पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में धान की पराली में काफी कमी होने की उम्मीद, प्रदूषण से मिलेगी राहत

गैर-बासमती किस्म की फसलों से धान की पराली को जलाना प्रमुख चिंता का विषय है

Update: 2021-10-08 10:25 GMT

पीआईबी, नई दिल्ली: धान की पराली की मात्रा में कमी लाने की दिशा में उठाए गए कदमों के सकारात्मक परिणाम सामने आ रहे हैं। हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश के आठ एनसीआर जिलों में धान का कुल रकबा चालू वर्ष के दौरान पिछले वर्ष की तुलना में 7.72 प्रतिशत कम हो गया है। इसी प्रकार, गैर-बासमती किस्म से कुल धान की पराली की मात्रा पिछले वर्ष की तुलना में चालू वर्ष के दौरान 12.42 प्रतिशत कम होने की संभावना है।

केन्‍द्र सरकार और हरियाणा, पंजाब तथा उत्तर प्रदेश की राज्य सरकारें फसलों में विविधता लाने के साथ-साथ धान की पूसा-44 किस्म के उपयोग को कम करने के उपाय कर रही हैं। गैर-बासमती किस्म की फसलों से धान की पराली को जलाना प्रमुख चिंता का विषय है। फसल विविधीकरण और पूसा-44 किस्म के स्‍थान पर कम अवधि तथा अधिक उपज देने वाली किस्में पराली जलाने के मामले में नियंत्रण हेतु रूपरेखा और कार्य योजना का हिस्सा हैं।

 राज्यों में पराली की कुल मात्रा 2020 में 28.4 मिलियन टन थी, जो अब 2021 में घटकर 26.21 मिलियन टन होने की उम्मीद है।

गैर-बासमती किस्म में और भी कमी होने की उम्मीद है। विशेष रूप से गैर-बासमती किस्म की फसलों से धान की पराली की मात्रा 2020 में पंजाब में 17.82 मिलियन टन से घटकर 2021 में 16.07 मिलियन टन और हरियाणा में 2020 में 3.5 मिलियन टन से घटकर 2021 में 2.9 मिलियन टन होने की उम्मीद है।

आयोग ने एक व्यापक ढांचे के माध्यम से संबंधित राज्य सरकारों को कम अवधि और जल्दी परिपक्व होने वाली फसलों की किस्मों को बढ़ावा देने का निर्देश दिया था‌।


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