वीरेंद्र सेंगर
कांग्रेस का कीचड़ . .अब बहुत हुआ। इस पार्टी का अवसान काल थम नहीं रहा। ऐसा लग रहा है कि पूरी पार्टी ही नीलामी वाली बाजार में जाने अनजाने आ खड़ी हुई है। जिसका मनचाहा दाम लग जाता लगता है वो बिक जाता है बड़े आराम से। कल वे बिके थे। आज ये नीलामी वाली बाजार में आ खड़े हुए हैं। पूरी बेशर्मी से। सिफत यह कि अब बिकने वाले भी शर्म नहीं करते। वे अपने को हीरो मानते हैं। अपने बिके हुए जमीर की हकीकत छुपाने के लिए तरह तरह के ढोंग रचते हैं। गोया वे इस पाले से उस धुर विरोधी पाले में जाकर कोई बड़ी देश सेवा करने वाले हैं।बस,कुछ जुमले भर उछाल दिए जाएंगे।
यही कि वहां दम घुटता था। जनता की सेवा का मौका नहीं था। स्वभिमान की रक्षा नहीं हो पा रही थी इसीलिए ये फैसला लिया है। ताली बजेंगी। बैंडबाजा होगा। फूल मालाओं से लदा चकाचक फोटोशूट होगा। चमचेनुमा भक्त भावविभोर नजर आंएगे। जिंदाबाद के जयकारे होंगे। पल्टूराम किसी फिल्मी हीरो के माफिक मंद मंद मुस्कराहट बिखेरते हुए आगे बढ़ जांएगे। फिर वो बंदा या बंदी कुछ दिनों तक लगातार पूर्व पार्टी पर तेज हमला करेगा ताकि नये आका खुश हो जांए। भारतीय सियासत ने बार बार ये गलीज उत्सव देखें हैं। अब ये किसी को चौंकाते भी नहीं हैं। ये परिदृश्य तमाम दलों में तमाम बार दोहराए गये हैं ।पहले कुछ लोकलाज होती थी। बिकने खरीदने का विमर्श बकरे मंडी जैसी नहीं होता था। अब न्यु इंडिया में हैं हम। बहुत कुछ बदला है।सो राजस्थान के फिलहाल मुख्यमंत्री अशोक गैहलोत जी का दर्द ए बयान सुनिए।
वे बता गये हैं कि उनकी सरकार गिराने के लिए भाजपा के लोग कुछ विधायक गणों को 25करोड़ की थैली का आफर कर रहे हैं। ये बातें हवा मे ंकुछ दिनों से तैर रही हैं कि उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट बागी मोड में आ गये हैं। उनके साथ 25विधायक हैं। वे कुछ भी कर सकते हैं। फिलहाल सोनिया गांधी इन विधायकों से मिलने को तैयार नहीं हैं। संकेत यही हैं कि वे गहलौत की कीमत पर दबाव में नहीं आंएगी। जाहिर है मंडी में पैकेज डील पकेगी देर सबेर। .. ... कुछ इसी तरह की बेहयाई का खेल भोपाल में पिछले महीनों में खेला गया था। सो वहां कांग्रेसी सरकार की विदाई हुई। इसमें नायक ? बने थे ज्योतिरादित्य सिंधिया। जो कांग्रेस में राहुल गांधी के खास सखा हुआ करते थे। धुर सेक्यूलर हुआ करते थे। मोदी जी लेकर उन्होंने क्या नहीं कहा!। लेकिन वो उनका भूतकाल था। इसमें तो विचरण तो अब हम जैसे राजनीतिक समीक्षक भर करते हैं। अपने को आज भी महाराज कहलाने में आनंद हासिल करने वाले ज्योति जी मजे में हैं।
दरअसल, ये राजनीति का बेशरम काल है। शुचिता और मर्यादा की बात करने वाले दकियानूसी माने जाते हैं। इस मापदंड पर महराज तो वाकई में हीरो ही हैं। जय हो महराज की!सुना है तय पैकज के मुताबिक सब हासिल हो गया। शिवराज जी का इस बार वो जल्बा भी नहीं रहा। मुख्यमंत्री जरूर बने हैं। लेकिन महाराज के भक्तों को पूरे मंत्री पद देने पड़े। आलाकमान का कमाल है। वो बेचारे अब करें भी क्या? भाजपा का आलाकमान भी धुर आला है। अपने अच्छे दिनों में भी कांग्रेस का आलाकमान कभी इतना लोहालाट नहीं होता था। सो कोई सवाल नहीं। कोई किंतु परंतु नहीं। इसी से उसका सियासी वचन अटल होता है। पायलट के सामने महाराज का उदाहरण है। उन्होंने सब पाया तो वो भी पाने की पूरी उम्मीद रखें। वैसे यहां ज्यादा रखा भी क्या है?
इस पार्टी में जब तक जनाब राहुल गांधी अटके हैं तब तक शायद ही कुछ खास बन पाए। समस्या यह भी है कि वो सीन से हटे तो पार्टी कितने धड़ों में होगी कोई नहीं जानता?। खैर इस बिंदु पर फिर. कभी। मध्यप्रदेश के बाद अब राजस्थान में माननीय अब खेल करने जा रहे हैं। भाजपा के प्रभुगण!भी अच्छी तरह समझ लें कि देरसबेर उन्हें भी यह शैली खलेगी। लोकतंत्र में सत्ता बदलती रहती है। देरसबेर भले हो। कोई कितना भीआज महाबली नजर आए ,कल का कोई नहीं जानता ? यही सत्य है। कोई अमर भी नहीं है। लेकिन सियासत ऐसी हो रही है जैसे वे ही हमेशा के लिए आये हैं।शायद यही मोह माया का मुगालता होता हो! याद कीजिए कभी इस तरह के मुगालते में कांग्रेस भी जीती थी। सियासत के जितने धतकर्म आज उसे चुभ रहे हैं, उनका जनक और कोई तो नहीं था?क्योंकि मुगालता यही था कि सदा के लिए सत्ता में हैं। ये धतकर्म मजबूती देंगे।कहते हैं समय सबको सबक देता है। बस,अब आप से शातिर खिलाड़ी मुकाबिल हैं। अब झेलो। और विलाप करो। कम से मुझे तो आपसे सहानुभूति नहीं हो सकती। बस,इतना जरूर लगता है आप लोग चोरी चबारी तो कर लेते थे लेकिन एकदम थेथर नहीं होते थे। विकास की लबार आप भी करते थे। फिर भी सफेद झूठ बोलने की देशभक्त अदाओं वाला हुनर आप को नहीं आता था। विरोधियों को सताने के धतकर्म आपने भी किये। इसमें भी अधकचरे रह गये तो देश क्या करे?
कुछ कांग्रेसी आज यह अफसोस जरूर करते हैं कि उनके पीएम ने गुजरात वालों को क्यों बक्श दिया था? यानी नीच स्तर की सियासत क्यों नहीं की।? ये विमर्श का स्तर है।हाय! हाय!करो। अगली पारी कभी मिले तो अरमान पूरे कर लेना। फिलहाल पुराने पापों का हिसाब भुगतो।और हम क्या कहें? देश सब जानता है। आप को भी इन्हें भी। अब आप शार्टकट का रास्ता भूल जांए।नयी राजनीति करनी है तो अपना माइंडसेट बदलें। वंशवादी विरासती शैली से बाहर आंए। चाहे धीरे धीरे। अध्यक्ष पद पर परिवार के बाहर का कोई चेहरा लांए। वो कठपुतली ना हो। तो ही बात बनेगी। शुरुआत ी झटका भी लग सकता है। इसके लिए तैयार रहें। सैद्धांतिक आधार मजबूत बनांए। वर्ना भाजपा की बी टीम बनकर पिटते रहेंगे। व्यक्तिगत तौर पर कांग्रेस मुझे कभी रास नहीं आयी।इसके तमाम कारण रहे हैं। फिलहाल देश के स्तर पर कांग्रेस ही विपक्ष है, वो जैसी भी है। ज्वलंत सवाल पूछने का कम से कम माद्दा तो रखती है । यह जरूर है कि वो जमीनी संघर्ष .का माद्दा नहीं रखती। बगैर जमीनी संघर्ष के संघ परिवार का मुकाबला मुमकिन नहीं हैं।
क्योंकि अपने अच्छे दिनों में काग्रेंस भी कम अंहकारी नहीं थी। सो जनता की ज्यादा सहानुभूति की उम्मीद नहीं करनी चाहिए।यह जरूर है सत्ता पक्ष ज्यादा अंहकारी हो जाए तो लोगों के पास कम बुरे को वरीयता देने का विकल्प बचता है। अभी तो कांग्रेस के सामने यही चुनौती है कि वह बचाखुचा किला बचाए। वर्ना उनके पास केवल अतीत के अच्छे दिन बचेंगे। . पार्टी के अंदर कीचड़ बहुत हो चला है। जनता मे ं साख कमजोर है। इसीलिए खुद वंशवादी राजनीति की उपज वाले नेता भी आंख दिखा रहे हैं। अरे महराज और क्या हैं? वंशवादी राजनीति के उपज नहीं हैं?।पायलट और क्या हैं?। अब ये देशभक्त पार्टी मे ं होंगे तो पुण्य आत्मा माने जांएगे। कांग्रेस में रहेंगे तो वंशवाद के प्रतीक। धन्य है ये सियासी करामात!कांग्रेस में ं खूब कीचड़ है। अनुभवी खिलाड़ी हैं। इन्हें पहचानने और परखने वाला जानामाना नायाब करामाती जौहरी है। काम के बकरों को वाजिब पैकेज मिल सकता है। तुम बस टिवटर पर आंसू बहाना। कांग्रेसी कीचड़ बड़ा उर्वरा है। इससे कमल की फसल अच्छी आती है। फिलहाल ये पंजे का ही अवसानकाल है। भारत के लोकतंत्र का नहीं !क्योंकि जनता समय पर सबका हिसाब लेना जानती है। वो सियासी कीचड़ का भी लेगी।उसका भी टाइम आएगा! हमें तो बहुत जल्दी नहीं है और आपको?