आयुष मंत्रालय ने मीडिया के एक वर्ग द्वारा आयुष-64 को लेकर की जा रही गलत रिपोर्टिंग की कड़ी निंदा की..

मंत्रालय ने कहा, 'यह तथ्यों की गलत व्याख्या कर रहा है, मामले की समझ की कमी है'

Update: 2021-08-26 11:58 GMT

पीआईबी, नई दिल्ली : एक छोटे से अध्ययन का हवाला देते हुए पिछले कुछ दिनों से आयुर्वेद और विशेष रूप से आयुष मंत्रालय के खिलाफ मीडिया के एक वर्ग द्वारा एक दुर्भावनापूर्ण रिपोर्टिंग की जा रही है। मीडिया की ओर से जिस रिसर्च रिपोर्ट का हवाला दिया जा रहा है, वह अभी शुरुआती चरण में है (अभी तक उसकी समीक्षा नहीं की गई है)। मीडिया के एक खास वर्ग द्वारा गलत रिपोर्टिंग आयुष-64 पर केंद्रित है, जो एक हर्बल फॉर्म्यूलैशन है। वहीं, कई बड़े अध्ययनों और एक बहु-केंद्रित नैदानिक परीक्षण के आधार पर पाया गया है कि आयुष-64 कोविड-19 के संक्रमण को रोकने और उपचार में प्रभावी रूप से काम करता है।

अखबार में प्रकाशित लेख में केवल एक रिसर्च पेपर का हवाला दिया गया है और यह स्वीकार किया गया है कि रिसर्च पेपर एक छोटा, शुरुआती अध्ययन है। मीडिया के एक खास वर्ग द्वारा आयुष मंत्रालय और टास्क फोर्स (कोविड -19 के लिए आयुष अंतर अनुशासनात्मक आरएंडडी टास्क फोर्स) के एक ईमानदार और ठोस प्रयास को बदनाम करने के लिए किया गया है जबकि किया गया रिसर्च एलोपैथी के साथ-साथ आयुर्वेद दोनों के कुशल शोधकर्ताओं ने किया है।

शुरुआती चरण का रिसर्च राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान, जयपुर और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, जोधपुर के बीच एक सहयोगी रिसर्च परियोजना द्वारा किया गया है। दोनों संस्थान रिसर्च के क्षेत्र में बड़ा नाम हैं और रोगी देखभाल के साथ-साथ अनुसंधान की एक लंबी और समृद्ध विरासत के साथ संबंधित क्षेत्रों में सीखने और अनुसंधान के शीर्ष केंद्र हैं। उनके अध्ययन के परिणाम पर गलत रिपोर्टिंग की हम निंदा करते हैं।

मंत्रालय डॉ. जयकरन चरण को भी उद्धृत करना चाहेगा जिन्हें मीडिया में गलत तरीके से कोट किया गया है। उन्होंने साफतौर पर इंकार करते हुए कहा है, ''मैंने कभी नहीं कहा कि आयुष 64 अप्रभावी या बेकार है। इसके विपरीत विचाराधीन दवा आयुष-64 ने प्राथमिक उपचार में प्रभावी परिणाम दिखाया है। रोगियों पर दवा के परीक्षण से प्राप्त परिणाम स्पष्ट रूप से बताता है कि आयुष-64 एक सुरिक्षत दवा है। 'नोडिफरेंस' का मतलब अप्रभावी या बेकार नहीं है, इसका मतलब समकक्ष है।"

दुर्भावना से ग्रसित समाचार लेख तथ्यों की गलत व्याख्या करने और गिलास को आधा खाली देखने का एक अनूठा उदाहरण पेश करते हैं। प्री-पब्लीकेशन में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि "5वें दिन आरटी-पीसीआर नकारात्मक विषयों की आवृत्ति के लिए दोनों समूहों की तुलना करने पर, यह पाया गया कि आयुष-64 समूह के 21 (70%) मरीज और नियंत्रण समूह के 16 (54%) मरीज 5वें दिन आरटी-पीसीआर टेस्ट में निगेटिव थे। हालांकि, निगेटिव आरटी-पीसीआर का वास्तविक आंकड़ा आयुष-64 समूह में अधिक था, लेकिन यह अंतर सांख्यिकीय रूप से महत्वपूर्ण नहीं था [पी = 0.28]। बुखार और श्वसन संबंधी लक्षणों और प्रयोगशाला मापदंडों के लिए दो समूहों के बीच कोई सांख्यिकीय महत्वपूर्ण अंतर नहीं था। मूल्यांकन अवधि के दौरान किसी भी समूह के रोगियों पर कोई गंभीर प्रतिकूल असर की सूचना नहीं मिली।

रिसर्च के परिणाम स्पष्ट रूप से दिखाते हैं कि आयुष-64 एक सुरक्षित दवा है, जो देखभाल के मानक के साथ सुरक्षा में समानता के साथ है। इसके अलावा, प्री-पब्लीकेशन एक बड़े अध्ययन का हवाला देता है (चोपड़ा ए, टिल्लू जी, चौधरी के, रेड्डी जी, श्रीवास्तव ए, लकड़ावाला एम इत्यादि शुरुआती और मध्यम कोविड-19 संक्रमण के इलाज में आयुष-64 प्रभावी दवा है: एक यादृच्छिक, नियंत्रित, बहुकेंद्रित नैदानिक परीक्षण medRxiv 2021.06.12.21258345। https://doi.org/10.1101/2021.06.12.21258345) जो पूर्व-प्रकाशन की कमियों का ध्यान रखता है।

कुछ मीडिया समूहों द्वारा प्रकाशित लेख निष्पक्ष रिपोर्टिंग के सिद्धांत के खिलाफ हैं। सीमित नमूना आकार के साथ एक प्रायोगिक अध्ययन के परिणाम को सामान्य बनाना गलत है। पत्रकार कहीं भी दावा नहीं करते हैं कि दवा अप्रभावी है।

अध्ययन के आधार पर प्रतिशत में बेहतर परिणाम दिखाता है। हालांकि छोटे सैंपलसाइज के कारण इसका पता नहीं लगाया जा सकता है और इसलिए सांख्यिकीय रूप से महत्वहीन है। बड़े सैंपलसाइज और मल्टी सेंट्रिक एक्सपोजर के अधिक मजबूत अध्ययनों ने मानक देखभाल में ऐड-ऑन के रूप में इसकी प्रभावकारिता स्थापित की है। अध्ययन के प्री-पब्लीकेशन में ही उल्लेख किया गया है कि एक बड़े नमूना आकार के अध्ययन की आवश्यकता है।

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