आपको याद होगा कि नोटबन्दी ओर GST ओर बढ़ते NPA के बाद सरकार की आर्थिक स्थिति डावांडोल होने को आई थी उसे ज्यादा पैसे की जरूरत थी 2017-18 में सरकार ने 72,500 करोड़ रुपये के विनिवेश लक्ष्य के मुकाबले 11 जनवरी तक 54,337 करोड़ रुपये का विनिवेश लक्ष्य ही हासिल किया था वित्त वर्ष खत्म होने में सिर्फ 50 दिन बचे थे
लेकिन उस वक्त मोदी सरकार ने ग़जब की बाजीगरी दिखाई जिसे देख कर बड़े बड़े अर्थशास्त्रियों ने भी अपना सर पीट लिया उसने अपनी ही कंपनी की हिस्सेदारी अपनी ही किसी दूसरी कंपनी के हाथों बेचने की योजना बना ली, मोदी सरकार ने डूबती हुई हिंदुस्तान पेट्रोलियम काॅरपोरेशन लिमिटेड यानी एचपीसीएल में अपनी कुल 51 फीसदी हिस्सेदारी ओएनजीसी को बेच दी, ........दूसरी तरह से कहा जाए तो मोदी सरकार ने खुलेआम मनमानी करते हुए ओएनजीसी की बैलेंस शीट से कैश निकालकर अपने खजाने में डाल दिया था, इस सौदे "वर्टिकल मर्जर" कहा गया
आज इस सौदे पर सवाल उठाते हुए कैग ने कहा है कि "ऐसे विनिवेशों से केवल संसाधनों का स्थानांतरण हुआ जो कि पहले से ही सार्वजनिक क्षेत्र में मौजूद थे। इससे विनिवेशित पीएसयू में सार्वजनिक क्षेत्र/सरकार की हिस्सेदारी में कोई बदलाव नहीं हुआ।"नियंत्रक और महालेखापरीक्षक (CAG) ने केंद्र सरकार के 'विनिवेश' कार्यक्रम पर सवाल उठाते हुए सार्वजनिक क्षेत्र की एक कंपनी दूसरे को 'रणनीतिक रूप से बेचे' जाने की कवायद को सीएजी ने बेकार करार दिया है
इस वर्गीकरण को 'विविध पूंजी प्राप्तियों' की तरह बताने को भी सीएजी ने 'गलत' करार दिया है। सीएजी का कहना है कि SUUTI सरकारी संस्था नहीं है और शेयरों की बिक्री की प्राप्तियां गैर-कर राजस्व की तरह ही ली जानी चाहिए, न कि पूंजी प्राप्तियों की तरह। सीएजी ने कहा, 'गलत वर्गीकरण की वजह से, इस साल के लिए सरकार की पूंजी प्राप्तियां ज्यादा रहीं और राजस्व प्राप्तियां कम।'
साफ़ है कि एक एक कर के मोदी सरकार की पोल पट्टी खुल रही है लेकिन अफ़सोस अब भी अंधभक्तो की आँखे नहीं खुल रही