कृष्ण गोपाल व्यास
कहते हैं सीखने की कोई उम्र नहीं होती। समझ के आधार पर विकसित व्यावहारिक ज्ञान की ऊँचाई की कोई सीमा नहीं होती। सटीक ज्ञान के आधार पर सम्पन्न सफल काम का आनन्द अवर्णनीय होता है। यदि किसी मनपसन्द काम को करने का संकल्प दिल में उतर जाए तो रुकावटें भी अपने आप मार्ग देने लगती हैं। अच्छे कामों से व्यक्ति की सही पहचान बनती है। सही पहचान स्थायी होती है। उसके बनने का सुख अलग ही होता है। कुछ-कुछ ऐसा ही नदी चेतना यात्रा के लिए होमवर्क करते लोगों के लगातार बढ़ते जुडाव और जुनून को देखकर लग रहा है।
उल्लेखनीय है कि बिहार में पानी रे पानी अभियान के आयोजकों द्वारा नदी चेतना यात्रा के लिए प्रति दिन होमवर्क चलाया जा रहा है। लगता है कि इस होमवर्क के माध्यम से नदी-षुभचिन्तकों का ऐसा केडर तैयार हो रहा है जो नदी और समाज के बिसराए परम्परागत सम्बन्ध को पुनःस्थापित कर कछार की जल संकट से जुडी समस्याओं से निजात दिलाने के लिए नई इबारत लिखेगा। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए नदी चेतना यात्रा से जुड़े लोग समाधानों पर केन्दित वीडियो देखते हैं। सफलता की कहानियों के मर्म को समझने का प्रयास करते हैं। प्रष्नोत्तर तथा अनुभवों को साझा कर षंकाओं का समाधान करते हैं। लेकिन दूसरी ओर, नदी चेतना यात्रा के आयोजक इस हकीकत को अच्छी तरह समझ रहे हैं कि यदि उनके होमवर्क में खामी रही या उसका सामाजिक पक्ष कमजोर रहा तो सारी यात्रा बेकार हो जावेगी।
नदियों के प्रवाह की मौसमी घट-बढ़ पर पहले भी अलग-अलग मौकों पर चर्चा हुई है लेकिन होमवर्क की कड़ी में 22 अगस्त 2020 को हुई चर्चा अहम थी क्योंकि पिछले कुछ दिनों से नदी चेतना यात्रा से जुड़े लोग नदी प्रवाह की मौसमी घट-बढ़ को समझने का प्रयास कर रहे थे। इसलिए उन्होंने सबसे पहले, बरसात, ठंड और गर्मी के मौसम में नदियों के प्रवाह के लगातार घटने की चर्चा की। चर्चा में यह भी सामने आया कि पिछली सदी में यह घट-बढ़ कुदरती थी। अब उसमें मानवीय हस्तक्षेप अर्थात पानी की सीधी पम्पिंग और भू जल दोहन का घटक जुड गया है।
इन घटकों ने बरसात के प्रवाह की मात्रा को तो उतना नहीं घटाया जितना सूखे दिनों के प्रवाह को घटाया है। इस कडी में छोटी-छोटी सहायक नदियों पर यह असर अधिक देखा गया है। उसके बाद, बोल्डर, बजरी, रेत और सिल्ट (मिट्टी के बेहद महीन कण) के नदी मार्ग के कुदरती क्रमिक वितरण पर चर्चा हुई। बोल्डर, बजरी, रेत और सिल्ट की बाढ़ तथा प्रवाह नियोजन क्षमता और जैव-विविधता से सम्बद्ध बिन्दुओं पर समझ बनाई गई। उनके महत्व को रेखांकित किया गया।
साथ ही साथ उदगम से लेकर संगम तक नदी की बढ़ती चैडाई, और बाढ़ क्षेत्र तथा राईपेरियन जोन (नदी के दोनों किनारों से लगा क्षेत्र) की नदी तथा समाज हितैषी भूमिका को समझा गया। इसके उपरान्त बरसाती प्रवाह पर चर्चा केन्द्रित की। सभी जानते हैं कि बरसात के दिनों में नदी में प्रवाह की अधिकता होती है। चर्चा के दौरान प्रतिभागियों ने जानकारी दी कि प्रवाह की यह अधिकता पूरी बरसात में एक समान नहीं होती। कछार में पानी के बरसने से प्रवाह बढ़ जाता है। बरसात के नही होने से प्रवाह घट जाता है। यदि बरसात कछार के ऊपरी भूभाग में बरसात होती है तो कुछ समय बाद प्रवाह पर उसका असर दिखाई देता है पर यदि बरसात कछार के निचले इलाकों में होती है तो ऊपरी भूभाग पर उसका असर नहीं होता।
इसके बाद नदी के पर्यावरणी प्रवाह अर्थात प्रवाह की उस न्यूनतम मात्रा पर चर्चा हुई जो हर हालत में नदी में मिलना ही चाहिए। इस पूरी चर्चा का लब्बोलुआब यह था कि सिल्ट के सुरक्षित निपटान के लिए नदी की धारा अवरोध मुक्त और बालू की माईनिंग, नदी अस्मिता तथा जैव-विविधता को सुरक्षित रख करना चाहिए। बालू की गीली परतों की माईनिंग को प्रतिबन्धित करना चाहिए। बाढ का प्रबन्ध राहत बांटना नही है। उसका प्रबन्ध बाढ़ के पानी की सुरक्षित निकासी है। अर्थात जन-धन की हानि से बचने के लिए बाढ़ क्षेत्र में बसाहट नहीं होना चाहिए। अनुभव सिद्ध करता है कि तटबन्धों से फायदे कम और नुकसान अधिक हुआ हैं। इस तरह के कामों की हानि-लाभ पडताल होना चाहिए।
बैठक में उन स्थानों को चिन्हित करने पर सहमति बनी जहाँ भूजल रीचार्ज के लिए बालू की परत तक गहरे तालाब बनाने का उतना काम किया जाना चाहिए जिससे नदी-तंत्र जीवन्त हो सके। दिनांक 22 अगस्त 2020 को सम्पन्न बैठक में अनेक उपर्युक्त बिन्दुओं पर काफी हद तक स्पष्टता बनी। उम्मीद है कि नदी चेतना यात्रा के पहले चरण में चयनित नदियों के कछार के ग्रामीणों, पंचायतों और स्थानीय अधिकारियों से बेहतर सम्वाद संभव होगा। समाधान के रास्ते खुलेंगे और समाज की भागीदारी बढ़ेगी। कछार में उपयुक्त संरचनाओं पर काम होगा।
नदी चेतना यात्रा के साथियों ने पिछली बैठकों में नदी कछार के सीमांकन और उसके ढ़ाल को जानने के लिए सर्वे आफ इंडिया की टोपोषीट (स्केल 1ः50000) के अध्ययन की आवष्यकता को रेखांकित किया था। आन्तरिक चर्चा में चार किस्म के नक्षों यथा ड्रेनेज मेप (क्तंपदंहम उंच), कछार के ढ़ाल का नक्षा (ैसवचम उंच), भूमि आच्छादन और भूमि उपयोग (स्ंदकबवअमत ंदक स्ंदकनेम उंच), हाईड्रोजियालाजिकल मेप (भ्लकतवहमवसवहपबंस उंच) पर चर्चा की आवष्यकता प्रतिपादित की गई। इन नक्षों के उपयोग से नदी के कछार में कामों के निर्धारण में सुविधा होती है। चयनित नदी और उसकी सहायक नदियों में प्रवाह बहाली का मार्ग प्रषस्त होता है।
पंकज मालवीय ने इन नक्षों को प्राप्त करने की जिम्मेदारी स्वीकारी। उपर्युक्त नक्षों के मिलने के बाद उन पर संवाद होगा। प्रीति और आकृति उनके प्रस्तुतिकरण की व्यवस्था करेंगी और उनके उपयोग के तरीकों पर साथियों से चर्चा करेंगी। यह प्रयास नदी चेतना यात्रा का हिस्सा होगा। यदि इस जानकारी के साथ समाज, अधिकारियों या पंचायत के साथ चर्चा होती है तो नदीमित्रों के सुझाव ग्राह्य होंगे और काम में समाज की सार्थक भागीदारी सुनिष्चित होगी।
चयनित नदी कछार में कुछ पुराने तालाब हो सकते हैं। नदी चेतना यात्रा के दौरान उन पुराने तालाबों की स्थिति की जानकारी प्राप्त होगी। इनमें से कुछ तालाब आधुनिक तो कुछ पुराने परम्परागत तालाब हो सकते हैं। इन तालाबों के अध्ययन के लिए अभियान के आयोजक पंकज मालवीय ने नदी चेतना यात्रा के साथियों के बीच एक विस्त्रत प्रपत्र जारी किया है। इस प्रपत्र में तालाब से सम्बन्धित अधिक से अधिक जानकारी एकत्रित की जावेगी। उस जानकारी के आधार पर उनके पुनर्जीवन के लिए समाज से सम्वाद किया जायेगा।
गौरतलब है कि स्वयं सेवी संगठनों के समूह द्वारा मध्यप्रदेष के उत्तर-पूर्व में स्थित बुन्देलखंड इलाके में पुराने तालाबों के पुनर्जीवन और प्रबन्ध के लिए तालाब प्रबन्ध कमेटी बनाई जाने का प्रयास चल रहा है। यह कमेटी तालाब से गाद निकलवाने, उसके और पानी के न्यायोचित वितरण जैसे अनेक काम करेगी। यह सारा काम समाज सम्मत पारदर्षी तरीके से सम्पन्न किया जावेगा। नदी चेतना यात्रा के आयोजकों का मानना है कि इन अभिनव प्रयासों का भी अध्ययन होना चाहिए। नदी चेतना यात्रा, यही जागरुकता हासिल कराने के लिए प्रयास करेगी। यदि यह प्रयास सफल होता है तो समाज की सार्थक भागीदारी सुनिष्चित होगी। नदियों के कछारों की पुरानी उपयोगिता बहाल होगी।