हमारा संविधान हमारी गीता है, बाइबल है, इसका सम्मान करना हम सबका कर्तव्य है : उपराष्ट्रपति

उपराष्ट्रपति ने कहा कि हमारे संविधान की उद्देशिका में न्याय, स्वतंत्रता, समता के साथ साथ राष्ट्र की एकता और अखंडता को पर विशेष बल दिया गया है। उन्होंने कहा कि इन महान आदर्शों को सिद्ध करने के लिए नागरिकों में सामाजिक संस्कार होना जरूरी है

Update: 2021-09-28 13:58 GMT

पीआईबी, नई दिल्ली :उपराष्ट्रपति  एम वेंकैया नायडु ने आज कहा कि हमारा संविधान हमारी गीता है, बाइबल है और इसका सम्मान करना हम सबका पवित्र कर्तव्य है। संविधान और संस्कृति को परस्पर पूरक बताते हुए उन्होंने कहा कि संविधान में निहित मूल्य समाज के संस्कारों से ही बल पाते हैं।

उपराष्ट्रपति आज जोधपुर में आयोजित एक अवसर पर राजस्थान के राज्यपाल  कलराज मिश्र के लेखों के संकलन "संविधान, संस्कृति और राष्ट्र" का लोकार्पण कर रहे थे। इस पुस्तक में  कलराज मिश्र द्वारा संविधान, संस्कृति, राष्ट्र, शिक्षा, लघु उद्यम, इनोवेशन, आत्म-निर्भर भारत तथा राजस्थान का इतिहास एवं संस्कृति जैसे समसामयिक विषयों पर, देश के विभिन्न पत्रों में लिखे गए लेखों का संकलन है।

इस अवसर पर उपराष्ट्रपति ने कहा कि हमारे संविधान की उद्देशिका में न्याय, स्वतंत्रता, समता के साथ साथ राष्ट्र की एकता और अखंडता को पर विशेष बल दिया गया है। उन्होंने कहा कि इन महान आदर्शों को सिद्ध करने के लिए नागरिकों में सामाजिक संस्कार होना जरूरी है।

संविधान की उद्देशिका में स्थापित उद्देश्यों पर अपने विचार रखते हुए उन्होंने कहा कि न्याय के लिए नागरिकों में संवेदना होना आवश्यक है और बिना अनुशासन के स्वतंत्रता अराजकता बन जायेगी। उन्होंने आगे कहा कि समता के लिए व्यक्ति में करुणा और सहानुभूति होना जरूरी है। साथ ही यह भी जोड़ा कि देश की एकता और अखंडता को मजबूत करने के लिए समाज में बंधुत्व और भाईचारा होना आवश्यक है।

उपराष्ट्रपति ने बल देकर कहा कि इन सामाजिक संस्कारों से ही संवैधानिक आदर्श सिद्ध किए जा सकते हैं और ये संस्कार परिवार में, शिक्षण संस्थाओं में, सामाजिक, राजनैतिक संगठनों में पड़ते हैं। 

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