पी चिदंबरम का साप्ताहिक कॉलम, दूसरी नजर : तीसरी पूर्णबंदी के बाद भी क्या और?

मुख्य शब्द थे- ‘संक्रमण शृंखला को तोड़ना’ और ‘खत्म हुआ’। ज्यादातर लोगों ने उनके शब्दों को बिल्कुल सही मानते हुए विश्वास किया कि संक्रमण शृंखला इक्कीस दिन में टूट जाएगी, विषाणु के खिलाफ जंग जीत जाएंगे।

Update: 2020-05-10 06:09 GMT

जब आप इस लेख को पढ़ रहे होंगे, तो हम लोग पूर्णबंदी के सैंतालीसवें दिन में होंगे जो आगे सात दिन और रहेगी। प्रधानमंत्री ने 24 मार्च, 2020 को राष्ट्रीय टेलीविजन पर जब पूर्णबंदी-1 की घोषणा की थी (तब हमें नहीं मालूम था कि यह पहली पूर्णबंदी होगी) तब उन्होंने पूर्णबंदी के उद्देश्यों को सामने रखा था। उन्होंने कहा था- 'स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार कोरोना विषाणु के संक्रमण का चक्र तोड़ने के लिए कम से कम इक्कीस दिन की अवधि सबसे ज्यादा नाजुक है।' अगले दिन अपने निर्वाचन क्षेत्र में एक संबोधन में उन्होंने कहा- 'महाभारत का युद्ध अठारह दिन तक चला था। कोरोना विषाणु के खिलाफ इस युद्ध में इक्कीस दिन लगेंगे।'

मुख्य शब्द थे- 'संक्रमण शृंखला को तोड़ना' और 'खत्म हुआ'। ज्यादातर लोगों ने उनके शब्दों को बिल्कुल सही मानते हुए विश्वास किया कि संक्रमण शृंखला इक्कीस दिन में टूट जाएगी, विषाणु के खिलाफ जंग जीत जाएंगे।

असली मकसद और गलतियां

चिकित्सा और स्वास्थ्य विशेषज्ञों को पता चल गया था कि संक्रमण की शृंखला इक्कीस दिन में नहीं टूटेगी। इसलिए उन्होंने पूर्णबंदी को बढ़ाने के लिए प्रधानमंत्री से अनुरोध किया। चौदह अप्रैल को एक बार फिर राष्ट्रीय टेलीविजन पर प्रधानमंत्री ने पूर्णबंदी-2 का एलान किया और कहा- 'पिछले कुछ दिनों के अनुभवों से यह एकदम स्पष्ट है कि हमने सही रास्ता चुना है… अगर हमने धैर्य बनाए रखा और नियमों का पालन करते रहे, तो हम कोरोना जैसी वैश्विक महामारी को हराने में कामयाब हो जाएंगे।'

इसमें मुख्य शब्द थे- 'हमने सही रास्ता चुना है', 'धैर्य रखें' और 'कोरोना जैसी वैश्विक महामारी तक को भी हराएं'।

चिकित्सा और स्वास्थ्य विशेषज्ञ संशय में थे। उन्हें पता था कि असल मकसद जागरूकता फैलाना और तेजी से चिकित्सा और स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे को तैयार करना था। दोहराव के जोखिम पर जैसा कि मैं कहता रहा हूं कि पूर्णबंदी कोई इलाज नहीं थी, यह सिर्फ एक विराम था, जिसने हमें चरम पर संक्रमित लोगों के इलाज के लिए तैयार रहने का पर्याप्त वक्त दिया।

सरकार ने कुछ भारी गलतियां कर दीं, भले इनमें कुछ इरादतन हों। जब पूर्णबंदी-1 लागू की जानी थी, तो इसने बमुश्किल चार घंटे की मोहलत पर ही इसे अचानक लागू कर दिया, जो एक गलती है। पच्चीस मार्च को वित्तीय कार्रवाई योजना के तहत गरीबों के बैंक खातों में पैसा पहुंचाने में नाकाम रहना भारी गलती थी। प्रवासी मजदूरों को उनके घरों तक पहुंचाने के लिए परिवहन के साधनों का बंदोबस्त नहीं कर पाना, जबकि तब विणाणु के फैलने की रफ्तार बहुत ही कम थी, सबसे बड़ी गलती थी।

बढ़ती संख्या

निश्चित तारीखों पर संक्रमित लोगों का सरकारी आंकड़ा इस प्रकार था :

24 मार्च 536 25 मार्च को पूर्णबंदी शुरू हुई

14 अप्रैल 10,815 पूर्णबंदी खत्म हुई, जारी रखी गई

3 मई 40,263 पूर्णबंदी खत्म हुई, जारी रखी गई

8 मई 56,342 सुबह आठ बजे

चिकित्सा और स्वास्थ्य विशेषज्ञों को संक्रमितों की संख्या बढ़ने का संकेत पहले से था। ध्यान दें कि पूर्णबंदी-3 का एलान प्रधानमंत्री द्वारा नहीं, गृह सचिव की दस्तखत वाली अधिसूचना से हुआ। इसमें किसी मकसद का जिक्र नहीं था, न ही इससे बाहर निकलने के बारे में कोई योजना थी। यह असाधारण और परेशान करने वाली बात थी।

विशेषज्ञों ने चेतवानी दी है कि जब तक इंसान इसका टीका नहीं बना लेता, संक्रमितों की संख्या बढ़ती रहेगी या, जैसा कि कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि भारतीयों ने अपने भीतर पर्याप्त प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर ली है। पूर्णबंदी-1, 2 या 3 के बाद भी संख्या बढ़ती ही जा रही है। पूर्णबंदी-3 के पहले पांच दिनों यानी चार से आठ मई के बीच औसतन रोजाना 3215 लोग संक्रमित जुड़ते जा रहे हैं।

अगर दूसरे देशों से तुलना करें तो एक सौ तीस करोड़ लोगों के अनुपात में संक्रमित लोगों की संख्या अब भी काफी कम है, क्योंकि जांच की दर काफी कम है। इसके अलावा, संक्रमित लोगों में मृत्युदर सिर्फ 3.36 फीसद के करीब है।

दो विकल्प

जब पूर्णबंदी-3 खत्म होने को होगी, तो प्रधानमंत्री के सामने दो रास्ते होंगे-

* जब 17 मई को पूर्णबंदी खत्म हो तो पूर्णबंदी-4 की घोषणा करें, या

* पूर्णबंदी खत्म करें, सभी आर्थिक और व्यावसायिक गतिविधियों को फिर से शुरू करें, माल और सेवाओं की आपूर्ति शृंखला को फिर से खड़ा करें, सड़क, रेल और हवाई परिवहन सेवा को अनुमति दें, और संक्रमित लोगों के इलाज के लिए तैयार रहें। कुछ निश्चित बुरी तरह से प्रभावित क्षेत्रों जैसे धारावी में जांच में संक्रमित पाए जाने वाले लोगों को एकांतवास या अस्पताल में पहुंचाने तक प्रतिबंधों को जारी रखना जरूरी हो सकता है।

इनमें से चुनाव करना मुश्किल है। पहला विकल्प तर्कसंगत हो सकता है, अगर नए संक्रमितों की संख्या का वक्र सपाट रहता है या गिरावट के संकेत देता है, लेकिन अभी इसके प्रमाण हैं नहीं। एक और पूर्णबंदी पहले ही से लड़खड़ा रही अर्थव्यवस्था को पूरी तरह से ध्वस्त कर डालेगी। देश को लाल, नारंगी और हरे रंग के तीन क्षेत्रों के आधार पर बांटने और सीमित छूटों के बावजूद आर्थिकी को फिर से गति देने में कोई मदद नहीं मिली है।

पिछले सैंतालीस दिनों में और ज्यादा कुटीर, लघु और मझोले उद्योग संकट में चले गए हैं, कई लाख लोग और गरीबी की तरफ धकेल दिए गए हैं और कई लाख मध्यवर्गीय परिवार कर्ज के बोझ में दब गए हैं। अगर पूर्णबंदी खत्म नहीं की गई, तो आज की तुलना में कहीं बड़े पैमाने पर लोग इसका उल्लंघन कर सकते हैं।

दूसरा विकल्प निसंदेह अर्थव्यवस्था को फायदा पहुंचाने वाला होगा। लेकिन हमें रोजाना नए संक्रमितों की संख्या अचानक बढ़ती हुई देखने को मिल सकती है। कुछ हरे क्षेत्र नारंगी में तब्दील हो सकते हैं और कुछ नारंगी लाल क्षेत्रों में और इससे राज्यों और जिलों के संसाधनों को नुकसान पहुंच सकता है और कोविड-19 के लिए बनाए गए अस्पताल मरीजों से भर जायेंगे. आप पाने को बचा कर रखें .. 

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