मनमोहन सरकार का भ्रष्टाचार खोलकर बीजेपी के पक्ष में माहौल बनाने वाले प्रशांत भूषण को सुनाई जायेगी सजा!
मुद्दा आधारित विरोध या समर्थन यही तो है
यह दिलचस्प है कि प्रशांत भूषण अन्ना हजारे आंदोलन में सक्रिय थे। आम आदमी पार्टी के शुरुआती सदस्यों में हैं और मनमोहन सिंह सरकार का विरोध किया जिससे भाजपा के पक्ष में माहौल बना। उनके पिता, मशहूर अधिवक्ता शांति भूषण जनता सरकार में मंत्री थे। चर्चा और खबर है कि वे भाजपा के संस्थापकों में हैं और उन्होंने 80 के दशक में भाजपा को चंदा दिया था। आदि। आज ये सब याद करने का एक मतलब यह भी है कि भाजपा राज में प्रशांत भूषण भी नहीं बचे।
प्रशांत भूषण से असहमतियां हो सकती हैं। उनकी कार्यशैली से शिकायत भी। पर ये मामला अलग है और इसीलिए दिलचस्प। जहां तक 80 के दशक में भाजपा को और अन्ना आंदोलन के दौरान आम आदमी पार्टी के समर्थन और सहायता देने की बात है – यह बिल्कुल लोकतांत्रिक मामला है। लोकतंत्र में विश्वास करने वाले किसी भी व्यक्ति को विपक्ष को मजबूत करने में योगदान करना चाहिए। वैसे ही जैसे किरण बेदी और विजय कुमार सिंह आदि ने किया। इसमें कुछ गलत नहीं है। पर विपक्ष की सरकार बनने के बाद मलाई चाटने लगना, थाली बजाने लगना – गलत न भी हो तो विवेक का मामला है। और प्रशांत भूषण ने ऐसा नहीं किया तो यह प्रशंसनीय है। भाजपा के खिलाफ रहे यही उन्हें महान बनाता है।
अब दूसरा मुद्दा है, भाजपा राज में हर विरोधी को कांग्रेसी बता देना। प्रशांत भूषण को कांग्रेसी नहीं कहा जा सकता है यही भाजपा के बुद्धिहीन भक्तों के दिमाग का जाला साफ करने के काम आएगा। इसे ऐसे ही प्रस्तुत किया जाना चाहिए। मुझे नहीं लगता इस मामले में प्रशांत भूषण की कोई गलती है या उनका स्टैंड क्लीयर नहीं है। प्रशांत भूषण की स्थिति के लिए अगर भाजपा को जिम्मेदार माना जाए तो निश्चित रूप से भाजपा के पास बचने का आसान रास्ता कांग्रेसी कह देना नहीं है। देखा जाए राजनीति क्या करवट लेती है। मेरे हिसाब से प्रशांत भूषण ने जो किया वही किसी भी नागरिक को करना चाहिए। मुद्दा आधारित समर्थन या विरोध। देखना है इसे प्रशांत भूषण के खिलाफ क्या रंग दिया जाता है।