Sedition Law: सुप्रीम कोर्ट ने समीक्षा पूरी होने तक राजद्रोह क़ानून पर लगाई रोक!
मुख्य न्यायाधीश एनवी रमन्ना ने अपने आदेश में कहा है कि जो भी लोग इस क़ानून के तहत मुक़दमा झेल रहे हैं या वे जेल में हैं, वे राहत और ज़मानत के लिए अदालत जा सकते हैं.
राजद्रोह क़ानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को इस पर विचार करने को कहा है. अदालत ने कहा है कि फिर से समीक्षा करने की प्रक्रिया जब तक पूरी नहीं हो जाती, इस क़ानून के तहत कोई भी मामला दर्ज नहीं होगा. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा है कि इस क़ानून के तहत किसी भी तरह की जाँच भी नहीं शुरू हो सकती.
मुख्य न्यायाधीश एनवी रमन्ना ने अपने आदेश में कहा है कि जो भी लोग इस क़ानून के तहत मुक़दमा झेल रहे हैं या वे जेल में हैं, वे राहत और ज़मानत के लिए अदालत जा सकते हैं. पिछले दिनों केंद्र सरकार ने इस मामले में दाख़िल हलफ़नामे में कहा था कि वो इस क़ानून की समीक्षा के लिए तैयार है. हालाँकि पहले सरकार ने ये कहा था कि ये क़ानून बहुत ज़रूरी है. जबकि अदालत ने इस क़ानून के दुरुपयोग पर चिंता जताई थी.
इस कानून के दुरुपयोग को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते-CJI
अदालत में बहस के दौरान जब बेंच ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा कि सरकार को समीक्षा के लिए कितना समय लगेगा तो उन्होंने जवाब दिया- "इसका ठीक-ठीक जवाब हम नहीं दे सकते लेकिन ये प्रक्रिया शुरू हो चुकी है."बेंच ने कहा कि वह केंद्र सरकार के फ़ैसला लेने तक सुनवाई टालने के आग्रह को मंज़ूरी तो दे सकती है लेकिन अदालत ने इस कठोर क़ानून के दुरुपयोग को लेकर चिंता ज़ाहिर की.
जिस पर सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि एफ़आईआर दर्ज करना राज्य की पुलिस का काम होता है ना कि केंद्र ये करता है, इसके दुरुपयोग को रोकने के लिए कई तरह के उपाय हैं.
जवाब में चीफ़ जस्टिस रमन्ना ने कहा, ''हम सभी को अदालतों में जाने और महीनों तक जेल में रहने के लिए नहीं कह सकते. केंद्र सरकार ने खुद ही दुरुपयोग के बारे में चिंता जताई हो तो आप बताइए कि उनकी रक्षा कैसे करेंगे? हमें संतुलन बनाना होगा, कई लोग हैं जो इस कानून के तहत जेल में बंद हैं और कई ऐसे होंगे जिन पर इस कानून के तहत मामला दर्ज होने जा रहा है. कई मामले अब तक लंबित हैं. कृपया इस पर अपना रुख स्पष्ट करें."
क्या है राजद्रोह का कानून ?
इस पूरे संदर्भ को समझने के पहले राजद्रोह क़ानून को संक्षेप में समझने की ज़रूरत है.भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए के अनुसार, जब कोई व्यक्ति बोले गए या लिखित शब्दों, संकेतों या दृश्य प्रतिनिधित्व द्वारा या किसी और तरह से घृणा या अवमानना या उत्तेजित करने का प्रयास करता है या भारत में क़ानून द्वारा स्थापित सरकार के प्रति असंतोष को भड़काने का प्रयास करता है तो वह राजद्रोह का अभियुक्त है.
राजद्रोह एक ग़ैर-ज़मानती अपराध है और इसमें सज़ा तीन साल से लेकर आजीवन कारावास और जुर्माना है.जिस केदारनाथ सिंह बनाम बिहार राज्य मामले की बिनाह पर केंद्र सरकार ने 7 मई को कहा था कि इस क़ानून के दोबारा दुरुपयोग की ज़रूरत नहीं है, वो साल 1962 का मामला है.
उस फ़ैसले में सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी की धारा 124ए के बारे में कहा था कि इस प्रावधान का इस्तेमाल "अव्यवस्था पैदा करने की मंशा या प्रवृत्ति, या क़ानून और व्यवस्था की गड़बड़ी, या हिंसा के लिए उकसाने वाले कार्यों" तक सीमित होना चाहिए. लेकिन वर्तमान परिप्रेक्ष्य में इस क़ानून का इस्तेमाल सही संदर्भ में नहीं हो रहा, इस बारे में रह रह कर कई क़ानून के जानकारों ने सवाल उठाए हैं और इशारों-इशारों में अपनी बात रखी है.
क्यों आया राजद्रोह कानून चर्चा में
हनुमान चालीसा का पाठ, भारत-पाकिस्तान मैच में पाकिस्तान ज़िंदाबाद का नारा, सोशल मीडिया पर पोस्ट या फिर कोई कार्टून- ये कुछ ऐसे काम है जिन्हें हाल के दिनों में अलग-अलग राज्य सरकारों ने राजद्रोह क़ानून में मुक़दमा दायर करने का आधार बनाया.इस वजह से इस क़ानून के दुरुपयोग को लेकर भारत में बहस छिड़ गई और अब बात क़ानून की समीक्षा की हो रही है. तमाम विरोधों के बाद केंद्र सरकार अब इस क़ानून की समीक्षा के लिए तैयार हो गई है.
हालांकि इसकी समीक्षा की कोई टाइमलाइन तय नहीं की गई है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को सुनवाई के दौरान इस पूरे मामले में 'आशा और उम्मीद' शब्द का इस्तेमाल करते हुए तीन अहम बातें कहीं :-
पहला - जब तक केंद्र सरकार क़ानून की समीक्षा नहीं कर लेती तब तक राजद्रोह क़ानून की धारा के तहत कोई नया एफ़आईआर दर्ज़ ना हो.
दूसरा - राजद्रोह क़ानून के तहत लंबित सभी मामलों में आगे कोई कार्रवाई ना हो.
तीसरा - इस धारा के तहत दर्ज़ मामले में जेल में बंद लोग ज़मानत के लिए कोर्ट जा सकते हैं.
इस मामले की अगली सुनवाई जुलाई के तीसरे हफ़्ते में होगी.
केंद्रीय क़ानून मंत्री किरेन रिजिजू ने इस आदेश पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि अदालत को विधायिका और सरकार का सम्मान करना चाहिए और सरकार को अदालतों का. दोनों के कार्यक्षेत्र निर्धारित है. किसी को भी लक्ष्मण रेखा नहीं लांघनी चाहिए.