बहुत हुई महंगाई की मार, क्या कर रही है मोदी सरकार!

अगर ठोस क़दम नहीं उठाए जाते हैं तो आने वाले दिने में महंगाई और बढ़ सकती है। पहले ही महंगाई और बेरोजगारी की दोहरी मार झेल रही आम जनता पर और बोझ बढ़ सकता है।

Update: 2021-06-16 13:29 GMT

मई में खुदरा महंगाई की दर 6 फीसदी के आंकड़े को पार कर गई। यह पिछले छह महीने में खुदरा महंगाई की सबसे ज्यादा दर है। भारतीय रिजर्व बैंक ने मार्च 2026 तक खुदरा महंगाई दर के लिए 4 फीसदी का लक्ष्य रखा है। इसमें 2 फीसदी की घटबढ़ शामिल है। खुदरा महंगाई की दर के इस लक्ष्य से आगे निकल जाने को अर्थशास्त्री अर्थव्यस्था के लिए अच्छा संकेत नहीं मान रहे।

साल दर साल आधार पर मई में खुदरा मुद्रास्फीति की दर बढ़कर 6.30 फीसदी हो गई। अप्रैल में यह 4.29 फीसदी थी। विश्लेषकों ने मई में खुदरा महंगाई दर 5.3 फीसदी रहने का अनुमान जताया था। लेकिन ये अमान से कहीं ज्यादा आगे निकल गई। थोक मूल्य आधारित महंगाई की दर भी 10.94 प्रतिशत से बढ़कर 12.94 प्रतिशत पर पहुंच गई है। ये पिछले दो दशक में सबसे ज्यादा है।

महंगाई के उच्चतम बिंदु तक पहुंचने के लिए दो कारण हैं। पहला पेट्रोल-डीज़ल के दामो में लगातार बढ़ोतरी और दूसरा कोरोनो की दूसरी लहर की वजह से देश क बड़े हिस्से में लगने वाला ल़कडाउन। कोरोना की पहली लहर के बाद घरेलू अर्थव्यवस्था में सुधार हो रहा था तभी कोरोना की दूसरी लहर ने फिर से समस्या खड़ी कर दी। कोरोना को काबू में करने के लिए कई राज्यों ने लॉकडाउन सहित दूसरी पाबंदियां लगाई। इससे आर्थिक गतिविधियां ठप हो गईं। इस साल मार्च तिमाही में जीडीपी की ग्रोथ 1.6 फीसदी थी। यह इस बात का सबूत है कि अर्थव्यवस्था पटरी पर आ रही थी। लेकिन आर्थिक गतिविधिया ठप्प होने की वजह से ये पटरी से उतर गई।


कोरोना की दूसरी लहर में तेज़ी से फैले संक्रमण की वजह से अप्रैल-मई में लगभग देशभर में लॉकडाउन के हालात रहे। इस दौरान आर्थिक गतिविधियां एकदम बंद हो गईं। तमाम कारोबार बंद हो गए। बोरोज़गारी बढ़ी। लोगों के पास रखा पैसा खत्म हो गया। बाजार में मांग और सप्लाई का संतुलन बिगड़ गया। आर्थिक मामलों के जानकार और पश्चिम बंगाल के वितंतमंत्री अमित मित्रा कहते हैं कि आम लोगों की आर्थिरक हालत पहले से ही अच्छी नहीं थी। ऐसे में बड़े उद्योगपतियों ने बाजार से पैसा तो कमाया लेकिन उसे फिर से बाजार में निवेश नहीं किया। बाजार में पैसों को रोटेशन रुकन की वजह से मंहगाई चरम पर पहुंची है। उनका कहना है कि सरकार के कोरोना काल में आर्थिक पैकेज देने भर से हालात सुधरने वाले नहीं हैं। हालात सुधारने के लिए सरकार को बड़े उद्योगपतियों को बाजार में निवेश बढ़ाने को प्रोत्साहित करना होगा। बाजार में कैश फ्लो आने और लोगों को रोजगार मिलने से ही महंगाई पर लगाम लगाई जा सकती है।

वहीं आर्थिक मामलों के जानकारों का मानना है कि पेट्रोल-डीज़ल के तेजी से से बढ़ते दामों की वजह से महंगाई भी तेज़ी से बढ़ी है। लेकिन पेट्रोल-डीज़ल के दाम करने को लेर न केंद्र सरकार ने दिलचस्पी दिखाई और न ही राज्य ससकारों ने इस दिशा में कोई क़दम उठाया। 4 जून को मौद्रिक नीति की घोषणा करते वक़्त रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिदास ने केंद्र और राज्य सरकारों ने लोगों को बढ़ती महंगाई से राहत देने के लिए पेट्रोल-डीज़ल पर लगने वाला अपने-अपने हिस्से का टैक्स कम करने की अपील की थी। लेकिन इस पर न केद्र ने अमल किया और न ही राज्य सरकारों ने।

पेट्रोल-डीज़ल पर लगने वाले केंद्र और राज्य सरकरों के टैक्स की वजह से ही देश के क़रीब 200 ज़िलों में पेट्रोल 100 रुपए प्रति लीटर से ज़्यादा क़ीमत पर बिक रहा है। कई जगहों पर डीज़ल भी 100 के पास पहुंच गया है। पिछले सात साल में पेट्रोल की कीमत 71 रुपए से बढ़कर 100 रुपए के पार चली गई है। जबकि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत सात साल में 105 डालर प्रति बैरल से घटर 73 डॉलर प्रति बैरल पर आ गई है। इस हिसाब से पेट्रोल का बेसिक मूल्य तो सिर्फ 35.63 रुपए हैं। इस पर 36 पैसे प्रति लीटर ढुलाई का खर्च आता है। डीलर का कमीशन 3.79 रुपए प्रति लीटर है। केंद्र सरकार टैक्स 32.90 रुपए टैक्स वसूलती है। राज्य सरकारें अपने-अरपने हिसाब से वैट वसूलती है। इस तरह क़रीब 36 रुपए प्रति लीटकर मिलने वाला पेट्रोल आम आदमी को कहीं 100 रुपए से ज्यादा में मिल रहा है तो कहीं इससे थोड़े कम दाम में।

ऐसा ही डीज़ल के साथ भी है। डीज़ल का बेसिक मूल्य 38.16 रुपए हैं। इसकी ढुलाई, डीलर का कमीशन के साथ केंद्र सऔर राज्य सरकरों के टैक्स जोड़ने के बाद देश के अलग-अलग हिस्सों में डीज़ल 85 रुपए प्रति लीटर से लेकर 100 रुपए प्रति लीटर केस हिसाब से बिक रही है।

पेट्रोल-डीज़ल की बढ़ती क़ीमतो का सीधा असर खाने-पीने की चीज़ों के साथ तमाम बुनियादी ज़रूरत की चीज़ों की कीमतो पर पड़ता है। इनके एक जगह से से दूसरी जगह ले जाने का खर्च बढ़ जाता। इससे तमाम जरूरत की चीज़ों के थोक भाव से लेकर खुदरा भाव तक बढ़ जाते हैं। इसी लिए रिजर्व बैंक पिछले 4 महीने में कम से कम पांच बार केंद्र और राज्य सरकारों से पेट्रोल-डीज़ल पर लगोने वाला टैक्स कम करने की अपील कर चुका है। लेकिन उसकी अपील कास कोई असर नहीं हो रहा।


हालांकि मार्च की शुरुआत में वित्तमंत्रालय ने पेट्रोल-डीज़ल पर लगने वाला टैक्स करने के संकेत दिए थे। पांच मार्च को वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा था कि पेट्रोल-डीज़ल पर टैक्स कम करने फैसला केंद्र और राज्यों को मिलकर लेना होगा। लेकिन इस कभी बात आगे नहीं बढ़ी। दरअसल केंद्र राज्य सरकारों का तर्क है कि कि कोरोना काल में बढ़े आर्थिक बोझ को कम करने लिए उन्हें पैसों का जरूरत है। ऐसे में पेट्रोल-डीज़ल पर लगने वाला टैक्स अगर कम कर दिया जाएगा तो कोरोना से लड़ाई कमज़ोर पड़ जाएगी।

पेट्रोल-डीज़ल पर लगने वाला टैक्स पर फिलहाल राजनीति हो रही है। केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान कहते हैं कि राज्सथान और महाराष्ट्र की राज्य सरकारे पेट्रोल-डीज़ल सबसे ज़्यादा टैक्स वसूल रहीं हैं। लोगों को राहत देने के लिए इन्हें अपना टेक्स कम करन चाहिए। लेकिन केंद्र के टैक्स को कम करने सवाल पर वो चुप्पी साध जाते हैं। केंद्र सरकार मौजूदा हालात में पेट्रोल-डीज़ल पर लगने वाला टैक्स कम करने से साफ इंकार कर चुकी है।

पेट्रोल-डीज़ल को जीएसटी के दायरे में लाने का मामला भी उठता रहता है। आर्थिक मामलों के कुछ जानकारों का मानना है कि पेट्रोल-डीज़ल को जीएएसटी कते दायरे में लाकर इनकी कीमतो को काबू मे रखा जा सकता है। मई के आखिर में हुई जीएसटी काउंसिल की बैठक में ये मुद्दा उठा भी था। लेकिन हकीक़ यह है कि न तो केंद्र ही इसके लिए गंभीर है और न ही राज्य सरकारें। ऐसा होने से उनके राजस्व का सबसे बड़ा स्रोत उनके हाथ से चला जाएगा। इसी लिए पेट्रोल-डीज़ल को जीएसटी के दायरे में लाना अभी विचार तक ही सीमित है।


सवाल यह भी है कि क्या खुदरा महंगाई दर रिजर्व बैंक के के तय लक्ष्य को पार कर जाने के बाद केंद्रीय बैंक ब्याज दर बढ़ाएगा? जानकारों का मानना है कि मई में खुदरा महंगाई की दर 6 फीसदी से ज्यादा होने के बावजूद आरबीआई (RBI) जल्दबाजी में कोई कदम नहीं उठाएगा। इसकी वजह यह है कि केंद्रीय बैंकों का फोकस अभी इकोनॉमिक रिकवरी पर है। सूत्रों के मुतकाबिक कोरोना की दूसरी लहर की अर्थव्यवस्था पर चोट के बाद इकोनॉमिक रिकवरी आरबीआई की प्राथमिकता है।

ऐसे में यह अहम सवाल है कि आखिर तेज़ी बढ़ती महंगाई पर काबू कैसे पाया जाए। इसका रास्ता केंद्र और राज्य सरकारों को ही मिल कर निकालना है। अगर ठोस क़दम नहीं उठाए जाते हैं तो आने वाले दिने में महंगाई और बढ़ सकती है। पहले ही महंगाई और बेरोजगारी की दोहरी मार झेल रही आम जनता पर और बोझ बढ़ सकता है।

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