र के साथ आ खड़ा होता हूँ तो अक्सर इस सरकार या प्रधानमंत्री से नाराज़ व असहमत लोग नीचे आकर गाली-गलौज-आलोचना में जुट जाते हैं कि "तुम बिक गए हो, तुम डरते हो, तुम्हें बीजेपी में जाना है, तुम संघी हो !" आदि-आदि ! ऐसे ही कभी देश की बात आने पर सरकार की या प्रधानमंत्री की आलोचना कर दो, कश्मीर में बुआ के भय से आतंकियों को बचाने की योजना पर तल्ख़ी प्रकट करो या जैसे मज़दूरों की व्यथा पर ग़ुस्से में नज़्म कह दो तो फिर भक्तगण आकर गरियाना प्रारंभ करते हैं कि "तुम चिड़ते हो, कांग्रेस में जाने का रास्ता बना रहे हो, कोई पूछ नहीं रहा तो छटपटा रहे हो, अभी देशद्रोहियों आपियों के साथ का असर गया नहीं !" आदि-आदि ! मैं शालीनता और सार्वजनिक गोपनीयता से बंधे होने के कारण दोनों ही पक्षों को यह तक नहीं बताता कि मैं कहाँ जाना चाहता हूँ या तुम्हारे शीर्षस्थ नेता मुझे क्या-क्या देकर बुलाना चाहते हैं, इन दोनों बातों का अंतर अपनी-अपनी पार्टियों का चश्मा लगाकर तुम लोग नहीं देख सकोगे ! ख़ैर अब ज़रा सच्चे ओर केवल भारतीय होकर यह सोचिए कि हर मौक़े पर "भारतमाता की जय" का नारा लगा-लगाकर अपने देशभक्त होने का सर्टिफिकेट तो इन दोनों सज्जनों ने भी खूब बटोरा होगा ? पर आज जब देश हर ओर से बेहद मुश्किल चुनौतियों से घिरा है ऐसे समय में उन चुनौतियों से लड रहे डाक्टरों के हथियारों में भी दलाली ? और अभी भी अंधभक्ति ? यानि आप देश के नहीं नेता/पार्टी के पहले हो ? .

किसी भी राष्ट्र का पतन तब शुरु होता है जब वहाँ की प्रजा को बार-बार दोहरा कर, चिल्लाकर, डराकर, बहकाकर यह समझा दिया जाता है कि सिंहासन पर बैठा हर "नंद" ही "मगध" है ! कांग्रेस के शासन में "इंदिरा अज इंडिया" कह-कह कर परिवारवादी राजनीति की विषबेल भारत में रौंपकर गए चमचों से लेकर आजतक व्यक्तियों के भक्तों-चिंटूओं ने यही सब कर-कर के देश को पीछे छोड़ा है और अपने-अपने लघु-देवताओं को आगे कर लिया है ! अब अंधभक्ति और चिंटूगीरी में हालत ये हो गई कि देश के ख़िलाफ़ बात है, समझ आने पर भी ये बुद्धि-बंधक कुतर्कों से अपने-अपने आकाओं और देवताओं को बचाने में जी-जान से जुटे रहते हैं ! "उन्होंने भी तो किया था ! तब क्यूँ चुप थे, अब क्यूँ बोले !" जैसी बहसों में मूल विषय को धकेलकर ये अपने-अपने मद्यप व अंहकारी "नंदों" को उनके राजमहल में सुरक्षित बिठाकर लोक को मज़दूरों की तरह सड़कों पर मरने छोड़ देते हैं ! इन्हीं सब कारणों से लोकतंत्र और देश धीरे-धीरे कमजोर व नष्ट होने लगता है ! मैं युगकवि हूँ, न सरकारी पुरस्कारों के डर से भयभीत हूँ न किसी भी छोटे-बडे हस्तिनापुर की रस्सी से बंधा हूँ ! अपने देश के ख़िलाफ़ हर बात के प्रति अपने पाठकों व नागरिकों को सचेत करना मेरी ज़िम्मेदारी है , बाक़ी समय, मेरी हिंदी माँ और ईश्वर न्याय करेंगे ही ! जय हिंद. आज तो इस खबर को पढ़कर साहिर याद आ गए.

ये दीन के ताजिर ये वतन बेचने वाले,

"इन्सान की लाशों के कफन बेचने वाले"

ये महलों में बैठे हुए कातिल ये लुटेरे,

कांटो के एवज रूहे-चमन बेचने वाले,

तू इनके लिये मौत का ऐलान बनेगा.

इंसान की औलाद है इंसान बनेगा...!

लेखक डॉ कुमार विश्वास जाने माने कवि और हिंदी के प्रो रहे है 

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