सम्भल में हुई मौतों की न्यायिक जांच हो, धार्मिक इमारतों के लिए 1991 का कानून लागू कर नए सर्वेक्षणों पर रोक लगाई जाए: PUCL
पीयूसीएल का मानना है कि पांच मुस्लिम नौजवानों की हत्या के आरोपी पुलिसकर्मियों के ऊपर मुकदमा चलना चाहिए
पीयूसीएल, उत्तर प्रदेश, सम्भल में 24 नवंबर को पुलिस गोलीबारी में मारे गए 5 नौजवानों की घटना पर कड़ा रोष व्यक्त करता है और घटना की उच्च स्तरीय न्यायिक जांच की मांग करता है। इसके साथ ही पीयूसीएल उत्तर प्रदेश संभल स्थित 900 साल पुरानी शाही जामा मस्जिद को हरिहर मंदिर बताने वाली एक याचिका पर सर्वेक्षण का आदेश जारी करने को पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम 1991 के खिलाफ और गैर लोकतांत्रिक मानते हुए भविष्य में ऐसे आदेशों पर रोक लगाने की मांग करता है।
इस हिंसा की शुरुआत स्थानीय अदालत में दायर एक दायर याचिका से हुई, जिसमें दावा किया गया कि सन 1526 से 1530 के बीच मुगलकाल में बनाई गई शाही जामा मस्जिद हरिहर मंदिर पर बना है, जिसके कारण अदालत ने दूसरे पक्ष (मस्जिद समिति) को सुनवाई और ऊपरी अदालत में अपील का मौका दिए बगैर गैरकानूनी तरीके से सर्वेक्षण का आदेश दे दिया । अदालत का आदेश होने के बाद सर्वेक्षण शुरू कर दिया गया, जिसमें स्थानीय लोगों ने धैर्य दिखाया, लेकिन प्रारंभिक सर्वेक्षण के बाद से ही तनाव बढ़ने लगा। दूसरी बार 24 नवंबर को सर्वेक्षण टीम भारी पुलिस फोर्स के साथ वहां पहुंची, जिसके कारण पूरे इलाके में तनाव फैल गया। मस्जिद समिति के सदर और वकील जफर अली ने 25 नवंबर हुई एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि मस्जिद से हौद का पानी जब निकाला जाने लगा, तो स्थानीय लोगों को लगा कि मस्जिद की खुदाई की जा रही है। लोगों की भीड़ मस्जिद के पास इकट्ठा होने लगी और नारे लगाने लगी और पुलिस के अनुसार उन पर पत्थर फेंकने लगी। इसके बाद पुलिस ने भीड़ पर लाठीचार्ज किया। स्थानीय लोगों के अनुसार पुलिस ने उन पर गोलीबारी भी की, जिसमें पांच लोगों की मौत हो गई। हालांकि पुलिस गोलीबारी से इंकार कर रही है, लेकिन कई वीडियो में पुलिस को गोली चलाते देखा जा सकता है। पुलिस का कहना है कि प्रदर्शनकारियों द्वारा की गई पत्थरबाज़ी में 20 पुलिस वालों को चोटें आई हैं, और उन्होंने आगजनी में कई गाड़ियां जला दीं। कई वीडियो में पुलिस वाले खुद पत्थर चलाते भी दिख रहे हैं और ज़फ़र अली ने प्रेस बयान में कहा कि जली हुई मोटरसाइकिलों में केवल एक मोटरसाइकिल पुलिस वाले की है। यह बेहद निंदनीय है कि इस प्रेस कॉन्फ्रेंस के तुरंत बाद उन्हें 25 नवंबर की शाम उत्तर प्रदेश पुलिस ने हिरासत में ले लिया।
संभल के पुलिस अधीक्षक कृष्ण कुमार विश्नोई सहित पुलिस अधिकारियों ने बयान दिया है कि भीड़ को तितर-बितर करने के लिए केवल "मामूली बल" का इस्तेमाल किया गया, जिसमें आंसू गैस और लाठीचार्ज शामिल थे। लेकिन गोली से हुई पांच मौतें इस बयान को संदिग्ध साबित कर रही हैं। पांच मौतों, 20 घायलों वाली यह घटना बेहद गंभीर है, और नूपुर शर्मा के बयान के बाद 10 जून 2022 की घटना की बड़ी पुनरावृत्ति है, जिसमें कानपुर और इलाहाबाद में पत्थरबाजी की बात कहकर पुलिस ने सैकड़ों निर्दोष मुस्लिम नौजवानों और नाबालिगों को उनके घरों से घसीटकर जेल में डाल दिया था। इसपर पीयूसीएल इलाहाबाद की जांच रिपोर्ट भी जारी की गई थी।
इसके अलावा संभल में 5 मुसलमान युवकों की मौत की घटना के लिए सोशल मीडिया पर रोष व्यक्त करने वाले दो प्रतिष्ठित लोगों अधिवक्ता काशान सिद्दीकी और जावेद मोहम्मद को पुलिस की एसओजी टीम ने 24 नवंबर की देर रात इलाहाबाद स्थित उनके घरों से उठा लिया और शांतिभंग की धाराओं में चालान कर दिया। काशन सिद्धिकी की तो 25 नवंबर को जमानत हो गई, लेकिन जावेद मोहम्मद को जेल भेज दिया गया। इसे देखते हुए इस बात की पूरी आशंका है कि उत्तर प्रदेश के अन्य शहरों में सोशल मीडिया पर लिखने वाले कई अन्य लोगों के खिलाफ यह कार्यवाही की गई होगी।
पीयूसीएल का मानना है कि संभल की घटना की उच्च स्तरीय न्यायिक जांच होना चाहिए और पांच मुस्लिम नौजवानों की हत्या के आरोपी पुलिसकर्मियों इसका मुकदमा चलना चाहिए।
दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि पीयूसीएल का यह मानना है कि किसी धार्मिक इमारत संदेह खड़ा करने वाली याचिकाओं पर तुरंत सर्वेक्षण का आदेश जारी करना एक सांप्रदायिक कदम है। इस मामले में तो दूसरे पक्ष को सुना तक नहीं गया, यहां तक कि ऊपरी अदालत में इसके खिलाफ अपील का मौका भी नहीं दिया गया, जो कि गैरकानूनी भी है और धार्मिक पूर्वाग्रह से भरा हुआ आदेश है जो कि मौजूदा अशांति और पांच मौतों का कारण है।
इस तरीके से तो हर धार्मिक इमारत पर संदेह खड़ी करने वाली याचिकाओं की बाढ़ आ जाएगी, जो कि किसी भी सेक्युलर और लोकतांत्रिक देश के लिए बेहद खतरनाक है। उत्तर प्रदेश में ही इसके पहले, अयोध्या की बाबरी मस्जिद, मथुरा की ईदगाह मस्जिद और बनारस के ज्ञानवापी मस्जिद को मंदिर बताने वाली याचिकाएं दाखिल कर उस पर सर्वेक्षण का आदेश हासिल किया गया और फिर उसे चुनावी मुद्दा बना कर धार्मिक उन्माद बढ़ाया गया, अल्पसंख्यकों का हाशियाकरण किया गया। वास्तव में इस तरह की याचिकाओं को मुसलमानों के दमन और "अन्यकरण" का माध्यम बना लिया गया है, जिसपर जितनी जल्दी हो सके रोक लगनी चाहिए। गौरतलब है कि ऐसी समस्या को हल करने के लिए ही 1991 में पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम लाया गया, जिसमें कहा गया कि 15 अगस्त 1947 को जो इमारत जिस रूप में मौजूद थी, उसे वहीं माना जायेगा, उसमें कोई बदलाव नहीं किया जाएगा। यहां तक कि अयोध्या जजमेंट के संदर्भ में भी यह कहा गया है कि इस फैसले को बाकी धार्मिक स्थल के लिए नज़ीर नहीं माना जायेगा बल्कि सभी ऐसे मामलों में पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम 1991 लागू होगा। इस कानून का मजबूती से पालन करके ही भारत के सेक्युलर स्वरूप को बचाया जा सकता है। सभी सरकारों और न्यायालयों को इस कानून का कड़ाई से पालन करना जरूरी है। लेकिन अफसोस कि दोनों ही न सिर्फ इसकी अवहेलना कर रहे हैं, बल्कि इसके माध्यम से समाज में धार्मिक अराजकता का माहौल बनाते जा रहे हैं। इसे तुरंत रोके जाने की जरूरत है, वरना संभल जैसी घटनाएं घटती ही रहेंगी।
पीयूसीएल उत्तर प्रदेश यह मांग करता है कि
1- संभल में 24 नवंबर को हुई घटना की उच्च स्तरीय न्यायिक जांच की जाय।
2- 5 युवकों की मौत के लिए जिम्मेदार अधिकारियों/पुलिस कर्मियों को गिरफ्तार कर उनपर हत्या का मुकदमा चलाया जाय।
3- मृतकों के परिजनों को उचित मुआवजा दिया जाए।
4- संभल की घटना पर बड़े पैमाने पर दर्ज हो रही FIR, जिसमें बड़ी संख्या में नाबालिग बच्चे शामिल हैं, की भी जांच कर झूठे मुकदमें वापस लिए जाए।
5- शाही जामा मस्जिद के सदर ज़फ़र अली को तुरंत रिहा किया जाय और इस आदेश और करवाही के लिए दोषी अधिकारियों और पुलिस कर्मियों को दंडित किया जाय।
6-- संभल में जामा मस्जिद के लिए सर्वेक्षण के आदेश को गैरकानूनी होने के कारण रद्द किया जाय।
7- पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम 1991 के हवाले से धार्मिक इमारतों पर संदेह जताने वाली सभी याचिकाओं को रद्द कर उन पर जुर्माना लगाया जाय।
अध्यक्ष
टीडी भास्कर
महासचिव
चित्तजीत मित्रा
पीयूसीएल उत्तर प्रदेश द्वारा जारी