नोबेल शांति पुरस्‍कार विजेता कैलाश सत्‍यार्थी ने किया ''बोंडेज: ह्यूमन राइट्स एंड डेवेलपमेंट'' पुस्‍तक का लोकार्पण

Update: 2020-10-15 10:50 GMT

कोविड-19 महामारी के कारण हाल ही में हुए लॉकडाउन ने चार करोड़ से अधिक प्रवासी मजदूरों के अनकहे दुखों को उजागर कर दिया। हजारों हताश, निराश और चिंति‍त पुरुष-महिलाओं और बच्‍चों को भूख-भुखमरी और बेबसी से बचने के लिए सड़कों पर सैकड़ों किलोमीटर की पैदल यात्रा करते हुए देखा गया। लॉकडाउन के कारण बेरोजगार हुए इन प्रवासी मजदूरों पर दुखों का पहाड़ टूट गया। इलेक्‍ट्रॉनिक मीडिया द्वारा दिखाई जाती रहीं इन मजदूरों की हृदयविदारक तस्वीरें हर किसी के लिए दर्द और पीड़ा का सबब बनी रहीं। आज जब प्रवासी मजदूरों की दुर्दशा पूरे देश की यादों में ताजा है, ऐसे अवसर पर सत्यार्थी ग्लोबल पॉलिसी इंस्टीट्यूट फॉर चिल्‍ड्रेन (एसजीपीआईसी) अपने पहले प्रकाशन के साथ उपस्थित हुआ है और उसने भारतीय प्रशासनिक सेवा के सेवानिवृत्‍त सदस्‍य डॉ. लक्ष्‍मीधर मिश्र द्वारा लिखित ''बोंडेज: ह्यूमन राइट्स एंड डेवेलपमेंट'' नामक एक उल्‍लेखनीय पुस्‍तक को प्रकाशित किया है।

पुस्तक का लोकार्पण नोबेल शांति पुरस्‍कार से सम्‍मानित बाल अधिकार कार्यकर्ता कैलाश सत्‍यार्थी और राष्‍ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सदस्‍य माननीय न्‍यायमूर्ति श्री पीसी पंत द्वारा डिजिटल माध्‍यम के जरिए किया किया। पुस्तक लोकार्पण समारोह का मुख्य आकर्षण वह पैनल चर्चा रही, जिसमें कोविड-19 की घटनाओं का बाल बंधुआ मजदूरी पर पड़े प्रभाव पर विस्‍तार से बातचीत की गई। पुस्तक को "वितस्ता प्रकाशन" ने प्रकाशित किया है।

इस अवसर पर न्यायमूर्ति पंत ने कहा, "मुझे पुस्तक के पन्नों से गुजरने पर याद आया कि डॉ अम्‍बेडकर देश के पहले श्रम मंत्री थे, जिनका विचार था कि अकेले कानून लागू करने भर से बंधुआ मजदूरी प्रणाली का उन्मूलन नहीं किया जा सकता। मैं यहां याद दिलाना चाहूंगा कि 1975-76 के दौरान बीस सूत्रीय कार्यक्रम के तहत न केवल बंधुआ मजदूरी के उन्मूलन पर जोर दिया गया था, बल्कि जनसंख्या नियंत्रण पर भी बल दिया गया था। लेकिन, जब तक हम उस पर सार्थक काम नहीं करेंगे, तब तक बंधुआ मजदूरी का तंत्र किसी न किसी रूप में बना रहेगा। बढ़ती जनसंख्या गरीबी उन्मूलन के लिए किए गए सभी प्रयासों को निष्प्रभावी कर देती है जोकि बंधुआ मजदूरी, बालश्रम या अन्य प्रकार के जबरिया श्रम और दुर्व्‍यापार का मूल कारण है।''

एक आईएएस के रूप में डॉ. लक्ष्मीधर मिश्र ने भारत के लोगों की अविस्‍मरणीय सेवा की है। वे एक संवेदनशील मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं और बंधुआ मजदूरी, बाल बंधुआ मजदूरी, मानसिक स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र में उनका योगदान उल्‍लेखनीय रहा है। डॉ. मिश्र अपने लेखन के माध्यम से लगातार आधुनिक दासता, संस्थागत अज्ञानता और निरंकुश व्यवस्था की उन बदसूरत वास्तविकताओं को उजागर करते रहे हैं, जिसने गरीबों को जीवन और गरिमा के बुनियादी अधिकारों से वंचित कर दिया है। पुस्तक हाशिए के परिवारों और बच्चों के अधिकारों को सुरक्षित रखने में राज्य की विफलता को भी उजागर करती है। पुस्‍तक राज्य और कानून प्रवर्तन अधिकारियों के लिए एक स्पष्ट आह्वान है कि वे कानून को उत्‍साह और लगन के साथ लागू करें, ताकि लाखों लोगों के साथ बच्‍चों के दुखों का भी अंत हो सके। उम्‍मीद है कि डॉ. मिश्र द्वारा लिखित यह पुस्‍तक हमारे समाज से बंधुआ मजदूरी के उन्मूलन में राज्य और गैर-राज्य हितधारकों के बीच बहस, चर्चा और आत्‍मविश्‍लेषण को प्रोत्‍साहित करेगी। यह पुस्तक इस मंथन के लिए भी प्रेरित करेगी कि जहां हम एक समाज के रूप में इस बुराई को दूर करने में असफल रहे हैं, वहीं दूसरी ओर हम देश की गरीबी को भी दूर करने में विफल रहे हैं।

पुस्‍तक के लेखक डॉ. मिश्र ने इस अवसर पर अपने विचार व्‍यक्‍त करते हुए कहा, "मानवाधिकार घोषणा के पांच दशक बाद हमारे संविधान ने मानव को बंधुआ बनाने को एक गंभीर अपराध के रूप में मान्‍यता दी है। लेकिन, बंधुआ मजदूरी के मामलों में अभी भी कोई गिरावट नहीं आई है, जिससे हाशिए के परिवारों की कई पीढ़ियों को व्‍यवस्‍था और राज्य की विफलता का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। इस पहलकदमी के लिए मैं कैलाश सत्‍यार्थी चिल्‍ड्रेन्‍स फाउंडेशन और वितस्‍ता प्रकाशन का आभार प्रकट करता हूं।"

इस अवसर पर नोबेल शांति पुरस्‍कार से सम्‍मानित बाल अधिकार कार्यकर्ता श्री कैलाश सत्‍यार्थी ने अपने विचार व्‍यक्‍त करते हुए कहा, ''डॉ. लक्ष्मीधर मिश्र की नैतिक प्रतिबद्धता, बुद्धिमत्ता और करुणा दशकों से बच्चों और बंधुआ मजदूरों के लिए प्रेरणादायक है। जब हमने 1980 में बाल दासता के खिलाफ संघर्ष शुरू किया था, तब न केवल हम बार-बार उन लोगों से भिड़ते थे, जो बच्चों को काम पर रखकर उनका शोषण करते थे, बल्कि बालश्रम को आदर्श मानने वाली मानसिकता के खिलाफ भी हम संघर्ष करते थे। इस महामारी ने हमारे समाज में हाशिए पर रहने वाले लोगों के सामने पेश होने वाली गहरी असमानताओं को भी उजागर किया है। ये असमानताएं दासता के बंधन को और मजबूत करती हैं। डॉ. मिश्र द्वारा लिखी गई यह पुस्तक उनके दीर्घकालीन कार्यों का एक मूल्यवान जखीरा है जो दुनिया को दासता को समाप्त करने के लिए प्रेरित करती है।''

सत्यार्थी ग्लोबल पॉलिसी इंस्टीट्यूट फॉर चिल्‍ड्रेन को एक ऐसे संस्‍थान के रूप में विकसित करने की परिकल्‍पना की गई है, जहां सभी हितधारक सरकार और गैर-सरकारी एजेंसियां, कानून प्रवर्तन एजेंसियां, छात्र और पेशेवर लोग दुनियाभर में बाल अधिकारों के संरक्षण, संवर्धन और शोध में संलग्न होंगे। वे सभी बच्चों से संबंधित मुद्दों पर विचार-विमर्श करेंगे, सीखेंगे और कुछ नया करेंगे। संस्थान उत्कृष्टता के चार जीवंत और साथ-साथ काम करने वाले केंद्रों-सेंटर फॉर पॉलिसी एंड रिसर्च, सेंटर फॉर इनोवेशन एंड इनक्यूबेशन, सेंटर फॉर डायलॉग, लर्निंग एंड कैपेसिटी बिल्डिंग और सेंटर फॉर एकेडमिक्स के माध्यम से अपने उद्देश्यों को पूरा करने को तत्‍पर रहेगा।

Tags:    

Similar News