नोबेल शांति विजेता कैलाश सत्‍यार्थी ने एंटी ट्रैफिकिंग बिल को संसद के मानसून सत्र में पारित करने की राजनीतिक दलों और सांसदों से की मांग

2019 में नई लोकसभा बनने से इसका अस्तित्व खत्म हो गया और अब इसे नए सिरे से संसद में पेश कर लोकसभा और राज्यसभा में पारित कराना होगा। तभी यह बिल कानूनी रूप ले पाएगा।

Update: 2021-07-14 06:22 GMT

नोबेल शांति पुरस्‍कार से सम्‍मानित बाल अधिकार कार्यकर्ता कैलाश सत्‍यार्थी ने जबरिया बाल मजदूरी और ट्रैफिकिंग (दुर्व्‍यापार) के तेजी से बढ़ते मामलों पर रोक लगाने के लिए राजनीतिक दलों और सांसदों से संसद के आगामी मानसून सत्र में फौरन एंटी ट्रैफिकिंग बिल को पारित करने की मांग की है। बिल का पारित होना उन 12 लाख भारतीयों की शानदार जीत कही जाएगी, जिन्‍होंने साल 2017 में श्री सत्‍यार्थी के नेतृत्‍व में देशव्‍यापी 'भारत यात्रा' की थी और मजबूत एंटी ट्रैफिकिंग बिल बनाने की मांग की थी। गौरतलब है कि बच्चों के यौन शोषण और ट्रैफिकिंग के खिलाफ 35 दिनों तक चली यह ऐतिहासिक जन-जागरुकता यात्रा तब 22 राज्‍यों से गुजरते हुए 12,000 किलोमीटर की दूरी तय की थी। श्री सत्यार्थी ने तब ट्रैफिकिंग के खिलाफ एक मजबूत कानून बनाने की मांग की थी। श्री सत्‍यार्थी की इस मांग को अंजाम तक पहुंचाने के लिए देशभर के बाल अधिकार कार्यकर्ता, सिविल सोसायटी सदस्‍य और मुक्‍त बाल मजदूर नेता भी जन-जागरुकता अभियान चलाएंगे और अपने-अपने स्थानीय सांसदों से मिलेंगे और उनसे एंटी ट्रैफिकिंग बिल पास करने की अपील करेंगे।   

 कोरोना महामारी ने भारत में सबसे अधिक बच्चों को प्रभावित किया है और खासकर हाशिए के बच्चों की सुरक्षा के खतरों को बढ़ाया है। कोरोनाकाल में बाल श्रम और बाल दुर्व्‍यापार के मामलों में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है। कैलाश सत्‍यार्थी चिल्‍ड्रेन्स फाउंडेशन (केएससीएफ) के सहयोगी संगठन बचपन बचाओ आंदोलन (बीबीए) ने कोरोनाकाल में कानून प्रवर्तन एजेंसियों की मदद से 9000 से अधिक बच्‍चों को ट्रेनों, बसों और कारखानों से बाल दुर्व्‍यापार से मुक्‍त कराया है। वहीं पूरे देश से 265 ट्रैफिकर्स को भी गिरफ्तार किया गया है। केएससीएफ और बीबीए ने कोरोना महामारी के परिणामस्वरूप लॉकडाउन लागू किए जाने पर आशंका व्‍यक्‍त की थी कि बच्‍चे इस महामारी के सबसे ज्‍यादा शिकार होंगे और बाल श्रम और ट्रैफिकिंग बढ़ेगी, वह अब सच साबित हो रहा है।

 सरकारी आंकड़े बताते हैं कि हर दिन आठ बच्चे ट्रैफिकिंग के शिकार होते हैं। राष्‍ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्‍यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट के मुताबिक 2019 में ट्रैफिकिंग के शिकार बच्चों की संख्‍या बढ़कर 2,914 हो गई, जो 2018 में 2837 थी। इस तरह एक साल के दौरान पीडि़त बच्चों की संख्‍या में 2.8 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। बाल दुर्व्‍यापार की रिपोर्ट दर्ज करने वाले छह शीर्ष राज्‍य हैं-राजस्थान, दिल्ली, बिहार, ओडिशा, केरल और मध्य प्रदेश। देश में गुमशुदा बच्चों की तादाद भी लगातार बढ रही है। ज्यादातर गुमशुदा बच्चे ट्रैफिकिंग के ही शिकार होते हैं। एनसीआरबी के अनुसार साल 2019 में 73,138 बच्चों के गुम होने की रिपोर्ट दर्ज की गई।

 नोबेल शांति पुरस्कार से सम्‍मानित कैलाश सत्यार्थी बिल के महत्‍व को बताते हुए कहते हैं, ''एक मजबूत एंटी ट्रैफिकिंग कानून हमारे निर्वाचित नेताओं की नैतिक और संवैधानिक जिम्मेदारी है और यह राष्ट्र निर्माण और आर्थिक प्रगति की दिशा में एक आवश्यक कदम भी है। जब तक बच्चों को जानवरों से भी कम कीमत पर खरीदा और बेचा जाता रहेगा, कोई भी देश खुद को सभ्य नहीं कह सकता। कोविड-19 के कारण ट्रैफिकिंग में वृद्धि हुई है। खासकर महिलाओं और बच्‍चों की ट्रैफिकिंग में। हम इसे हल्के में नहीं ले सकते। ट्रैफिकिंग की रोकथाम के लिए कानून, समय पर जांच, ट्रैफिकर्स के लिए सजा और पीडि़तों की सुरक्षा और पुनर्वास अत्यावश्यक है। मैं सभी सांसदों से संसद के आगामी सत्र में एक मजबूत और व्यापक एंटी ट्रैफिकिंग कानून पारित करने का आह्वान करता हूं। हमारे बच्चे, उनकी गरिमा और आजादी अब और इंतजार नहीं कर सकते।''

 ट्रैफिकिंग इन पर्सन्‍स (प्रीवेंशन, केयर एंड रीहैबिलिटेशन) बिल 2021, ट्रैफिकिंग से संबंधित विभिन्न अपराधों को शामिल करते हुए और इसके  विभिन्न पहलुओं पर ध्यान देता है। यह कानून ट्रैफिकिंग जैसे संगठित अपराध की कमर तोड़ने के लिए राष्ट्रीय, राज्य और जिला स्तर पर तीन स्तरीय संस्थागत ढांचों के निर्माण की जरूरत पर बल देता है। यह अपराध की रोकथाम सुनिश्चित करने हेतु आर्थिक, आपराधिक और सामाजिक प्रतिरोध की क्षमता भी पैदा करता है। यह कानून ट्रैफिकिंग की रोकथाम और पीडि़तों के पुनर्वास और संरक्षण को सुनिश्चित करता है।

 मौजूदा बिल में ट्रैफिकिंग और उससे पीड़ित की परिभाषा का विस्तार से वर्णन किया गया है। इसमें जबरिया या बंधुआ मजदूरी, ऋण बंधन, बाल दासता, गुलामी, यौन शोषण, जैव-चिकित्सा अनुसंधान या परीक्षण के उद्देश्‍य से ट्रैफिकिंग के बढ़ते नए रूपों को भी शामिल किया गया है।  यह बिल प्लेसमेंट एजेंसियों, मसाज पार्लर, स्पा, ट्रैवल एजेंसियों, सर्कस आदि स्‍थानों पर गैर-कानूनी गतिविधियों पर सख्‍ती से रोक लगाने की वकालत करता है। बिल में संस्थागत रूप में यदि महिलाओं, बच्चों या ट्रांसजेंडरों की ट्रैफिकिंग की जाती है, तो ऐसे अपराधों के लिए कड़ी सजा का भी प्रावधान है। मौजूदा बिल तत्काल आर्थिक राहत और मुआवजा भी सुनिश्चित करता है। बिल के तहत नामित अदालत को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से पीड़ित का बयान दर्ज करने की भी जिम्‍मेदारी सौंपी गई है। विशेष रूप से सीमा पार और अंतरराज्यीय अपराधों के मामले में जहां पीड़ित को किसी अन्य राज्य या देश में वापस लाया गया है। ऐसा पीडि़त की सुरक्षा और गोपनीयता को ध्‍यान में रखते हुए किया गया है।

 साल 2018 में तत्कालीन केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री श्रीमती मेनका गांधी ने ट्रैफिकिंग ऑफ पर्सन्‍स (प्रीवेंशन, प्रोटेक्‍शन एंड रीहैबिलिटेशन) बिल 2018 को लोकसभा में पेश किया था। लोकसभा में यह बिल पारित हो गया था, लेकिन राज्यसभा में पेश न हो पाने से यह पारित नहीं हो पाया था। 2019 में नई लोकसभा बनने से इसका अस्तित्व खत्म हो गया और अब इसे नए सिरे से संसद में पेश कर लोकसभा और राज्यसभा में पारित कराना होगा। तभी यह बिल कानूनी रूप ले पाएगा। 

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